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माता पिता को वृद्धाश्रम भेजने से आप अनाथ हो रहे है, वे नहीं

अपने वृद्ध पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ने के बाद जैसे ही वह घर लौटने को मुड़ा, उसकी पत्नी का फ़ोन आ गया,

कैसी हो प्रिय?”, उसने बड़े प्यार से पूछा,

क्या हुआ, अब तक तुम वापस क्यों नहीं आये? क्या तुमने अब तक उन्हें छोड़ा नहीं क्या?”, उसकी पत्नी ने गुस्से भरे लहजे में पूछा,

नहीं प्रिय, मैं उन्हें पहले ही छोड़ चुका हूँ, बस मैं वृद्धाश्रम की कार पार्किंग की ओर ही बढ़ रहा हूँ, मैं तुम्हारे पास १० मिनट में पहुँच जाऊंगा”,

रुको, वापस जाओ और अपने पिता से कहो की त्योहारों पर भी घर ना आये, वे वही रुके, और हमें भी शांति से रहने दे”,

हाँ हाँ, मुझे उनसे ये बोलना चाहिए था. ठीक है मैं वापिस जाता हूँ और उनसे ये बोलता हूँ, ठीक १५ मिनट में मैं घर पहुँच जाऊंगा”,

जल्दी आना, हमें पार्टी और खाना खाने के लिए मेरे दोस्त के घर जाना है. उम्मीद है की इस सब भावनात्मक नाटक बाजी के बीच तुम पार्टी के बारे में नहीं भूले हो”,

नहीं, मैं कैसे भूल सकता हूँ की आज तुम्हारे दोस्त के पिताजी का जन्मदिन है. मैं कुछ ही देर में घर आ रहा हूँ, तुम तैयार रहना”,

वह अपनी पत्नी का सन्देश अपने पिता को देने के लिए वापिस वृद्धाश्रम की ओर मुड़ा. जैसे ही वृद्धाश्रम के मुख्य द्वार से उसने अंदर प्रवेश किया, उसने देखा की उसके पिता बगीचे में बैठे हुए है, और उस वृद्धाश्रम के संरक्षक के साथ गप्पे लड़ा रहे है. वह काफी खुश लग रहे थे और बीच बीच में ठहाके भी लगा रहे थे.

ऐसा लग रहा था मानो संरक्षक महोदय और उसके पिता एक दूसरे को बहुत लम्बे अरसे से जानते हो

उसने संरक्षक से पूछा, महोदय आप मेरे पिता को कैसे जानते है? क्या आप दोनों मिल चुके है?”

संरक्षक ने विनम्रता पूर्वक जवाब दिया, हाँ बेटा, मैं इन्हें लम्बे समय से जानता हूँ, मैं करीबन ३० साल पहले बाल अनाथाश्रम  में काम करता था, और इन महोदय से मैं वही मिला था,

पापा, आप बाल अनाथाश्रम में क्या कर रहे थे?”,

कुछ अंदरूनी समस्या के चलते तुम्हारे माता पिता संतान को जन्म नहीं दे पा रहे थे, उनकी उम्र बढ़ती चली जा रही थी और वे संतान के प्यार से अब तक वंचित थे. इसलिए वे संतान गोद लेने के लिए अनाथाश्रम में आये थे,” संरक्षक ने बताया,

तो क्या मैं एक अनाथ था?”, वह सिर्फ इतना ही पूछ सका,

हाँ, तुम एक अनाथ थे, लेकिन फिर तुम्हें तुम्हारे माता पिता ने गोद ले लिया था, तो तुम अनाथ नहीं रहे. पर आज तुम जब अपने वृद्ध पिता को इस वृद्धाश्रम में छोड़ का जा रहे हो, तो तुम फिर से अनाथ हो”, इस बार संरक्षक की आवाज में एक दुःख झलका.

क्या हम सच में इतने असहिष्णु है की अपने वृद्ध माता पिता का बर्ताव भी बर्दाश्त नहीं कर सकते? हाँ हमारी विचारधाराओं में असमानता हो सकती है, हमारी जीवन शैली आधुनिक है, जहाँ आधी रात तक की पार्टियाँ और शराब का सेवन आम बात हो चुकी है, हमें हमारी जिंदगी में उनका हस्तक्षेप पसंद नहीं है, लेकिन क्या ये इतना बड़ा कारण हो सकता है की हमें अपने माँ बाप से अलग कर दे? सच में? क्या ये इतना बड़ा कारण है की हमें उनसे अलग कर दे जो हमें इस दुनिया में लाये है?

