इन दिनों भारत सहित दुनिया के तमाम माता-पिता की सबसे बड़ी चिंता उनके बच्चों की सुरक्षा को लेकर है। एक तरफ ‘ब्लू व्हेल’ अपना मुंह फाड़े उनके बच्चों को मौत के आगोश में लेने को तैयार है तो दूसरी ओर स्कूल या हॉस्टल ही नहीं घर में भी बच्चे पूरी तरह से सुरक्षित नहीं हैं। वहां भी उनका लगातार शोषण हो रहा है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर माता-पिता ऐसा क्या करें, जिससे कि उनके बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके?
9 सितंबर को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद स्थित गांव बुनियादपुर में 19 वर्षीय युवक ने फांसी लगा खुदकुशी कर ली। उससे दो दिन पहले लखनऊ में भी एक स्कूली छात्र द्वारा आत्महत्या करने की खबर आयी थी। दोनों ही मौतों का कारण ब्लू व्हेल गेम को पाया गया।
8 सितंबर को भोंडसी, गुरुग्राम स्थित रायन इंटरनेशनल स्कूल के क्लास-2 में पढ़ने वाले सात वर्षीय प्रद्युम्न ठाकुर की बेरहमी से हत्या कर दी गई। चंद रोज़ बाद दिल्ली के एक निजी स्कूल में 5 साल की बच्ची के साथ रेप की भी वारदात सामने आई। दोनों ही मामलों में कानूनी कार्रवाई जारी है।
इस तरह की घटनाएं प्रत्येक माता-पिता के साथ-साथ हर उस व्यक्ति के दिल को दहलाने के लिए काफी हैं, जो बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। समझ नहीं आता कि ये किस दुनिया में आ गये हैं हम, जहां खेल भी जानलेवा हो गए हैं? लोगों के मन में मासूम ज़िंदगियों के प्रति भी दया और सहानुभूति खत्म हो गई है।
आखिर हर जगह और हर पल तो अभिभावक अपने बच्चों पर नज़र नहीं रख सकते। ना ही इंटरनेट, मोबाइल फोन या अन्य टेक्निकल गैजेट्स छीनकर वे अपने बच्चों को घर की चाहरदीवारी में कैद करके ही रख सकते हैं। आज के ज़माने में ये दोनों ही चीजें उनके व्यक्तित्व विकास में बाधक साबित हो सकती हैं। ऐसे में बहुत ज़रूरी है कि अभिभावक खुद को उन तमाम तरह की जानकारियों से अप-टू-डेट रखें, जो उनके बच्चों की सुरक्षा और संरक्षा-दोनों के लिहाज़ से ज़रूरी हैं।
भारत में ब्लू व्हेल गेम के कारण अब तक करीब 19 और पूरी दुनिया में करीब 200 आत्महत्या के मामले सामने आ चुके हैं। साइबर एक्सपर्ट्स की मानें तो इस खेल से सबसे ज़्यादा टीनएज बच्चे प्रभावित हो रहे हैं। डॉक्टर्स की मानें, तो यह खेल उन्हीं बच्चों को अपना शिकार बना रहा है, जो या तो मानसिक रूप से किसी परेशानी से गुज़र रहे हैं या फिर खुद को बहुत अकेला पाते हैं। डिप्रेशन के शिकार बच्चे जो खुद को तकलीफ पहुंचाने से भी नहीं हिचकते, उनमें अपना सही-गलत समझ पाने की क्षमता कुंद पड़ जाती है। ऐसे बच्चे जल्दी इस खौफनाक खेल का शिकार बन जाते हैं, ऐसे में बहुत ज़रूरी है कि अभिभावक अपने बच्चों के मोबाइल यूसेज पर पैनी नज़र रखें। वे कौन सी साइट्स सर्च कर रहे हैं, कौन सा गेम खेल रहे हैं और किससे, क्या बातें कर रहे हैं, इन सबकी जानकारी अभिभावकों को होनी चाहिए।
सरकार भी इसे लेकर है गंभीर
ब्लू व्हेल गेम की दहशत और बढ़ते मामलों का देखते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करके इस पर रोक लगाने की मांग की गई है। इन याचिकाओं के मद्देनजर केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने भी फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर जैसी तमाम सोशल साइट्स को अपने पेज पर इस तरह के गेम से जुड़ी सभी तरह की सूचनाओं और खबरों को ब्लॉक करने का अनुरोध किया है। सीबीएसई द्वारा भी देश के सभी निजी स्कूलों को यह निर्देश जारी किए गए हैं कि वे अपने यहां इस तरह के अनवांटेड साइट्स को ब्लॉक करें। सरकार ने इस दिशा में जन-जागरूकता अभियान चलाने का निर्णय भी लिया है।
एक तरफ इस तरह के जानलेवा गेम्स ने अभिभावकों की नींद उड़ा रखी है, तो दूसरी ओर वे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर परेशान हैं। आखिर क्या वजह है कि तमाम तरह की सुख-सुविधाओं और सुरक्षा इंतज़ामों को अपनाने का दावा करने वाले देश के नामी-गिरामी स्कूल भी इस तरह की घटनाओं को अपने यहां होने से रोक नहीं पा रहे हैं? लगभग हर ऐसी घटना के बाद सीबीएसई द्वारा इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की सुरक्षा को लेकर कई तरह की गाइडलाइंस जारी की जाती हैं। इसके बावजूद हर बार किसी-न-किसी मासूम की ज़िंदगी दांव पर लग ही जाती है। ऐसे में अभिभावकों के लिए इन गाइडलाइंस के बारे में जानना भी ज़रूरी हो जाता है। स्कूलों के लिए अनिवार्य है कि-
