Site icon Youth Ki Awaaz

“रात एक बजे इमरजेंसी वॉर्ड में वह लड़की पति से मिली चोट का इलाज कराने आई थी”

क्यों रो रहे हो तुम गौरी लंकेश की मौत पर, बगावत करने वाले हर इंसान का हश्र ऐसा ही होता है। यही है हमारे समाज की प्रथा। प्रथा तलाक की, प्रथा ज़िंदा जला देने की, प्रथा लात-घूसे मारने की, प्रथा आवाज़ नीची कर अधिकार मांगने की, प्रथा प्रताड़ित होकर भी लौटकर उसी ससुराल में जाने की, प्रथा इच्छाओं को दबाकर ख्वाइशों को पूरा करने की, प्रथा खुद कैद होकर घर की इज़्जत सवारने की।

गौरी लंकेश की हत्या के दर्द को मैं समाज की तमाम औरतों के दर्द और पीड़ा से इसलिए जोड़ रही हूं कि कल रात जब गौरी लंकेश की हत्या की खबर टीवी चैनल पर चल रही थी तब मैं ओखला के होली फैमेली हॉस्पिटल के इमरजेंसी वॉर्ड में थी।

मेरी एक रूममेट के पीठ में दर्द अचानक बढ़ गया। उसके साथ हम तीन और लड़कियां तकरीबन 1 बजे हॉस्पिटल तक पहुंची। हॉस्पिटल में कई सारे लोग थे और उन्हीं कई सारे लोगों में हमारे आगे पेशेंट कुर्सी पर बैठी थी नीले और लाल सलवार कमीज में एक लड़की, उसके सर पर दुपट्टा, हाथों में चूड़िया और मांग भरी थी। उसके उठते ही मेरी दोस्त पेशेंट सीट पर बैठी और अपने दर्द के बारे में डॉक्टर को बताने लगी,

तभी नर्स उस नीले और लाल सूट वाली लड़की से पूछती है, ये चोट पति के मारने के ही हैं? ये सुनते ही मेरा ध्यान अपनी दोस्त से हटकर उस लड़की पर चला जाता है।

उसे ध्यान से देखने पर उसकी आंखो के नीचे नील के गहरे निशान नज़र आए, एक आंख की पलक फटी हुई थी। वो एकदम चुप सी थी और मेरे मन में कई सवाल थे। मैंने मेरी दोस्त सपना को इशारे से उसकी तरफ देखने को कहां, दबी आवाज़ में होठों को हिलाते हुए बताया कि उसके पति ने उसे मारा है।

हम दोनों उसे देखते रहे और जैसे ही उसकी रिपोर्ट पर नर्स ने उसे साइन करने के लिए कहा तो उसने अंगूठा लगाया। अंगूठे की लकीरें रिपोर्ट पर नीले रंग में छपी और उसकी ज़िंदगी काली और कोरी, शायद न पढ़े-लिखे होने की सज़ा, जो रात के एक बजे इमरजेंसी वॉर्ड में आना पड़ा। लगभग एक से डेढ़ घंटे तक हम हॉस्पिटल में रहें। मेरी आंखे उसे बार-बार ताक रही थी। वो एकदम शांत थी, एकदम खामोश, न आंखों में आंसू थे, न चेहरे पर कोई भाव।

उससे कुछ भी पूछने की हिम्मत नहीं हुई, मैंने नर्स से जानकारी लेनी चाही उसने बताया कि हां पति ने मारा है, हमने तो रिपोर्ट बना दी है डोमेस्टिक वायलेंस की। बस इतनी ही जानकारी देकर वह चली गई और हम चारों एक-दूसरे को देखने लगे।

मन भर गया था हमारा, आंखों में हल्के आंसू थे और कई सारे सवाल। खुद से और समाज से। तभी मैंने कहा, देखना अभी तो इसके मम्मी पापा इसके साथ हैं लेकिन जैसे ही इसका पति कुछ टाइम बाद माफी मांगने आएगा तो इसे फिर से उस हैवान के पास ही भेज देंगे। पहले तो अपनी बेटी को पढ़ाना ज़रूरी नहीं लगता और फिर वो बेटी बोझ लगती है। तभी मेरी दोस्त सोनम ने कहा कि इसलिए लड़कियों को बोल्ड होना चाहिए ताकि कोई हाथ उठाने से पहले चार बार सोचे। बात उसकी बिल्कुल सही थी लेकिन हमारे समाज में औरतों का बोल्ड होने का मतलब है बदचलन, सनकी, अभिमानी, लड़ाका, सेलफिश, घर तोड़ने वाली, बागी और कई सारे ऐसे शब्द जो मैं लिखना नहीं चाहती।


फोटो प्रतीकात्मक है, आभार- Getty Images

Exit mobile version