आज उपभोक्ता जमाखोरी, कालाबाज़ारी, मिलावट, बिना मानक की वस्तुओं की बिक्री, अधिक दाम लेना, गारंटी के बाद सर्विस नहीं देना, ठगी, कम नाप-तौल आदि जैसी समस्याओं से अक्सर घिरे रहते हैं। इन्हीं समस्याओं को देखते हुए ‘उपभोक्ता संरक्षण’ के लिए कई नियम और कानून बनाए गए हैं। लेकिन जो लोग जमाखोरी, कालाबाज़ारी, मिलावटखोरी इत्यादि जैसे गैरकानूनी काम करते हैं, उन्हें राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है। चूंकि उपभोक्ता संगठित नहीं होते हैं इसलिए उन्हें हर जगह ठगा जाता है। दोषी व्यक्ति या कम्पनी कानून की नज़र से साफ़ बच निकलते है या उन पर कोई कार्रवाई नही हो पाती है। उपभोक्ता आन्दोलन की शुरूआत अब होनी ही चाहिए और यह तब ही सम्भव होगा जब देश का हरे एक उपभोक्ता जागरूक होगा।
असली और नकली वस्तुओं का रहस्य किसी तिलस्म से कम नहीं है। एक साधारण उपभोक्ता तो फर्क ही नहीं कर पाता कि असली और नकली वस्तु का फर्क क्या है! खुले बाज़ार में बिक रही चीजों के बीच फर्क कर पाना बेहद मुश्किल हो गया है। मिलावट के इस उपभोक्तावादी बाज़ार मे फल, सब्जी, अनाज, घरेलू इस्तेमाल की चीज़ें, दवाइयां, इलेक्ट्रॉनिक सामान आदि वस्तुओं मे अक्सर मिलावट की जाती है या नकली चीजें बेचीं जाती हैं और उसके दाम भी पूरे लिए जाते हैं।
किसी भी देश की ‘मुद्रा’ उस देश की अर्थव्यवस्था और बाज़ार की रीढ़ होती है। नकली मुद्रा किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को कमज़ोर कर देती है। भारतीय बाज़ार मे बेतहाशा नकली मुद्रा के प्रसार ने सरकार को ‘नोटबंदी’ के लिये विवश किया, इसके बावजूद नकली मुद्रा का करोबार थम नही रहा है।
खाने-पीने की चीजों में बड़ी आसानी से मिलावट की जाती है। जो चीज़ें खुले बाज़ार से हम खरीद रहे हैं, वह वाकई में खाने लायक है या फिर पैसे चुकाने के बाद भी कोई लालची इंसान अपनी दुकान से कूड़ा-कबाड़ा और सड़ा हुआ ‘खाद्य पदार्थ’ देकर हमें बीमार करके किसी अस्पताल तक पंहुचा रहा है। इससे हमें शारीरिक और आर्थिक दोनों ही तरह की हानि उठानी पड़ रही है।
ऐसे ‘मिलावटखोरों’ को कोई चिंता नहीं कि इन चीज़ों से समाज के लोग कमज़ोर और बीमार हो सकते हैं। बच्चे हमारा भविष्य होते हैं और हर मां-बाप अपने बच्चे को शारीरिक रूप से मजबूत देखना चाहते हैं। दूध बच्चो के शारीरिक विकास में मदद करता है जिसकी पुष्टि डॉक्टर भी करते हैं। लेकिन नकली दूध बनाने वाले इन मौत के सौदागरों को यह एहसास तक नहीं होता कि वे मासूम ज़िंदगियों से खेल रहे हैं। मिलावट का बाज़ार इतना गरम है कि ज़्यादा मुनाफा देखते हुए नैतिकता के स्तर से नीचे गिरकर बाज़ार में नकली वस्तुओ की खेप से लोगों को धोखा दिया जा रहा है।
कुछ सालों पहले मेरे एक दोस्त ने बताया कि आजकल बाजार में नकली अंडे, नकली चावल बिक रहे हैं। पहले तो मुझे विश्वास नहीं हुआ लेकिन जब मैंने कुछ वीडियो देखे तो यकीन हुआ की यह बात सच है। कितनी घटिया सोच है यह, अपने फायदे के लिए किसी के जीवन के साथ खिलवाड़ करने का अधिकार किसी को भी नहीं है। सरकार द्वारा ऐसे दोषियों पर कठोर कार्रवाई होनी चाहिए।
हर वर्ष भारत में होली, दिवाली आदि त्योहारों में भारी मात्रा में ‘नकली खोया’ और ‘नकली मिठाइयां’ पकड़ी जाती हैं। मीडिया में इन ख़बरों की भरमार होती है कि अमुक जगहों से खाने में मिलावटी वस्तुए पकड़ी गई। लेकिन अजीब बात है कि मिलावट करने वाले लालची लालाओ पर ‘खाद्य निगरानी विभाग’ की नज़र नहीं पड़ती। जब ऐसे बेईमान लोग खाद्य निगरानी विभाग के शिकंजे से निकल जाते हैं तो मुझे बड़ा अजीब लगता है।
सरकारी नियमों के मुताबिक व्यापारियों के लिए ‘रजिस्ट्रेशन फूड सेफ्टी एक्ट’ के तहत कई नियम बनाए गए हैं। खाद्य आपूर्ति विभाग किसी भी शहरी या ग्रामीण क्षेत्र के व्यापारियों के लिए सुरक्षा व सावधानी के सभी मानक को तैयार करता है। राज्यों के व्यापारी अगर किसी मेले या उत्सव में अपने पकवानों के स्टाल लगाते हैं तो ऐसी जगहों पर ‘खाद्य एवं सुरक्षा विभाग’ की विशेष निगरानी होनी चाहिये। लेकिन ऐसा लगता है कि ‘निगरानी विभाग’ के होने के बावजूद बाज़ारों मे नकली और मिलावटी चीज़ें बाजार में खुलेआम बिक रही हैं।
24 दिसम्बर 1986 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पहल पर ‘उपभोक्ता संरक्षण विधेयक’ संसद में पारित किया गया था। इस अधिनियम के अधीन पारित आदेशों का पालन ना किए जाने पर धारा 27 के तहत कारावास व जुर्माना और धारा 25 के तहत कुर्की का प्रावधान किया गया है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अनुसार कोई व्यक्ति जो अपने उपयोग के लिये सामान या सेवाएं खरीदता है, वह उपभोक्ता है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अनुसार-
फोटो प्रतीकात्मक है।
फोटो आभार: getty images
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