शिक्षक राष्ट्र निर्माण की पहली सीढ़ी होते है. शिक्षक ही राष्ट्रीय संस्कृति के संरक्षक भी होते है. वे बालको में सुसंस्कार तो डालते ही है और उनकी अज्ञानता रूपी अन्धकार को दूर कर उन्हें देश का श्रेष्ठ नागरिक बनाने का दायित्व भी वहन करते है, शिक्षक राष्ट्र के बालको को न केवल साक्षर बनाते है बल्कि अपने उपदेशो के द्वारा उनके ज्ञान का तीसरा चक्षु भी खोल देते है.
शिक्षक बालक में हित अहित, और भला बुरा सोचने की क्षमता भी उतपन्न करते है जिससे समग्र देश के विकास में वो बालक अपनी भूमिका निभा सके .
शिक्षक उस दीपक के समान होता है जो खुद जल कर अपने को प्रकाशमान करता है.
महर्षि अर्विन्द ने शिक्षको के लिए कहा है “ शिक्षक राष्ट्र की संस्कृति के माली होते है वे संस्कारो की जड़ो में खाद देते है और अपने श्रम से उन्हें सिंच सिंच कर महाप्राण शक्तिया बनाते है.
शिक्षक क्या होता है उसकी अहमियत कितनी है उसका एक छोटा सा उदाहरण है, किसी भी धातु को आप पारस पत्थर के संपर्क में लायेंगे तो वो उसे सोना बना देता हे चाहे वो लोहा हो पीतल हो तम्बा हो सभी तरह के धातु उसके संपर्क में आते ही सोना बन जाते है, परन्तु किसी भी धातु को वो अपने समानान्तर नहीं बनाता है मगर गुरु एक ऐसी सख्शियत है जो स्वयं से भी कई गुना बेहतर और अच्छा नागरिक और इंसान बनाता है.
शिक्षको का आदर करना और उन्हें सम्मान देना समाज और देश का कर्तव्य होना चाहिए.
“ज्ञान का दीपक गुरु जलाते
अंधियारा अज्ञान मिटाते
धन देकर विद्या रूपी गुरु
प्रगति मार्ग पर हमें बढ़ाते.”
Sandeep panchal