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“होली में सेफ्टी के नाम पर हम लड़कियों को हॉस्टल में कैद क्यों कर दिया जाता है?”

लड़कियों के साथ BHU में छेड़छाड़ होने पर जब लड़कियां धरना प्रदर्शन करती हैं, तो कोई इसे वामपंथी अतिवाद की साज़िश कहता है, तो कोई अराजक प्रकृति के लोगों द्वारा कैम्पस का माहौल खराब करने की कोशिश। ज़्यादातर लोगों को तो लड़कियों के साथ छेड़खानी की घटना इतनी बड़ी समस्या ही नहीं लगती कि उसके लिए धरने पर बैठा जाए। इसलिए तो ऐसे बयान आते हैं, “अरे छुआ ही तो था।”

ये घटनाएं इतनी सामान्य नहीं हैं जितनी आसानी से कहने वाले कह देते हैं। कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में इसके कई रूप देखने को मिलते हैं। मैंने यूनिवर्सिटी में कदम रखते ही इसे महसूस किया था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में स्नातक का प्रवेश यूनिवर्सिटी के प्रमुख भवन से हटके लल्ला चुंगी से फाफामऊ जाने वाली रोड से अंदर जा के बना है।

प्रवेश के लिए आने वाली लड़कियों के दिमाग में कितने सपने और मन में कितना उल्लास होता है कि वो आज एक केंद्रीय विश्वविद्यालय में पढ़ने जा रही हैं, आज से उनके भविष्य को एक नई दिशा मिलेगी। हर साल आने वाली तमाम लड़कियों की तरह मैं भी उस दिन अपने प्रवेश के लिये प्रवेश भवन पहुंची और देखा कि वहां 3-4 लड़कों के कई ग्रुप वहां लड़कियों की सहायता करने के लिए खड़े मिलते हैं।

वास्तव में यह सहायता इस प्रकार की होती है, ‘अरे मैडम कउन सा विषय पढ़ना चाहती हैं, कोई दिक्कत हो तो हमको ज़रूर बताइयेगा। लड़की को सहायता चाहिए या न चाहिए वो उनसे खटमल की तरह चिपक जाते हैं, और ये तय कर लेते हैं कि कौन तेरी वाली है कौन मेरी वाली है।

फिर उसको कैंपस में वे हर तरफ दिखाई देंगे, साये की तरह। खूब भद्दे कमेंट करेंगे, साथ वाले लड़कों से कहेंगे देख तेरी भाभी जा रही है। और ऐसी गंदी मुस्कान और चीर देने वाली नज़र से देखेंगे कि हमे लगता है कि हम इन चील जैसी नज़रों से बच के कहां जा कर छुप जाए। इनके डर से हम रास्ता बदल देते थे। इंतहा तो तब हो जाती थी जब ये लोग क्लास में घुसकर सीट के पीछे बैठ के कमेंट करते रहते हैं।

ऐसे हालात में कोई लड़की जो अभी-अभी अपना घर छोड़ के बाहर आई है वो अपने अंदर के ना जाने किस-किस डर से अंदर ही अंदर लड़ने की कोशिश कर रही है। उसके सामने ऐसी स्थितियां आ जाए तो न वो उसको झेल पाने के लिए तैयार है ना तो वो घर पे इस बात का जिक्र कर सकती है।

ऐसा इसलिए क्योंकि उनके दिमाग मे तुरंत उनके घर से निकलते समय परिवार और मां बाप द्वारा दी गई तमाम शिक्षा याद आने लगती है कि ‘बिटिया संभल के रहना’, हमारे परिवार की और सात पुश्तों की इज़्ज़त तुम्हारे हाथ में है’, बिटिया पैर ना फिसले और सबसे बड़ी बात ‘लड़की खुली तिजोरी की तरह होती है’।

अब ऐसे में तो हमको यही डर लगा रहता है कि कहीं जितनी लड़ाईयां लड़ के हम घर से बाहर आए हैं सब पर यहीं विराम न लग जाए। हमारी उड़ान शुरू होने से पहले ना समाप्त हो जाए। ऐसे में हम केवल घुटते रहते हैं। इससे हमारी क्षमता और प्रदर्शन दोनों प्रभावित होती है। फिर भी हम लड़कियां कई स्तरों पर स्वयं से और परिस्थितियों से लड़ती रहती है।