मैं उस सिद्धांत का पुरजोर विरोध करता हूँ जो ये कहता है की हर कोई वृद्ध माता पिता को वृद्धाश्रम भेजने में बेटे को दोषी मानता है, लोग क्यों भूल जाते है की घर की बहु इसमें एक बहुत बड़ा किरदार अदा करती है? अगर ऐसा नहीं होता, तो बेटे शादी से पहले से ही अपने माता पिता को वृद्धाश्रम क्यों नहीं भेजते?

कुछ दिन पहले मैंने कहीं पढ़ा की अगर माँ बाप का स्वभाव बच्चों के स्वभाव से मेल ना खाता हो, और अगर माँ बाप ने बच्चों की शादी से पहले और शादी के बाद हर तरह से उन्हें आर्थिक रूप से आत्म निर्भर बना दिया हो तो उनके वृद्धाश्रम जाने में कोई हर्ज नहीं है. क्या कोई सच में ऐसा सोच सकता है? क्या हम अपने माँ बाप के साथ सिर्फ इसलिए रह रहे है क्योंकि वे हमें आर्थिक रूप से मदद कर रहे है, क्या माँ बाप से अलग होना इतना आसान है की विचारधाराओं में मतभेद इस अलगाव का कारण बन सकता है?

मैंने अनेक विवाहित जोड़ो को शादी के बाद बेहतर अवसरों की वजह से महानगरों में स्थानांतरित होते देखा है. बड़े शहर, खर्चीली जीवन शैली, महंगे किराये के मकान आदि के कारण अक्सर लोग माँ बाप को वृद्धाश्रम में भेज देते है

एक बार सोचिये, क्या आपके माँ बाप ने आपको शहर के सबसे महंगे स्कूल में दाखिला कराने से पहले एक बार भी सोचा था? क्या उन्होंने सोचा था की जिस विश्वविद्यालय में वे आपका दाखिला करा रहे थे, वह विश्वविद्यालय राज्य का सबसे महंगा विश्वविद्यालय था? क्या उन्होंने एक बार भी मना किया जब आप को शहर की सबसे महंगी क्रिकेट अकादमी में क्रिकेट सीखने का जुनून चढ़ा था?

अगर उन्होंने ये सब सोचा होता, तो वे अपने बैंक खाते में लाखों रुपए जमा कर लेते, ताकि वृद्धावस्था में अपना जीवन यापन कर सके और उन्हें अपने जीवन किसी वृद्धाश्रम में व्यतीत ना करना पड़े

मैं सिर्फ एक बात कहना चाहूंगा, की अपने माता पिता को वो सब कुछ करने दे, जो वे करना चाहते है, उन्हें अपने मित्रों के साथ तीर्थ यात्रा पर भेजे, उन्हें शहर की वो नयी नयी जगह बताये जहाँ जाकर वे नए मित्र बना सकते है, जब भी वे कुछ ऐसी बात कहे जो आप को ना पसंद हो, तो उन पर खीजे नहीं, उनके साथ नम्रता पूर्वक बर्ताव करें, और उन्हें बिना शर्त प्यार करें. जब भी आप निराश हो, तो सोचे – क्या उन्होंने ऊपर लिखी सारी चीजे नहीं की थी जब आप बच्चे थे?

उन्हें इस उम्र में आपका प्यार चाहिए – और कुछ नहीं चाहिए, बस आपका वो सारा प्यार चाहिए जो उन्होंने आपसे सारी उम्र किया है. उन्होंने ६० सालो तक आपसे प्यार किया है, क्या आप उन्हें उनकी जिंदगी में आखिरी ३० सालो में प्यार नहीं कर सकते? चिंता मत कीजिये – आप फिर भी मुनाफे में ही रहेंगे, क्योंकि ३० सालो का प्यार तो आपके पास रहेगा ही, इन ३० सालो में आपके लिए इतनी बार प्रार्थना करेंगे, की आप हमेशा खुश ही रहेंगे.

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