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क्या ‘ताकतवरों की शिक्षा’ ही ‘ताकतवर शिक्षा’ होती है?

शिक्षा के प्रसार और प्रभाव का आकलन* प्रायः मात्रात्मक* आंकड़ों के आधार पर किया जाता है। ये आंकड़े समय के सापेक्ष* नामांकन के दर में कितनी वृद्धि हुई? किस सामाजिक पृष्ठभूमि*, जाति और जेण्डर के कितने विद्यार्थी औपचारिक* शिक्षा में शामिल हो चुके हैं? जैसे सवालों का उत्तर देते हैं। इन पैमानों पर भारत में औपचारिक शिक्षा के प्रसार की दशा और दिशा सराहनीय* बतायी जाती है। कई बार ड्रॉपआउट दर के चौंकाने वाले आंकड़ें इस तरह की सराहना पर प्रश्न चिन्ह लगाते हैं। इन मात्रात्मक विश्लेषणों* की एक सीमा यह है कि वे विद्यार्थियों के शैक्षिक अनुभवों के बारे में कुछ खास नहीं बताते हैं।

हाल में एक साक्षात्कार* के दौरान अनेक स्नातक* विद्यार्थियों के शैक्षिक अनुभवों को जानने का मौका मिला। इनके अनुभव भारतीय शिक्षा व्यवस्था की अनकही कहानी कहते हैं। इन विद्यार्थियों में से अधिकांश की विद्यालयी और उच्च शिक्षा महानगरों के सरकारी संस्थानों में हुई थी। ये कलावर्ग के विद्यार्थी थे। इनकी स्नातक शिक्षा ‘दूर शिक्षा’* और ‘मुक्त शिक्षा’* के माध्यम से हुई थी। इस दौरान दिन में अर्थात जब इनके हमउम्र अन्य विद्यार्थी कैम्पस, कैंटीन, और फ्रेशर्स में मस्त थे ये अपने परिवार की आर्थिक ज़रूरतों को पूरा करने में व्यस्त थे।

प्रथम दृष्टया* इसकी व्याख्या इस तरह की जा सकती है- परिवार की ज़िम्मेदारियों के चलते इनकी औपचारिक शिक्षा द्वितीयक स्थान पर आती है। अतः रोज़गार और कमाई करना इनका पहला मकसद था। इसके बावजूद ये अभिप्रेरित* हैं और शिक्षा के मूल्य को समझते हैं। इसलिए शिक्षा को किसी भी हाल में जारी रखना चाहते थे। इस तरह की व्याख्या ज्ञान की ताकत और राजनीति को विश्लेषण से बाहर कर देती है। हम इनकी असफलता को स्वाभाविक घटना मानते हैं जिसमें शिक्षा व्यवस्था की भूमिका नहीं है। यह व्याख्या संसाधन की उपलब्धता और सीखने की सुलभता पर आधारित है जिसके अनुसार सीखने के लिए सांस्कृतिक और सामाजिक पूंजी की उपलब्धता आवश्यक है।

इन विद्यार्थियों के संदर्भ में सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि वे प्रतिष्ठित* महाविद्यालयों में प्रवेश के लिए अपनी पात्रता* नहीं सिद्ध कर पाए। इस तरह से वे ज्ञानार्जन के एक औपचारिक संस्कृति के भागीदार नहीं बन सके।

यह तर्क दिया जा सकता है कि उन्होंने शिक्षा के लिए अपने संघर्ष को वैकल्पिक माध्यमों से जारी रखा। लेकिन माइकल यंग जैसे समाजवैज्ञानिक इसकी एक भिन्न व्याख्या* प्रस्तुत करते हैं। इनके अनुसार औपचारिक शिक्षा की विषय आधारित सीखने-सिखाने की संस्कृति जो एक व्यवस्थित* संरचना के अनुरूप संस्थागत* ढांचे में संचलित होती है वह अपने भागीदारों को एक खास प्रकार का ज्ञान प्रदान करती है जिसे वे ताकतवर ज्ञान की संज्ञा देते हैं। ताकतवर ज्ञान की संकल्पना* को एक उदाहरण द्वारा समझा जा सकता है। इन विद्यार्थियों से साक्षात्कार में जो सवाल पूछे जा रहे थे उनमें से अधिकांश विषय आधारित, संदर्भ निरपेक्ष, अमूर्त और सैद्धान्तिक ज्ञान पर आधारित थे। इस तरह के सवाल साक्षात्कार ले रहे इंसान को ज्ञान की सत्ता और जानने वाले को ज्ञान के अधिकारी की भूमिका में प्रस्तुत करते हैं। इन सवालों का ‘सही जवाब’, जवाब देने वाले को ताकतवर ज्ञान का ‘धारक’ होने की पात्रता प्रदान करता है और ‘गलत उत्तर’ ज्ञानहीन बनाता है।

