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माफ करना गौरी हमारे यहां पत्रकारों की मौत मुद्दा नहीं महज़ आंकड़ा है

बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे
बोल ज़बां अब तक तेरी है
बोल कि सच ज़िंदा है अब तक
बोल जो कुछ कहने है कह ले

फैज़ अहमद फैज़ की ये पक्तियां हिम्मत देती हैं सच बोलने की, अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने की। लेकिन आज इन आवाज़ों को बंदूक की गोली से चुप कराने की पूरी साज़िश रची जा रही है। मंगलवार की रात इसी साज़िश की शिकार हुईं वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश।

मंगलवार रात 8 बजे गौरी लंकेश की घर के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई। गौरी बेंगलुरू में रहती थी और जब राज राजेश्वरी नगर में अपने घर लौटकर दरवाज़ा खोल रही थीं, तब हमलावरों ने उनके सीने पर दो और सिर पर एक गोली मारी। खबरों के अनुसार, गौरी पर सात बार गोलियां चलाई गई थी, जिनमें चार गोली निशाने से चूक गई और घर की दीवार पर जाकर लगी। कर्नाटक में सांप्रदायिकता के खिलाफ अपने सख्त रुख के लिए लंकेश की व्यापक पहचान है।

इस दौर में हम सिर्फ पत्रकारों की ईमानदारी पर सवाल उठाते हैं उनकी सुरक्षा पर कोई बात नहीं होती।

पिछले दिनों राम रहीम को सज़ा सुनाए जाने के बाद उनकी काली करतूतों का पर्दाफाश करने वाले पत्रकार की हत्या की खबर की भी चारों तरफ चर्चा रही। साल 2002 में राम रहीम पर लगे रेप केस की जानकारी पत्रकार रामचंद्र छत्रपति ने ही सामने लाई थी। बाद में रामचंद्र को इसकी कीमत चुकानी पड़ी और उनकी गोली मार कर हत्या कर दी गई। अब गौरी लंकेश की हत्या ने एक बार फिर सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर मुखर होकर समाज की काली ताकतों के खिलाफ अपनी कलम चलाने वाले पत्रकारों की ज़िन्दगी कब तक दांव पर लगती रहेगी।

राजदेव रंजन

पिछले साल बिहार के सिवान ज़िले में हिन्दुस्तान अखबार के पत्रकार राजदेव रंजन की भी सरेआम हत्या कर दी गई थी। राजदेव रंजन की हत्या शहाबुद्दीन के खिलाफ खबर लिखने की वजह से हुई थी। इस हत्याकांड में राजद के पूर्व सांसद शहाबुद्दीन और अन्य छह के खिलाफ सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल किया है।

सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर ने गौरी लंकेश की हत्या के बाद पत्रकारों की सुरक्षा पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा है कि मीडिया की आज़ादी तो ज़रूरी मुद्दा है ही लेकिन, मीडिया सुरक्षा उससे भी ज़रूरी विषय है।

साल 2015 की फरवरी को बांग्लादेश में ब्लॉगर अविजीत राय की निर्मम हत्या ने भी कलम की आज़ादी पर सवाल उठाया था। अमेरिका में रहने वाले बांग्लादेशी अविजीत राय ‘मुक्तोमोन’ नाम का ब्लॉग चलाते थे, जिस पर विज्ञान से जुड़ी सामग्री प्रकाशित होती थी। बांग्लादेश में वे पत्नी के साथ एक पुस्तक मेले से लौट रहे थे तभी उन पर हमला हुआ और वे मारे गए। इस हमले में उनकी पत्नी फहमीदा बन्या अहमद बुरी तरह जख्मी हुईं थीं। हमलावरों ने उनकी एक उंगली काट दी थी। इस पूरी वारदात की तस्वीरें दिल दहला देने वाली थी। किसी बांग्लादेशी ब्लॉगर की यह पहली हत्या नहीं थी। बांग्लादेश में धर्मनिरपेक्ष और खुद को नास्तिक कहने वाले छह ब्लॉगर और प्रकाशक अब तक मारे जा चुके हैं।

