गुरु शिष्य की प्राचीन परंपरा का हम सदा से ही पालन करते आ रहे है। माता पिता को सदैव ही प्रथम गुरु के रूप में माना जाता रहा है,माँ व्यक्ति की प्रथम गुरु मानी जाती है, सही राह और सही दिशा निर्देशन माता पिता के द्वारा दिया गया ज्ञान ही व्यक्ति को सही मार्ग पर चलने हेतु प्रेरित करता है। इसी क्रम में हम बात कर रहे है महान शिक्षाविद एवं सामाजिक कार्यकर्ता पदमश्री प्राप्त तुलसी मुंडा जिन्होंने अपने प्रयासों से कई आदिवासी बच्चो को खदान में काम करने से बचाया, बल्कि शिक्षा देकर उनके जीवन को सफल बना रही है।
15 july 1947 को जन्मी तुलसी मुंडा एक महान सामाजिक कार्यकर्त्ता है। तुलसीपा इस लोकप्रिय नाम से जानी जाती, उनके लिए लोहे की खदानों में काम करने वाले बच्चो को और उनके माता पिता को शिक्षा का महत्व बताना एक दुष्कर कार्य था, धीरे धीरे उनके प्रयासों ने नयी उड़ान भरी आदिवासी लोगों को शिक्षा का महत्व समझ आने लगा, और तुलसीपा ने महुआ के वृक्ष के नीचे आदिवासी बच्चो को शिक्षा देने का कार्य शुरू किया।धन के अभाव में उन्होंने सब्जी और मूरी बेचना शुरू किया। लोगों का विश्वास जितने के साथ तुलसीपा को भोजन और रहने का स्थान उपलब्ध कराया। लोगों के प्रयासों से ही गांव में विद्यालय निर्माण संभव हो पाया। जो तुलसीपा के प्रयासों का ही नतीजा है
शिक्षा के अलावा तुलसीपा ने सामाजिक क्षेत्रों में अनेक कार्य किये,कई विकास के कार्यक्रम चलाने वाली तुलसीपा शराबनशी के रोकथाम के लिए प्रयासरत है।अपने सामाजिक कार्यों और शिखा के क्षेत्र में किये गए उल्लेखनीय प्रयास के लिए २००१ तुलसी मुंडा को पदमश्री से सम्मानित किया गया। तुलसी मुंडा अपने अपनी प्रशंसा और सम्मान के बावजूद वे अपने सामाजिक सेवा के लिए निरंतर कार्य कर रही है। महात्मा गाँधी, विनोबा भावे से प्रेरित तुलसी मुंडा का जीवन हम सभी के लिए अनुकरणीय है।