- उनके कैंपस के दायरे में आनेवाली सभी प्रमुख जगहों जैसे- क्लासरूम, गैलरी, गेट, रेस्ट रूम आदि सभी स्थानों पर सीसीटीवी कैमरे लगे हों।
- स्कूलों में पढ़ाने वाले सभी शिक्षकों व कर्मचारियों का पुलिस वेरीफिकेशन हुआ हो।
- सभी कर्मचारियों सहित स्कूल प्रिंसिपल और डायरेक्टर तक के कॉन्टैक्ट नंबर की लिस्ट स्थानीय थाने के साथ ही अभिभावकों को भी उपलब्ध हो।
- स्कूल गार्ड के पास एक सेफ्टी अलार्म होना चाहिए।
- प्रत्येक स्कूल में कम-से-कम पांच गेट हों, जिनमें से दो-तीन गेट आम दिनों में तथा सारे गेट आपात स्थिति में खुलें।
- स्कूलों की चाहरदीवारी एक निश्चित मानक ऊंचाई तक हो।
- स्कूल बंद होने पर रात के समय में भी वहां कम-से-कम दो गार्ड, ड्यूटी पर हों।
- स्कूल की हर सूचना, नोटिस बोर्ड पर डिस्प्ले करने के अलावा प्रत्येक अभिभावक को इमेल के माध्यम से भी दी जाए।
- महीने में एक बार पैरेंट-टीचर्स मीटिंग हो, जिसमें अभिभावकों को उनके बच्चों की पढ़ाई-लिखाई तथा अन्य एक्टिविटीज़ के बारे में जानने का पूरा हक होगा। स्कूल प्रशासन इसके लिए मना नहीं कर सकता है।
- बसों पर ‘स्कूल बस’ तथा संस्था का नाम, रूट संख्या, स्टॉपेज का नाम, वाहन का मॉडल, चालक और परिचालक का फोन नंबर लिखा हो।
- बस अपने निर्धारित स्टॉप से पहले या बीच में कहीं नहीं रूकेगी।
- बसों की खिड़कियां बच्चों की सिर से ऊपर हों।
- बसों में अनिवार्य तौर से फर्स्ट एड बॉक्स, अग्निशमन यंत्र, स्पीड गवर्नर, खिड़कियों में जाली, डोर लॉक, सीसीटीवी कैमरा, सीट के नीचे बैग रखने की जगह व इमरजेंसी एक्ज़िट हो।
- सभी बसों के लाइसेंस, परमिट, फिटनेस, मोटरयान कर, बीमा आदि कंप्लीट हो।
इन तमाम तरह की गाइडलाइंस के बावजूद सच्चाई यह है कि शायद ही किसी स्कूल में इनका पूरी तरीके से पालन किया जा रहा है। हमारे देश में ऐसी कोई सक्षम संस्था भी नहीं है जो इन निर्देशों के अनुपालन की मॉनिटरिंग कर सके। पैरेंट्स भी अपने बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होने के डर से अक्सर सब कुछ जानते हुए भी कोई सवाल नहीं उठाते।
बच्चों के यौन शोषण की तेज़ी से बढ़ती घटनाओं को देखते हुए 2012 में राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने पॉक्सो एक्ट-2012 के तहत सरकारी तथा निजी स्कूलों को स्पेशल क्लास लगाकर बच्चों को ‘गुड टच-बैड टच’ के बारे में अनिवार्य रूप से जानकारी देने का निर्देश दिया है। इससे बच्चे अपने साथ होने वाली घटनाओं (क्राइम) की श्रेणी को समझ सकेंगे और पैरेंट के साथ शेयर कर सकेंगे। ऐसी शिकायतों को दर्ज करने के लिए ऑनलाइन सेवा (POCSO e-Box) की शुरुआत भी की गयी है।
आजकल फेसबुक, व्हाट्स एप्प, यूट्यूब आदि पर भी ऐसे कई एनिमेटेड वीडियोज़ मिल जाएंगे, जिनके माध्यम से आप अपनी और बच्चे की समझ बढ़ा सकते हैं, ताकि किसी अनहोनी के प्रति आप सतर्क हो सकें।
पिछले कई सालों से जिस तरह से आए दिन हमें ऐसी कई घटनाएं देखने, सुनने या पढ़ने को मिल रही हैं ऐसे में अगर अब भी हम नहीं चेते तो फिर कब? वक्त आ गया है कि हम सरकार से, स्कूल प्रशासन से और हर उस संस्था या इंसान से खुल कर सवाल जबाव करें, जिसके हाथों में हमने अपने बच्चों की ज़िम्मेदारी सौंप रखी है। अगर कहीं से भी कुछ गलत लगता हो, तो तुरंत उसके खिलाफ एक्शन लें।
बच्चों के पास अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए शब्दों की कमी होती है, ऐसे में हो सकता है वह इशारों में या फिर किसी और तरीके से आपको अपनी परेशानी बताने की कोशिश कर रहा हो, लेकिन आप उसे उसकी शरारत या बचपना मान कर इग्नोर कर देते हों। जबकि उनकी हर फीलिंग्स को समझने की ज़रूरत है। अपने बच्चों की हरेक एक्टिविटीज़ पर भी पैनी नज़र रखें, उनके साथ हर मसले पर खुलकर बात करें। उन्हें ‘गुड टच और बैड टच’ के बारे में बताएं, उनके साथ अधिक से अधिक समय बिताएं। वे क्या कर रहे हैं, कहां जा रहे हैं, किन लोगों से मिल रहे हैं, इस बात की पूरी जानकारी रखें। सबसे ज़रूरी, उनकी बात सुनें। याद रखिए आपकी सतर्कता और सावधानी ही आपके बच्चे का सबसे बड़ा सेफ्टी मेजर है।
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