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अरे ! आपका लड़का/लड़की बिगड़ गया है।

Representational image.

ये dialogue आपको भी सुना सुना लग रहा होगा,बेशक सुना ही होगा ,मेरे हर हमउम्र ने ,हर उस बन्दे/बंदी ने जो समाज की कुछ बातो के खिलाफ कुछ करना चाहता है।

तो ये तो मैँ सुन रहा हूँ लगभग 12th क्लास से क्योंकि उससे पहले तो में शरीफ था जो लोग कहते थे सुनता था पर उसके बाद थोडा आज़ाद क्या हुया लोगो ने ”बिगड़ गया है ये” का ठप्पा लगा दिया और ऐसा भी नही की किसी में हिम्मत हो मुझे कुछ कहे,जाके माँ बाप के कान भरे जा रहे थे जैसा की समाज हमेशा से करता आया है।

मुझे ऐसा लगता है जैसे समाज बदलाव से डरता है बेहतर होने से डरता है,मानो अभी आज़ाद हुया ही नही है ।

उस वक़्त थोड़े नशेड़ी गंजेड़ी दोस्तों से दोस्ती की थी
मैंने हालांकि कभी कुछ छुआ तक न था ,पर इन्हें आम जनता को कौन समझाए ,शुरू होगये बिगड़ गया आपका लड़का। ये दोस्त मुझे उन दुसरो से बेहतर लगा करते थे जो सिर्फ नाम के दोस्त थे।

फिर दाढ़ी बढ़ाने का शौक लगा,यही था शायद मेरा बाग़ी होने का पहला कदम ,दाढ़ी बढ़ा ली मुस्लमान लगता है,बाबा (सन्यासी, ना कि राम रहीम) लगता है,और भी न जाने क्या क्या। तंग हूँ इनसे अब करू भी तो क्या।

इस बात से समझ आया की समाज अभी भी कितना पिछड़ा है,धार्मिक भेदभाव अभी भी पुरे मकाम पे है इस देश में ।

ये समाज न हम जैसो को हम तुम जैसो को जो कि इनकी नज़रो में बिगड़े हुए है ना ,आगे बढ़ने ही नही देते,बदलाव लाने ही नही देते ,बेहतर करने की कोशिश ही कर लेन दो।

 

 

पर ये Stereotypic society कुछ बदलाव देखना नही चाहती ।आज़ादी कब मिलेगी इस सोच से।

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