Site icon Youth Ki Awaaz

लेस्बियन होने के आरोप में BHU के हॉस्टल से निकाली गई लड़की

एडिटर्स नोट- YKA द्वारा यह खबर ब्रेक करने के बाद, अन्य अखबारों, वेबसाइट्स और न्यूज़ चैनलों ने खबर का फॉलोअप किया और BHU प्रशासन पर उचित कदम उठाने का दबाव बनाया।

________________________________________________________________________________

BHU का महिला महाविद्यालय जिसे शॉर्ट फॉर्म में MMV कहा जाता है एक बार फिर खबरों में है। इसबार कारण है MMV के एक हॉस्टल से एक अंडरग्रैजुएट छात्रा को होमोसेक्शुअल होने के आरोप में निकाला जाना। खबरें ये आईं कि एक छात्रा को हॉस्टल से इसलिए निकाला गया क्योंकि उसका सेक्शुअल बिहेवियर हॉस्टल के डिसिप्लिन को बिगाड़ रहा था। उस लड़की से ये भी कहा गया कि अपने समर्थन में एक कागज़ पर सिग्नेचर लेकर आओ जिसपर लिखा हो कि तुम एक लेस्बियन लड़की नहीं हो।

लेकिन BHU के कुछ स्टूडेंट्स का कहना है कि उस लड़की को अपनी सफाई का कोई मौका नहीं दिया गया, बस आरोपों के बिनाह पर बिना जांच करवाए हॉस्टल प्रशासन ने ये मान लिया कि वो लड़की होमोसेक्शुअल है और उसे निकाल दिया गया। सवाल ये भी है कि क्या होमोसेक्शुअल होने पर हॉस्टल से निकाले जाने जैसा कोई भी नियम MMV हॉस्टल में पहले से था?

मामले की पूरी जानकारी के लिए हमने हॉस्टल प्रशासन का रुख किया और सबसे पहले बात की इस तथाकथित अनुशासनात्मक कार्रवाई(डिसिप्लिनरी एक्शन) को अंजाम देने वाली डॉ.नीलम अतरी से। नीलम अतरी ने हालांकि पहले कुछ भी बताने से मना कर दिया और कहा कि कल प्रिंसिपल चेंबर में आकर जो भी सवाल करना हो कर लीजिएगा। मैंने पहला सवाल किया कि-

मैम एक खबर आई है कि MMV से एक स्टूडेंट को लेस्बियन होने के आरोप में हॉस्टल से निकाल दिया गया है इसके बारे में जानकारी मिल सकती है?

ये सवाल सुनते ही नीलम ने मेरी भाषा पर आपत्ती जताई और कहा कि-

हम ऐसे किसी शब्द(लेस्बियन) का प्रयोग नहीं करते और आप भी अपनी भाषा की मर्यादा बनाए रखिए। इस तरह के शब्दों का प्रयोग आपलोग ही अपनी मर्ज़ी से करते हैं। अगर कोई महिला आपके घर में होगी तो आप जानते होंगे कि ये मामला कितना सेंसिटिव है।  

इसके बाद नीलम ने ये भी कहा कि आप पत्रकार लोग बिना सोचे समझे किसी भी बात का भरोसा करके लिख देते हैं। मेरे ये बताने पर कि मैम सही बातें जानने के लिए ही तो आपको फोन किया है, नीलम थोड़ी शांत हुईं और उन्होंने बताया कि वो आज सुबह से परेशान हैं इस तरह के कई फोन कॉल्स के कारण। इस तरह की तमाम बातों के बाद में मैंने जब फिर मामले के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि-

हां हमने MMV से एक लड़की को होमोसेक्शुअल होने की वजह से सस्पेंड किया है और ये हमारा अधिकार भी है। उसके सेक्शुअल बिहेवियर से पूरे हॉस्टल का माहौल खराब हो रहा था। नीलम ने ये भी बताया कि उनके पास 30 लड़कियों के लिखित कंप्लेन आए थे जिसके बाद ही ये एक्शन लिया गया। ये पूछने पर कि क्या जिस लड़की को सस्पेंड किया गया है उसे सफाई का कोई मौका दिया गया नीलम ने बताया कि आगे की कोई जानकारी के लिए कल प्रिंसिपल चेंबर में आ जाइये।

हम बस इतनी जानकारी के साथ ये रिपोर्ट नहीं पब्लिश कर सकते थे इसलिए हमने प्रिंसिपल से बात करना ज़रूरी समझा लेकिन कल रविवार होने की वजह से प्रिंसिपल ऑफिस में फोन उठाने के लिए कोई मौजूद नहीं थी/था। हमने सोमवार तक इंतज़ार करना बेहतर समझा और इसी बीच हमने BHU के चीफ प्रॉक्टर ओंकार नाथ सिंह के मोबाईल पर फोन किया। हैरानी तब हुई जब ओंकार सिंह ने बताया कि इस मामले में मुझे कुछ नहीं पता क्योंकि ऐसी कोई जानकारी लिखित तौर पर मेरे पास नहीं आई है।

आज सुबह जब हमने MMV के प्रिंसिपल संध्या सिंह कौशिक को फोन किया तो उन्होंने ये कहते हुए फोन काट दिया कि इस मामले में उन्हें कुछ नहीं कहना और ना कोई बात करनी है। हालांकि इसके पांच मिनट बाद ही प्रिंसिपल ऑफिस से एक फोन आया। मुझे एडमिनिस्ट्रेटिव वॉर्डेन पेशेंस फिलिप का नंबर दिया गया और कहा गया कि इस मामले में वो तफ्तिश से बता सकती हैं।

