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सालों से आ रही बाढ़ से कुछ नहीं सीख पाने का नतीजा है बिहार की हालिया बाढ़

भारत का एक बड़ा हिस्सा बाढ़ की चपेट में है, जिससे अब तक लगभग 1000 लोगों की मौत हो चुकी है और करोड़ों लोग प्रभावित हुए हैं। आज ये बेहद अहम सवाल है कि हर बार ऐसा क्यूं होता है कि हम बाढ़ के तात्कालिक कारणों पर बहस तो कर लेते हैं, लेकिन बाढ़ के ख़त्म होते ही हम फिर सबकुछ भूल जाते हैं और बाढ़ कुछ सालों के अंतराल पर फिर एक समस्या बनकर सामने आ खड़ी होती है।

गोपालगंज का बाढ़ प्रभावित इलाका; फोटो आभार: अरविंद सोनी

भारत के कुल 8 राज्य बाढ़ की चपेट में हैं, जिनमें बिहार, असम, पश्चिम बंगाल एवं उत्तर प्रदेश प्रमुख हैं। इस सूची में हाल ही में एक नया नाम जुड़ा, भारत की आर्थिक राजधानी कहे जाने वाले शहर मुंबई का। जहां अगस्त महीने के आखिरी हफ्ते के दौरान हुई भारी बारिश की वजह से पूरा शहर ठहर गया था।

बिहार राज्य आपदा प्रबंधन विभाग के आंकड़ों के अनुसार राज्य के 19 ज़िले बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हैं, जिनमें अररिया, सीतामढ़ी, पश्चिमी चंपारण एवं गोपालगंज प्रमुख हैं। पूरे राज्य में बाढ़ से अब तक 500 से भी ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और एक करोड़ से भी ज़्यादा लोग प्रभावित हुए हैं। ऐसा नहीं है कि बाढ़, इतने बड़े स्तर पर पहली बार आई हो, साल 1954 के बाद से लगभग हर साल नियमित रूप से बारिश के महीनों मे बिहार के किसी न किसी हिस्से में बाढ़ आती ही रही है। कभी स्थिति नियंत्रण मे रहती है तो कभी सरकार की सारी तैयारियां विफल हो जाती हैं। 2004 से लेकर अब तक राज्य मे सिर्फ़ बाढ़ से ही लगभग 2200 लोगों की मौत हो चुकी है।

मुंबई जैसे बड़े शहर मे आई बाढ़ से 2015 मे चेन्नई मे आई बाढ़ याद आ जाती है। हालांकि तब मैं चेन्नई मे नहीं था, लेकिन यहां आने के बाद लोगों के व्यक्तिगत अनुभव सुनने के बाद उस बाढ़ की विभीषिका का पता चल जाता है। एक दुकान वाले से जब मैंने इसकी विस्तृत जानकारी लेनी चाही तो उन्होंने बताया, “पूरा शहर एक तालाब बन चुका था, जिधर भी नज़र उठाओ बस पानी ही पानी दिखता था। ट्रेन, बस ,एयरपोर्ट आदि आवागमन की सारी सुविधाएं बंद हो चुकी थी। आर्मी, नेवी, वायुसेना, राष्ट्रीय आपदा मोचन बल की कई सारी टुकड़ियां एक साथ काम कर रही थीं।”

मुंबई मे आई हालिया बाढ़ की स्थिति भी कमोबेश चेन्नई जैसी ही है, क्यूंकि इन दोनों ही शहरों की भौगोलिक स्थिति भी काफी मिलती जुलती है। एक कोरोमंडल तट के किनारे बसा है तो दूसरा अरब सागर के किनारे और दोनों ही शहर औद्योगिक दृष्टि से भी काफ़ी महत्वपूर्ण हैं।
चेन्नई मे आई बाढ़ की मुख्य वजहें, बहुत कम समयांतराल मे बहुत अधिक बरसात होना, नदियों और नहरों के नज़दीक अतिक्रमण बढ़ना, और जल निकासी व्यवस्था की खराब स्थिति होना थीं तो मुंबई मे आई बाढ़ की वजहें भी यही हैं।

गोपालगंज का बाढ़ प्रभावित इलाका; फोटो आभार: अरविंद सोनी

हालांकि बाढ़ से उत्तरी और पूर्वोत्तर के हिस्सों में हुआ भारी नुकसान, मुंबई की बाढ़ की तुलना में काफी ज़्यादा है लेकिन फिर भी मीडिया में बिहार या असं में आई बाढ़ पर कोई ख़ास कवरेज नहीं की गई। तुलनात्मक रूप से इन गरीब राज्यों में आई बाढ़ की तरफ किसी का ध्यान नहीं जा रहा, यहां की समस्याओं को सिर्फ़ आंकड़ो मे दिखाकर छोड़ दिया जा रहा है। इतने मरे, इतने बेघर, इतने लापता! हर साल इतने बड़े स्तर पर बाढ़ से होने वाली तबाही के बावजूद बिहार, असम या उत्तर प्रदेश में आई बाढ़ पर मीडिया का इसे तवज्ज़ो नहीं देना चिंताजनक तो है ही साथ ही ये मीडिया की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े करता है।

अब सवाल ये है कि मुंबई, चेन्नई या फिर बिहार की बाढ़ मे फर्क क्या है? फर्क कुछ भी नहीं है! लोग चेन्नई मे भी मरे थे, मुंबई मे भी मरे हैं और लोग बिहार में भी मरे हैं। लेकिन फिर क्यूं सिर्फ बड़े शहरों मे आने वाली विपदाएं ही लोगों की संवेदनाएं झकझोर पाती हैं?

बात अगर बाढ़ नियंत्रण के उपायों की करें तो बाढ़ मुक्ति अभियान के संयोजक और बाढ़ से जुड़े मामलों के विशेषज्ञ दिनेश कुमार मिश्रा के अनुसार “बाढ़ को थामने के लिए अब तक जो भी निवेश किए गए हैं, उसका प्रतिकूल असर रहा है, वह चाहे बाँधो का निर्माण हो या तटबंधों का अनावश्यक रूप से विस्तार।” 

अगर हम नीदरलैंड के बाढ़ नियंत्रण योजनाओं का अध्ययन करें तो हमें काफ़ी कुछ सीखने को मिल सकता है। नीदरलैंड भी भारत की तरह ही घनी आबादी वाला देश है और वहां भी खेती बड़े पैमाने पर होती है ऐसे मे अगर वहाँ बाढ़ आए तो सब कुछ ख़त्म हो जाएगा, लेकिन बाढ़ नियंत्रण की बेहतरीन नीतियों की वजह से वहां बाढ़ कभी आती ही नहीं।

“रूम फॉर वॉटर” ये इस देश में एक कहावत है और इस देश की बाढ़ नियंत्रण योजना भी इसी के इर्द-गिर्द घूमती है। यहाँ पानी के लिए पर्याप्त जगह छोड़ी गई है और नदियों के किनारे अतिक्रमण है ही नहीं।

हमें भी पानी के साथ रहना सीखना होगा, हमें इसके साथ सहजीवी (सिंबायोटिक) संबंध बनाने होगें, तभी जाकर बाढ़- नियंत्रण के उपाय कारगर हो सकते हैं।


अरविंद, Youth Ki Awaaz Hindi सितंबर-अक्टूबर, 2017 ट्रेनिंग प्रोग्राम का हिस्सा हैं।

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