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और वह नन्हा शाहीन झुक गया

गला रुंध गया , दिल भर आया , आंख नम हो गयी।
मानो कोई फॉल ऑफ बगदाद या फॉल ऑफ हल्ब हुआ हो मेरे लिए …..
यह कोई आम बच्चा नही बल्कि उनका जां नशीन था जिनके ताज़ अजायब घरों में रखे हैं ।
उनके घोड़े के सुम जिब्राल्टर पर नक्श हैं , सनम आज भी सहमे हुए पड़े हैं , कलीसा आज भी उनकी तलवार की झनकार का गुमाँ करके सहम जाते हैं , ईरानी आतिश कदे सर्द पड़ जाते हैं ।।

यह नन्हा शाहीन जो सर ब सज़दा है , इसे उड़ना था , उड़ान इसकी फितरत में थी ।
यह उड़ सकता है जो कोई इसकी हवा में सरपरस्ती को तैयार हो ।
यह चल सकता है , खड़ा हो सकता है , जो कोई उंगली पकड़ने को तैयार हो ।।

वरना देख रहे हो न ,, उम्मते मुस्लिमा की गैरत बौद्ध मोंक के कदमों में यूं ही पड़ी रहेगी ,
और ज़ालिम यह सोच कर फख्र करेगा कि सुल्तान अय्यूबी की औलाद , आले मुहम्मद बिन क़ासिम उनकी कदम बोसी कर रही है …
तो क्या हुआ वह नन्हा है ,, है तो शाहीन आख़िर।

मैं इस तस्वीर को नम आंखों से fall of muslims का नाम दूँगा ।।

सिसकियां किस जुबान में लिखूं ?
आज तो लफ्ज़ आब्दीदा हैं ।

ग़मों से लबरेज़ आँखो में आँसू लिए आपका भाई बेटा दोस्त शोएब खान की क़लम से

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