फिलिप ने ये वेरिफाई करने के बाद कि मुझे प्रिंसिपल ऑफिस से ही उनका नंबर मिला है मुझसे बात करनी शुरू की। जब मैंने उनसे पूछा कि पूरा मामला क्या है अगर आप बता सकती हैं तो उन्होंने बताया कि

वो लड़की मानसिक रूप से बीमार है, सायकोलॉजिकल प्रॉब्लम है उसको, डॉक्टर से ट्रीटमेंट करवाना होगा। उसका सेक्शुअल बिहेवियर बिल्कुल ऐसा है जैसा किसी लड़के का होता है लड़कियों के प्रति। 

सवाल- किस तरह का सायकोलॉजिकल प्रॉब्लेम मैम ये कि वो लेस्बियन समुदाय से है?

जवाब- देखिए ऐसी किसी भी शब्द का प्रयोग हम नहीं करते हैं, ये शब्द सही नहीं है।

सवाल- अच्छा  मतलब होमोसेक्शुअल होने की मानसिक बीमारी है उसको?

हां, बिल्कुल। और भी कई बाते हैं मैं आपको कैसे बताउं, हॉस्टल की लड़कियां मेरे पास क्या-क्या कंप्लेन लेकर आती हैं। पहले तो हॉस्टल की लड़कियां चुप रहीं क्योंकि वो(जिस लड़की को सस्पेंड किया गया) धमकी देती थी कि अगर तुमलोगों ने किसी को कुछ कहा तो मैं सुसाइड कर लूंगी। क्लास में भी उसका बिहेवियर ठीक नहीं था।

ये पूछने पर कि क्या उस लड़की को अपनी बात कहने का कोई मौका दिया गया फिलिप ने बताया कि-

लगभगग 3-4 घंटे तक हमलोग बात करते रहें उसके पेरेंट्स के सामने, उसने मानने से सीधा मना कर दिया और उसके पेरेंट्स भी मानने को तैयार नहीं थे। फिलिप ने ये भी बताया कि बहुत सी लड़कियों ने मिलकर एक ग्रुप में लिखित कंप्लेन दिया है।

ये पूछने पर कि ये बातें भी सामने आ रही हैं कि शायद उस लड़की को कॉलेज से भी निकाले जाने पर बात की जा रही है फिलिप ने बताया कि-

कॉलेज से हम किसी को भी नहीं निकालते जबतक कोई स्टूडेंट फेल ना करे। हम तो यहां तक तैयार हैं कि अगर सही से इलाज होने के बाद ये लड़की ठीक हो जाती है तो हम दुबारा इसे हॉस्टल देने पर विचार करेंगे। आप ही सोचिए कि गांव की लड़की है कहीं जाकर बोलेगी कि हमको लड़की से ही शादी करनी है तो क्या ये संभव है? हमलोगों को हॉस्टल में एक माहौल मेनटेन करना होता है और किसी एक लड़की के लिए हम बाकी सबको तो परेशानी में नहीं डाल सकते हैं ना।

पेशेंस फिलिप ने ये भी बताया कि हॉस्टल में रह रही लड़कियां बहुत पहले से ही उस लड़की के खिलाफ शिकायत करती रही हैं। उन्होंने आगे बताया कि-

उसका व्यवहार दूसरी लड़कियों के लिए परेशानी का सबब बन चुका था मसलन गलत तरीके से छूना, एक लड़की के पीछे शादी के लिए हाथ धोकर पड़ना, रात को लड़कियों को टॉर्च जलाकर घूरना। जब पानी सर से उपर हो गया तभी लड़कियों ने शिकायत की।

ये बात भी बहुत हद तक वाजिब है कि अगर लड़की ने किसी लड़की के मर्ज़ी के खिलाफ जाकर यौन व्यवहार किया है तो वो बेशक माहौल खराब करने की दोषी है, लेकिन जिन सवालों के जवाब हॉस्टल प्रशासन को ज़रूर देने होंगे। जैसे- क्या हॉस्टल से निकालने से पहले उसे अपना पक्ष रखने का मौका दिया गया? क्या इस बात की जांच की गई कि उसने किसी के मर्ज़ी के खिलाफ यौन व्यवहार किया या सिर्फ आरोपों के आधार पर उसे निकाल दिया गया? होमोसेक्शुअल होना मानसिक बीमारी कैसे हो जाता है?

हम अभी उस दौर से गुज़र रहे हैं जहां समाज की बेहतरी और समाज में बराबरी के लिए हर ओर बातें की जा रही हैं और किसी कॉलेज या यूनिवर्सिटी के हॉस्टल से किसी को सिर्फ इस आरोप के बिनाह पर निकाल देना कि वो लेस्बियन लड़की है या गे लड़का है थोड़ा तो सवाल उठाता है हमारे तमाम डिबेट्स और डिस्कशन्स पर। राइट टू प्राइवेसी पर सुनवाई करते हुए हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एक डेमोक्रेसी में सेक्शुअल आधार पर कोई भेदभाव मान्य नहीं हो सकता, चाहे देश में कोई एक इंसान भी अपनी सेक्शुअल आइडेंटिटी मैजोरिटी से अलग रखना चाहता हो, उसके अधिकारों की रक्षा करना राज्य का कर्तव्य है। बाकी कंक्लूडिंग लाइन या ओपिनियन नहीं लिखा जा रहा है यहां, पढ़ने के बाद अपनी तरह से चर्चा हो यही मकसद है रिपोर्ट का।

Exit mobile version