प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो साभार: सोशल मीडिया

लड़कों के हॉस्टल हमको आतंक के भवन लगते थे। उनके हॉस्टलों से 20-25 मीटर पहले ही हमारी गति तेज़ हो जाती थी और हम उधर से गुज़रते हुए कभी भी उनके हॉस्टलों की तरफ देखते तक नहीं थे। कितने सालों तक तो हमने देखा ही नहीं कि उनकी इमारतें कैसी हैं।

सबसे ज़्यादा लड़कियों की छेड़खानी की घटनाएं  इन्ही आतंक भवनों के सामने होती थी। कभी किसी लड़की का  रास्ता रोक के खड़े हो जाते थे तो कभी किसी का रिक्शा रुकवा लेते हैं। पर प्रशासन को कभी इनकी कोई खबर नहीं रहती थी । बदले में हम लोगों को ही हॉस्टल की चारदीवारी के अंदर चार चार दरवाजों के अंदर कैद कर दिया जाता है ।

त्यौहारों के मौसम में हर कोई हर्षित उल्लासित होता है लेकिन ये मौसम हॉस्टल में रुकने वाली लड़कियों के लिए सज़ा हो जाती है। खासकर होली के त्योहार में 4 से 5 दिनों के लिए हमें दिन-रात हॉस्टल के अंदर कैद कर दिया जाता है और बाहर हर हॉस्टल के लड़के अपने-अपने हॉस्टलों की होली निकालते हैं जिसमें वे अर्धनग्न होकर हमारे हॉस्टलों के सामने आकर हमारी चारदीवारियों पर चढ़कर नाचते हैं, हमे चिढ़ाते हैं।

उस समय हमें यही प्रतीत होता है कि हम कितने असहाय है। हमारी सुनने वाला कोई नहीं है। आज तक यही सुना था कि जब कोई जानवर अराजकता फैलाता है तो उसे बांध दिया जाता है ताकि बाकी लोग सुरक्षित रह सकें। पर पहली बार जाना कि हमे इसलिए कैद किया जाता था ताकि ये अपनी मनमानी कर सकें, हमे मुह चिढ़ा सके।

हम लोगों ने कितनी बार इसके खिलाफ अपनी अधीक्षिकाओं से बात की। विश्वविद्यालय प्रशासन से बात की परंतु हमेशा ये कहकर उन लोगों ने हमारी बातों को टाल दिया कि यह वर्षों से चला आ रहा है ये नहीं बदला जा सकता है। और ये तुम लोगों की सुरक्षा के लिए ही तो है। जब हमने कहा हमारी सुरक्षा के लिए आप सुरक्षा गार्ड बढाइये और महिला गार्ड्स रखिये। ये कौन सा अमानवीय तरीका है कि हमे ही सुरक्षा के नाम पर कैद कर दिया जाए? पर आज भी यही स्थिति बनी हुई है।

प्रतीकात्मक तस्वीर।

इसी तरह हमारे विश्वविद्यालयों में जो मठाधीश बैठे हैं उनको हमारी ना सुनने और अपने मन की करने की ही आदत हो गई है। इसलिए इनके इस रवैये को तोड़ने के लिए हमारे साथ आएं, हर कदम पर विरोध की ज़रूरत है। ये हमें तोड़ना चाहते हैं पर अब हम एकजुट हैं और उसी एकजुटता का नतीजा है BHU में हुआ विरोध प्रदर्शन। जिस तरह पहले अपने साथ होने वाले दुर्व्यवहार का विरोध करने वाली किसी लड़की को ही चरित्रहीन घोषित कर ये अपने मनमानेपन को पुष्ट करते थे वो अब नही चलेगा।

फोटो प्रतीकात्मक है, आभार- फेसबुक पेज AISA Allahabad University


अमिता  Youth Ki Awaaz Hindi सितंबर-अक्टूबर, 2017 ट्रेनिंग प्रोग्राम का हिस्सा हैं।

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