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सरकार के नए बिल से मंडरा रहा है देश की विरासतों पर खतरा

भारत में पुरातत्व एवं विरासतों को लेकर उपेक्षा हमेशा ही दिखाई दी है। पिछले महीने ही खबर आई थी कि देश के 24 स्मारक लापता हो गए हैं, मतलब कि ये अतिक्रमण या कथित विकास कार्यों के कारण अस्तित्व खो चुके हैं। शासन की तरफ से वैसे भी स्मारक एवं पुरावशेष कभी प्राथमिकता में नहीं रहे हैं भले ही इनका राजनीतिक लाभ लिया जाता रहा है। हमारे सभ्य नागरिक भी इन्हें पीकदान बनाने में कसर नहीं छोड़ते हैं।

पर अब इन स्मारकों पर एक और खतरा संसद में प्रस्तावित AMASR अधिनियम के प्रावधानों में बदलाव के कारण बढ़ने जा रहा है। वर्तमान में 1958 के प्राचीन संस्मारक* तथा पुरातत्वीय* स्थल और अवशेष अधिनियम (The Ancient Monuments and Archaeological Sites and Remains Act ) के 2010 के संशोधित रूप के तहत संरक्षित स्मारकों की 100 मीटर की परिधि* में किसी भी तरह का निर्माण कार्य प्रतिबंधित है, जबकि 100 मीटर से 300 मीटर परिधि तक के क्षेत्र में निर्माण/मरम्मत कार्य के लिए राष्ट्रीय स्मारक प्राधिकरण(National Monuments Authority) की अनुमति की आवश्यकता होती है। लेकिन संसद में प्रस्तावित संशोधन* के द्वारा सरकार ‘जनकार्यों’ (Public Works) के नाम पर 100 मीटर के प्रतिबंधित क्षेत्र में निर्माण कार्यों को अनुमति प्रदान करना चाहती है।

वैसे ही हमारे देश में कानून का पालन बहुत कम होता है, कागज़ों पर कानून की किताब लिख दी जाती हैं और व्यवहार में उनका खुलेआम उल्लंघन होता है तो जब कानून ही शिथिल कर दिया जायेगा तब क्या परिणाम निकलेगा। वर्तमान सरकार कथित विकास कार्यों के लिए स्मारकों की सुरक्षा को भी ताक पर रखने को तैयार हो गई है। हालांकि इस संशोधन के अनुसार प्रतिबंधित क्षेत्र में ऐसा ही निर्माण किया जा सकता है, जिसका वित्तीय पोषण केंद्र सरकार द्वारा जनता के हित में हो और इस क्षेत्र में निर्माण के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प न हो।

पर यह महज़ कानूनी परिभाषा है क्योंकि सरकार के द्वारा काफी पहले से इस अधिनियम में संशोधन की पहल की जा रही है। जनवरी में संस्कृति मंत्रालय से जारी कैबिनेट नोट में इस बदलाव की ज़रूरत बताते हुए कुछ उदाहरण भी दिए गए थे जैसे कि गुजरात के  ‘रानी की वाव’ स्मारक स्थल के नज़दीक इस कानून के कारण रेलवे लाइन नहीं बनाई जा सकी और उस लाइन का मार्ग परिवर्तित करना पड़ा।

पर सवाल यह है कि क्या हमारी विरासतों की सुरक्षा, कथित विकास कार्यों के लिए उपेक्षित की जा सकती है? हमारे सैकड़ों या हज़ार वर्षों के स्मारक क्या इन निर्माण कार्यों के दौरान पैदा हुए कंपन, शोर, प्रदूषण, भूमि की अस्थिरता और मानवीय हस्तक्षेप को झेल पायेंगें? ज़ाहिर तौर पर यहां पर निर्माण कार्य विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के बाद ही शुरू किया जा सकेगा, लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित 3686 स्मारकों में से बहुतों की बदहाल स्थिति, क्या उस विशेषज्ञता पर संदेह नहीं होने देगी? भारतीय स्मारक प्राधिकरण(National Monuments Authority) का प्राधिकार क्या पूरी तरह से शासकीय मंशा के प्रभाव से मुक्त रह सकेगा?

सरकार का निजीकरण का आग्रह बढ़ता ही जा रहा है, भविष्य में इस 100 मीटर के दायरे को निजी क्षेत्र के प्रभावक्षेत्र में भी लाया जा सकता है।

पूर्व में भी विकास कार्यों की योजनाओं में वर्तमान कानून का प्रभाव पड़ा है पर उनका विकल्प भी निकाला गया है। दिल्ली मेट्रो की पीली लाइन पहले क़ुतुब मीनार के बहुत नज़दीक से गुज़रने वाली थी, लेकिन बाद में इसका मार्ग परिवर्तन कर इसे कुछ दूर ले जाया गया।

विकास कार्य निःसंदेह आवश्यक है पर हमें अपनी विरासतों की रक्षा को भी प्राथमिकता देनी चाहिए। यह प्रस्तावित संशोधन विधेयक संसद में पेश हो चुका है। यदि सिविल सोसाइटी द्वारा जल्द कुछ नहीं किया गया तो कुछ ही समय में यह कानूनी रूप से मान्य हो जायेगा। यद्यपि इतिहास और विरासत प्रबंधन से जुड़े कुछ लोगों और मीडिया के छोटे से वर्ग ने इसके खिलाफ आवाज़ उठाई लेकिन किसी बड़े मंच से इसके खिलाफ कोई माहौल नहीं बन पाया।


1) स्मारक – मेमोरियल, Monument. 2) पुरातत्वीय -Archaeological. 3) परिधि – Perimeter. 4) संशोधन –  Amendment


देवांशु, Youth Ki Awaaz Hindi सितंबर-अक्टूबर, 2017 ट्रेनिंग प्रोग्राम का हिस्सा हैं।

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