भारत सरकार के अनुसार साल 2014 से 2015 के बीच 142 पत्रकारों पर हमला किया गया था। सिर्फ 2014 में ही 114 पत्रकारों पर हमला हुआ था।

1992 से अबतक दुनिया भर में 1252 पत्रकारों की हत्या की जा चुकी है। जिनमें सबसे ज़्यादा इराक में पत्रकारों को बंदूक का निशाना बनाया गया है। इराक में अब तक 184 पत्रकारों की हत्या की जा चुकी है।

इस लिस्ट में दूसरे नंबर पर सीरिया है, जहां अभी तक 111 पत्रकारों की हत्या हुई है। इसके बाद फिलीपिन्स (78), सोमालिया (62), अल्जीरिया (60), पाकिस्तान (60), रूस (58), कोलंबिया (47), मैक्सिको (41) में लगातार पत्रकार मारे जा रहे हैं। हालांकि पिछले दो सालों में पाकिस्तान को पत्रकारों के लिए सबसे असुरक्षित देश माना जाने लगा है।

इंटरनेशनल न्यूज़ सेफ्टी इंस्टीट्यूट के अनुसार, अकेले 2016 में पूरी दुनिया में 115 पत्रकारों की मौत हुई थीं। जिनमें हत्या के अलावा काम के दौरान मौतें भी शामिल हैं। भारत के अलावा अफगानिस्तान, रूस, कोलंबिया जैसे देशों में हत्या की घटना देखने को मिली। अफगानिस्तान में टोलो टीवी के एंटरटेंमेंट चैनल के आठ पत्रकार को मार दिया गया था।

1992 से 2011 के डेटा की बात करें तो दुनिया भर में 882 पत्रकारों की हत्या की गई थी। जिनमें सबसे ज़्यादा इराक में (151) हत्याएं हुईं, जबकि भारत में 7 हत्याएं हुईं।

इन सबको देखते हुए लगातार पत्रकारों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठ खड़े हो रहे हैं। हत्या की घटना के अलावा छोटे-मोटे कई हमले भी देखने को मिलते हैं। कई घटनाओं का तो रिकॉर्ड भी दर्ज नहीं है। हाल ही के दिनों में पत्रकार राणा अयूब की किताब ‘गुजरात फाइल्स’ की वजह से उनपर कड़ा प्रहार किया गया। वो लगातार दक्षिणपंथियों के निशाने पर रहती हैं। रवीश कुमार के फोटो पर कालिख लगाने से लेकर उन्हें भद्दी गालियां देने जैसी घटनाएं भी हमेशा सामने आती रहती हैं।

पत्रकारों की सुरक्षा के सवाल पर फिल्ममेकर नूपुर बासु ने वेलवेट रिवॉल्यूशन नाम से एक डॉक्यूमेंट्री भी बनाई है। जिसमें उन्होंने पत्रकारों पर होने वाले हमलों को दर्शाया है। नुपूर ने महिला पत्रकारों को केंद्र में रखते हुए यह फिल्म बनाई है। उन्होंने दुनिया के अलग-अलग देशों से 6 महिला फिल्ममेकर को चुना और उन्हें अपने देश में पत्रकारों की कहानी शूट करने को कहा। इस फिल्म में दिखाया गया है कि दुनिया भर में पत्रकारों को सच्चाई सामने लाने के लिए किस तरह अपनी जान पर खेलना पड़ता है और कई बार तो परिणाम मौत के रूप में ही सामने आता है।

मीडिया और पत्रकारों के बारे में अनेक कथाएं हैं। मगर, जैसा कि ऊपर लिखित तथ्य दर्शाते हैं, यह कथ्य ही अंतिम सत्य के रूप में उभर कर सामने आता हैं कि अंततः मीडिया और पत्रकार ही वह जमात है जो दुनिया को फिर से किसी अंधेरे युग की ओर धकेले जाने के विरुद्ध सबसे बड़ा प्रतिकार है। इस प्रतिकार के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाली मीडियाकर्मी गौरी लंकेश उन अनगिनत शहीद पत्रकारों की कतार में सबसे ताज़ा मिसाल हैं।

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