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शिक्षण संस्थानों में हो रहे मामलो में आखिर वाईस चांसलर पर एक्शन क्यों नहीं लिया जाता?

हमारे देश का विकास उसी शहर की सैर कर रहा था जब बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में छात्राओं के साथ छेड़छाड़ हो रही थी. हमारे विकास ने अपनी राह से मूंह मोड़ लिया जब पता चला कि मामला गरमा गया है. जब प्रशासन को भनक हो गई कि देश के विकास पर इस आन्दोलन से कोई असर नहीं हो रहा है तो लाठियां बरसा दी गयी. लाठियां बरसी उस नारी पर जिसे हम देश की माता के स्वरुप में मानते है. वाईस चांसलर ने ये कहकर पल्ला झाड़ दिया कि ये प्रधानमंत्री के आने से पहले ही किया गया सुनियोजित हमला था और ये हरकत करनेवाले लोग कॉलेज के नहीं बल्कि बाहरी थे. वाईस चंसलारो को भी राजनीती की इतनी अच्छी परख हो जाए तो ये देखकर सीधा अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि उस यूनिवर्सिटी में राजनीती किस हद तक अपना आसन जमाये बैठी है. इस बयान के बाद भी FIR कॉलेज के ही छात्रों पर होती है और लाठीयां भी कॉलेज की ही छात्राओं पर पड़ती है इस लाठीचार्ज में एक लड़की का सर फूट गया तो एक के पैर में मार लग गयी ये सब एक वायरल विडियो से सामने आया लेकिन वाईस चांसलर का कहना था कि कॉलेज के छात्राओं पर लाठियां नहीं बरसाई गई बल्कि लाठियां तो बाहरी लोगो पर बरसाई गयी है. अगर ऐसा है तो उनके हिसाब से ये भी हो सकता है कि कही ये भी किसी राजनितिक साजिश का हिस्सा हो जिसमे लडकियों ने खुद अपने आप को मार लिया हो और दिखावे के लिए विडियो बनाकर वायरल कर दिया.

इस पुरे मामले में एक बात समझ नहीं आई कि योगी की एंटी रोमिओ टीम क्या सिर्फ सडको पर सहमती से एक दुसरे के साथ घूमनेवाले लड़के-लडकियों को उठा रही थी. अगर नहीं तो तो फिर ये मनचले लड़के उनकी गिरफ्त से कैसे छुट गए. जब प्रधानमंत्री को पता था कि मामला गरमा गया है तो फिर उसी शहर में होने के बावजूद उन्होंने इसे सुलझाने के लिए कोई कदम क्यों नहीं उठाया आखिर क्यों लाठीचार्ज होने तक का इंतज़ार किया गया. शुरुआत में रैपिड एक्शन दिखानेवाले योगी अचानक से इतने सख्त कैसे बन जाते है कि मामला इतना बढ़ने के बावजूद उन्होंने इसपर शांत रहने का मार्ग चुना. तो क्या ऐसा मान लिया गया है कि छात्रों का प्रदर्शन अब आम हो चूका है और उनकी बातो को सीरियसली नहीं लिया जा सकता या फिर सरकार ने ये मंशा बना ली है कि हर शिक्षण संस्थान में हो रही हरकत एक राजनितिक हरकत बन गई है.

शिक्षण संस्थानों में जब शिक्षा की जगह राजनीती पनपने लग जाए तो समझ लो तुम्हारे देश का विकास कमज़ोर दौर से गुज़र रहा है. तुम्हारे छात्र शिक्षको की डांट खाने की बजाय पुलिस की लाठियां खाने लग जाए तो मान लो कि वो संस्थान सही हाथो में नहीं है. किसी मंत्रालय में गड़बड़ी हो जाए तो मिनिस्टर से इस्तीफा माँग लिया जाता है तो फिर शिक्षण संस्थानों में वाईस चांसलर को हटाने पर ये लोग इतना कतराते क्यों है. हैदराबाद यूनिवर्सिटी और उसके बाद जेएनयु में भी वाईस चांसलर सुरक्षित थे दोनों जगहों पर जवाब नेतागण दे रहे थे. आखिर ये समझ नहीं आता कि उन वाईस चांसलरों को ही क्यों नहीं हटाया जाता जो इस मामले को संभाल नहीं पाते है. क्या ये मुमकिन नहीं है कि एक को हटाने के बाद अगला वाईस चांसलर इन सब बातो को सीरियसली लेगा और इन संस्थानों में कुछ सुधार करेगा. अपने शिक्षण संस्थान में नेतागण को कंडोम गिनने, फिल्मो का प्रमोशन करने और धरने पर बैठने तक की इजाज़त देनेवाले वाईस चांसलर आखिर उन छात्रों की सुरक्षा के मुद्दे पर इतने पीछे क्यों रह जाते है. बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में जिस जगह छेड़छाड़ हुई वहां सीसीटीवी कैमरे भी नहीं लगाए गए थे हालांकि वहां से लडकियो का हॉस्टेल थोड़ी ही दुरी पर है तो फिर किस आधार पर वो इन लडकियों को सुरक्षित बता रहे थे. क्या ये सवाल उन वाईस चांसलरो पर नहीं है जो अपने संग्रहालयो और लाइब्रेरी में चोरी के डर से तो कैमरे लगा देते है लेकिन लडकियों की सुरक्षा के लिए इनके पास सीसीटीवी कैमरे नहीं होते. जब किसी शिक्षण संस्थान से एक छात्र(नजीब) गायब हो जाता है जिसे सीआईडी तक नहीं ढूंढ पाई तो क्या यह वाईस चांसलर की गलती नहीं है कि उनके हॉस्टेल से छात्र गायब होने के बावजूद इनके पास उसके कॉलेज से बाहर निकलने तक का कोई सबूत नहीं. ऐसे कई बीमार सवाल अपने इलाज की तलाश में उसी वाईस चांसलर तक पहुँचते है जो आज इन सस्थानों को संभालने में नाकामयाब है लेकिन ना ही कोई इसका जवाब दे पा रहा है और ना ही कोई इस हालात को सुधारने को तैयार है बावजूद इसके वो इसे राजनितिक साजिश बता कर खुद इस मामले से हटने की कोशिश कर रहे है.

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में हुआ ये पहला मामला नहीं है जहाँ राजनीतीक हरकतों ने अपना निशाना बनाया है. भारतीय शिक्षण संस्थानों में इस राजनीती की शुरुआत हैदराबाद यूनिवर्सिटी के रोहित वेर्मुला की आत्महत्या से शुरू हुई हालाँकि उसके पहले भी कुछ संस्थानों को राजनीती से जोड़ने की कोशिशे ज़रूर की गयी थी लेकिन इस मामले ने इसे केंद्रीय राजनीती से जोड़ दिया और ऐसे में जेएनयु में कन्हैया कुमार का किस्सा इसे एक और नया स्वरूप दे गया. इन दोनों जगहों पर विरोधी पक्षों ने अपने अपने हिसाब से इसका राजनितिक इस्तेमाल किया और शायद कइयो को इसमें सफलता भी मिली लेकिन इसमें हार उसी शिक्षण प्रणाली की हुई है जिसमे ये सब हो रहा था. शिक्षण संस्थानों में राजनीती का ये काफिला जेएनयु से होते हुए रामजस कॉलेज, जामिया मिलिया इस्लामिया और अब बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी आ पहुंचा है. इससे पहले कि शिक्षण संस्थान भी धर्मो की तरह एक राजनितिक अखाड़ा बन जाए देश के लिए इसे सुधारना बहुत ज़रूरी हो गया है.

 

अली शेख

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