यही ताकतवर ज्ञान, विचार और कर्म के माध्यम से व्यक्ति को सशक्त करता है क्योंकि इसके माध्यम से विद्यार्थी को नई आर्थिक और सामाजिक भूमिकाएं निभाने का पात्र समझा जाता है। जो विद्यार्थी इस मुख्यधारा में शामिल नहीं हो पाते हैं वे ताकतवर ज्ञान और इसके फलों से वंचित हो जाते हैं। इन विद्यार्थियों के साथ भी यही हुआ। एक बार व्यवस्था के बाहर होने के बाद व्यवस्था इन्हें लगातार हाशिए पर ढकेल रही थी। इसी का प्रमाण यह है कि इनमें से अधिकांश विद्यार्थी परास्नातक* स्तर पर पुनः प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रवेश पाने में असफल रहे।

इस बार मुक्त शिक्षा या दूर शिक्षा के माध्यम को न चुनकर इन विद्यार्थियों ने रोज़गार परक शिक्षा का रास्ता चुना। इस स्थिति में इन्होंने शिक्षक बनने की ठानी। इस व्यवसाय के चुनाव के कारण को उनके अनुभवों द्वारा समझा जा सकता है। इनका वर्तमान रोज़गार कौशल आधारित था जैसे- कम्प्यूटर टाइपिंग, ड्राइविंग और डिलवरी मैन इत्यादि। इस तरह के रोज़गारों में वे नहीं बने रहना चाहते। कारण कि इन्हें ‘सम्मानित’ नहीं समझा जाता। इसलिए ये कुशलता आधारित रोज़गार से ज्ञान आधारित रोज़गार की ओर बढ़ना चाहते हैं। इसके दो निहितार्थ* हैं। प्रथम, इससे प्रमाणित होता है कि कुशलता आधारित रोज़गारों की सामाजिक स्वीकृति* नहीं है। द्वितीय, इनके लिए शिक्षक बनना एक ऐसे पेशे को अपनाने के रूप में देखा जाना चाहिए जो इनके लिए ताकतवर समूह में प्रवेश का रास्ता खोलता है। इनके लिए ताकतवर का अर्थ ‘शोषण और वर्चस्व’ न होकर अपनी स्वायत्तता पाने का लक्ष्य था जहां ज्ञान के धारक होने के कारण उन्हें अपनी आवाज़ और विचारों को रखने का अधिकार मिले।

यह भी उल्लेखनीय है कि ये विद्यार्थी महानगरों के रहने वाले थे। महानगरों के श्रेष्ठ संस्थानों में प्रवेश न हो पाने के कारण ये दूर-दराज के कस्बाई संस्थानों में प्रवेश के लिए तैयार थे। इस प्रवृत्ति की तह में जाए तो आप पाएंगें कि महानगरीय केन्द्रों में कुछ अच्छे सरकारी संस्थान हैं। इनकी प्रवेश परीक्षाओं के लिए सीटों की संख्या सीमित हैं और असंख्य आवेदन आते हैं।

जब कोई गरीब, दलित, मुस्लिम या महिला टॉप करती है तो इन अपवादों का महिमा मंडन किया जाता है। इन अपवादों को छोड़ दें तो इस तरह के असंख्य विद्यार्थियों के हाथ असफलता लगती है। इस स्थिति में इन्हें महानगरों के बाहर ऐसे संस्थानों का रूख करना पड़ता है जहां प्रवेश प्रक्रिया में मारा-मारी ना हो।

कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो ये श्रेष्ठ संस्थान कमज़ोर सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले विद्यार्थियों की पात्रता को खारिज कर देते हैं। इसका कारण शिक्षा को लेकर हमारी व्यवस्था की मान्यता है जिसके अनुसार ‘शिक्षा’ एक सुविधा है। पढ़ने की इच्छा रखने वाले व्यक्ति के रोज़मर्रा के जीवन में शिक्षण गतिविधि ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण गतिविधि होनी चाहिए। इनके पास इतनी फुर्सत हो कि वे अन्य गतिविधियों को रोककर शिक्षण संस्थानों में उपस्थित रहें। यदि अपनी सामाजिक-सांस्कृति-आर्थिक पृष्ठभूमि के कारण वे इन शर्तों को पूर्ण नहीं कर पा रहे हैं तो मुख्यधारा की उच्च व व्यावसायिक शिक्षा इन्हें हाशिए पर ढकेल देगी।


1) आकलन – एक अंदाज़ा लगाना, Estimation. 2) मात्रात्मक – संख्या बताने वाला, Quantitative  3)  सापेक्ष – तुलनात्मक, Proportional.  4) पृष्ठभूमि – पीछे की कहानी, Background.  5) औपचारिक – Formal. 6) सराहनीय- प्रशंसा के योग्य, Commendable. 7) विश्लेषण – छान-बीन करना, Analysis. 8) साक्षात्कार – इंटरव्यू,  Interview. 9) स्नातक – अंडरग्रैजुएट, Under Graduate. 10) दूर शिक्षा – Distance Learning/Education. 11)  मुक्त शिक्षा – Open Learning. 12) प्रथम दृष्टया – At First Sight. 13) अभिप्रेरित – प्रेरित, Motivated. 14) प्रतिष्ठित – सम्मानित, Prestigious. 15) पात्रता – योग्यता, Eligibility. 16) व्याख्या – विवरण, Explanation. 17) व्यवस्थित – Systematic. 18) संस्थागत – Institutional. 19) संकल्पना – धारणा, Concept. 20) परास्नातक – Post Graduation

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