मेरे मोहल्ले के राम
मेरे मोहल्ले के रहीम
मेरे मोहल्ले की शिखा
मेरे मोहल्ले की सना
तेरी खिड़की से मेरे दरवाजे के बीच
दीवार तो नहीं खड़ी हुई न।।
मेरी रसोई से तेरी थाली में
पकवानों की कमी तो नहीं हुई न।।
तेरे अब्बु और मेरे पापा की
बीड़ी वाली मुलाकात तो बंद नहीं हुई न।।
तेरी अम्मी के संग मेरी मम्मी की
बाजारों की सेर तो खत्म नहीं हुई न।।
दीवाली पर तेरे घर के आंगन में
दीप की चमक, बंद तो नहीं हुई न।।
ईद पर मेरी दीदी
तेरे घर, खीर बनाने तो आती है न।।
तेरी आपा, मेरे भाई की कलाई में
राखी तो बाधती है न।।
मेरा मोहल्ला आज भी वैसा ही है न ?
इस मोहल्ले में अल्लाह और भगवान
की पहरेदारी तो नहीं हुई न ?
बगावती-बू से….
तेरी खिड़की से मेरे दरवाजे के बीच
दीवार तो नहीं खड़ी हुई न।।
कावेरी सिंह (कामिनी)
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