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IPL और कबड्डी लीग छोड़ क्यों दर्शक नहीं जुटा पा रहे अन्य स्पोर्ट्स लीग

क्रिकेट के सबसे छोटे फॉर्मेट में खेले जाने वाले टूर्नामेंट इंडियन प्रीमियर लीग की तर्ज पर देश में एक-एक कर कई स्पोर्ट्स लीग का लांच हुआ। भारत में जहां क्रिकेट को धर्म की तरह पूजा जाता है, वहां अन्य खेलों की लीग को खेलप्रेमियों तक पहुंचाना आयोजकों के लिए बेहद चुनौतिपूर्ण थी। ऐसे में IPL के बाद साल 2013 में हॉकी इंडिया लीग की शुरूआत हुई। आलोचकों की माने तो पहले संस्करण में ही हॉकी प्रेमियों ने इस लीग पर अपना पूरा-पूरा प्यार लुटा दिया। जैसे-जैसे हॉकी इंडिया लीग अपने अगले संस्करण की ओर बढ़ता चला गया वैसे-वैसे यह लोगों को स्टेडियम तक खींच पाने में असफल साबित हुआ।

साल 2014 में एक साथ दो लीग “इंडियन सुपर लीग” और “प्रो कबड्डी लीग” का शुभारंभ किया गया। भारत की नेशनल फुटबॉल टीम पिछले काफी समय से अपने खराब परफॉर्मेंस की वजह से हाशिए पर है, वहीं इंडियन सुपर लीग का फ्लॉप होना कोई चौंकने जैसी बात नहीं है। हालांकि नॉर्थ ईस्ट और कोलकाता में आईएसएल का क्रेज आज भी देखने को मिलता है।

साल 2014 में जब प्रो कबड्डी लीग का आगाज़ हुआ तब लोगों ने इस लीग को भरपूर प्यार दिया। यह एकमात्र ऐसी लीग है जिसे IPL के बाद सबसे सफल मानी जाती है। इसकी सफलता को देखते हुए अब आयोजक इसे वर्ष में दो बार ऑर्गेनाइज करा रहे हैं।

साल 2013 में इंडियन बैडमिंटन लीग की शुरूआत की गई, जो अब प्रीमियर बैडमिंटन लीग के नाम से जाना जाता है। साइना नेहवाल और पीवी सिंधु जैसी भारत की स्टार बैडमिंटन खिलाड़ी से सुसज्जित पीबीएल भी अपनी पहचान खोता नज़र आ रहा है।

प्रो कबड्डी लीग के बाद यदि लोगों ने किसी लीग पर अपना प्यार न्यौछावर किया है तो वह है साल 2015 में लांच हुई “”प्रो रेसलिंग लीग”। इसके अलावा साल 2016 में लांच हुई “प्रीमियर फुटसॉल लीग” के आयोजन की तारीख तक खेलप्रेमियों के ज़हन में नहीं रहती।

साल 2016 में भारतीय महिला फुटबॉल टीम को बढ़ावा देने के उदेश्य से ऑल इंडिया फुटबॉल फेडरेशन ने “इंडियन वुमेन्स लीग” की शरूआत की। मैच के दौरान स्टेडियम पर मोबाईल फोन के नंबर्स की संख्या में भी लोग बड़ी मुश्किल से दिखाई पड़े।

इस विषय पर हमने बात की महिला एथलीट अंजू बॉबी जॉर्ज से, जिन्होंने साल 2003 में पेरिस में आयोजित वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में देश को पहला पदक दिलाया था। वे बताती हैं कि कबड्डी लीग का आयोजन देश भर में कहीं भी कराया जा सकता है। इसके लिए आउटडोर स्टेडियम की ज़रूरत नहीं है। इसके अलावा ज़्यादातर कबड्डी फैंस ने कबड्डी खेल को बचपने में खेला है। उन्हें गेम के बारे में आसानी से पता लग जाता है। वहीं फुटबॉल इंडोर स्टेडियम में नहीं खेला जा सकता। इसके अलावा किसी भी लीग के आयोजन से पहले ज़रूरी है कि आयोजक पहले लोगों को खेल के बारे में बाताएं।

इंटरनेशनल शूटर अनीसा सैयद मानती हैं कि जब तक स्कूलों के पाठ्यक्रमों में खेलों के अध्याय को नहीं शामिल किया जाता, तब तक लीग्स के सुनहरे युग की कल्पना नहीं की जा सकती। फेडरेशन्स को ज़रूरत है पहले वे खेल प्रेमियों के बीच लीग्स को लेकर जागरूकता फैलाएं।

हरियाणा की स्टार बॉक्सर स्वीटी बूरा की माने तो लोग कबड्डी, बॉक्सिंग और रेस्लिंग जैसे गेम्स में ज़्यादा रूचि दिखाते हैं। उन्हें रिंग के अंदर दो पहलवानों के बीच की लड़ाई देखने में अधिक मज़ा आता है। वहीं कबड्डी खेल के बारे में खेलप्रेमियों को सबकुछ पता होता है। मैं हमेशा से मानती आई हूं कि किसी भी लीग के आगाज़ से पहले लोगों को इसके बारे में अधिक जानकारी देनी चाहिए ताकि लोग इस स्पोर्ट्स से जुड़ें।

गौरतलब है कि साल 2016 में ब्राजील के शहर रियो डी जेनेरियो में हुए रियो ओलिंपिक में भारत का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा। खेलों के इस महाकुम्भ में देश की झोली में सिर्फ दो मेडल आए। ऐसे में साल 2020 के टोक्यो ओलिंपिक खेलों से पहले यदि भारत में स्पोर्ट्स की तस्वीर नहीं बदली तब वाकई में विश्व के मानचित्र पर भारतीय स्पोर्ट्स फिसड्डी साबित हो जाएगा।


फोटो आभार: facebook पेज ISL, HIL, PBL 

प्रिंस, Youth Ki Awaaz Hindi सितंबर-अक्टूबर, 2017 ट्रेनिंग प्रोग्राम का हिस्सा हैं।

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