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सुषमा की पाक को नसीहत, दूसरों के घर में फेंकी गई चिंगारी कहीं खुद का घर न जला दे !

संयुक्त राष्ट्र की महासभा में सुषमा स्वराज का भाषण सिंह गर्जना के समान काफी प्रभावी रहा।

उनके भाषण के विभिन्न बिंदुओं में कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं के साथ ही बलुचिस्तान का मुद्दा भी प्रभावी रहा।पाकिस्तान ने बलुचिस्तान की बात पर अपनी बौखलाहट  प्रदर्शित किया। कश्मीर का राग अलापते हुए कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग न मानते हुए विवादित क्षेत्र बताया,ऐसे में ई गम्भीर यू एन में भारत के स्थायी मिशन की पहली सचिव का वक्तव्य कि कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है,पाकिस्तान के लिये एक करारी शिकस्त के समान था.

तर्क वितर्क के क्रम में  सुषमा स्वराज का भाषण विश्व पटल पर भारत की प्रभावशाली छाप छोड़ने में कितना सफल हुआ यह तो वक्त ही बताएग,लेकिन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के भाषण को देखें,तो उन्होंने जिस प्रमुख बिन्दू को इंगित किया है वह आतंकवाद है।

वैश्विक समस्या के रुप में आज जितनी भी आतंकवादी घटनाएँ हो रही है,वह समूचे वैश्विक समुदाय के लिये खतरा है। सुषमा स्वराज का यह वक्तव्य कि आतंकवाद को पोषित करने वाले राष्ट्रों को अन्तर्राष्ट्रीय  मंच से दूर किया जाये,बहुत ही तर्कसंगत तथ्य लगा।कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान से वार्ता को भी सुषमा जी ने आतंकवादी घटनाओं के पूर्ण विराम पर ही सम्भव कहे जाने की बात की। बलुचिस्तान में हो रहे अत्याचारों को उन्होंने मानवाधिकार का हनन बताया। इसमें कोई संदेह नही है कि निर्दोष जनता पर अत्याचार सबसे बड़ा मानवाधिकारों का उल्लंघन है। जब तक आतंकवाद की पैरवी होती रहेगी,विश्व में शान्ति की बात करना महज एक कोरी कल्पना है। आतंकवाद पोषित देशों को विश्व समुदाय से अलग करना यद्यपि एक अच्छा विकल्प हो सकता है ,पर वहाँ की जनता को भी समझना जरूरी होगा,क्योंकि कोई भी व्यक्ति बारुद के ढेर पर बैठना नही चाहेगा।आतंकवादी संगठनों को हथियार और वित्त सम्बन्धित सहायता प्रदान करने वाले देशो को ब्लैक लिस्ट करना भी जरुरी है,पर वहाँ की आम जनता जो निर्दोष है उसे इस सजा का दण्ड न मिलें।पाकिस्तान चाहे जितना भी आतंकवाद को पोषित करें,समर्थन दे,पर इन सब आतंकवादियों और

दहशतगर्दों को समर्थन करना सभी के विनाश का कारण है,स्वयं पाकिस्तान को इस बात को स्वीकारना होगा कि दूसरे के घरो में फेंकी गयी आग की चिंगारी हमारा घर भी फूंक सकती है

 

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