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क्या गौरी, कलबुर्गी, दाभोलकर, पानसरे की हत्या का आइडियोलॉजिकल पैर्टन एक ही है

एक बेहद शालीन मगर साहसी महिला पत्रकार गौरी लंकेश की निर्मम हत्या ठीक उनके घर के बाहर दरवाज़े पर कर दी गई। कर्नाटक के डीजीपी के मुताबिक अभी ना तो हत्यारे का पता चल सका है और ना हत्या के कारण का। डीसीपी अनुचेत के अनुसार इस मामले की जांच के लिए गठित की गई तीन विशेष टीमें संदिग्ध हत्यारों की तलाश में जुटी हैं।

गौरी लंकेश की हत्या के बारे में कहा जा रहा कि आज से दो वर्ष पूर्व प्रोफेसर एमएम कलबुर्गी की हत्या का सीन वापस से दुहराया गया है। सोशल मीडिया पर एक खासी चर्चा हो रही है और कहा जा रहा कि जिस विचारगत अपराध की सज़ा के एवज़ में कलबुर्गी की हत्या उनके दरवाज़े पर कर दी गई थी, गौरी भी ठीक उसी रास्ते पर थीं।

गौरी की पत्रकार दोस्त और ‘गुजरात फाइल्स’ की चर्चित लेखिका राणा अय्यूब ने तो अपनी दोस्त के हत्यारों पर निशाना साधते हुए कहा है, “इस देश की हर गली में एक गोड्से घूम रहा है।” यानी हत्यारों की विचारगत जाति वही है, जो दाभोलकर, कलबुर्गी, तथा पानसरे की हत्या में संलग्न थी।  गौरी लंकेश ने राणा अय्यूब की किताब “गुजरात फाइल” का कन्नड़ में अनुवाद भी किया था।

बता दें कि सनातन संस्था और अन्य दक्षिणपंथियों पर आरोप है कि 2013 में उन्होंने अंधविश्वास और कुप्रथाओं के खिलाफ आवाज़ उठाने वाले डॉ. दाभोलकर की हत्या कर दी थी। दाभोलकर सुबह टहलने के लिए निकले थे जब उनपर करीब से गोलियां चलाई गई थीं। वहीं फरवरी 2015 में कुछ अज्ञात हमलावरों ने महाराष्ट्र के वरिष्ठ सीपीआई नेता गोविंद पानसरे की गोली मारकर हत्या कर दी थी। पानसरे कोल्हापुर में चल रहे टोल विरोधी आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल थे। वहीं 2015 की ही अगस्त में कलबुर्गी की उनके घर के बाहर हत्या कर दी गई थी। कलबुर्गी अंधविश्वासों और घर की मूर्ति पूजा के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे थे। गौरी लंकेश ने भी अपनी वैचारिक प्रतिबद्धता पर ज़ोर देते हुए यह ऐलान कर रखा था कि ‘मैं एक सेक्युलर देश की इंसान हूं और मैं किसी भी साम्प्रदायिक कट्टरता के खिलाफ हूं।’ और अंततः इस प्रतिबद्धता की कीमत अपनी जान देकर चुकाने के बाद गौरी लंकेश भी शहीद दाभोलकर, कलबुर्गी तथा पानसरे की कतार में शामिल हो गईं।

खबरों की माने तो डॉ दाभोलकर, पानसरे और फिर कलबुर्गी की हत्या के बाद लंकेश लगातार कट्टर हिन्दुत्ववादियों के निशाने पर थीं। राणा अय्यूब ने भी बीबीसी से बातचीत करते हुए बताया, “गौरी को पिछले कुछ सालों से श्रीराम सेना जैसी दक्षिणपंथी विचारधारा वाले संगठनों से कथित तौर पर धमकियां मिल रही थीं।”

कर्नाटक में सांप्रदायिकता के खिलाफ अपने सख्त रुख के लिए लंकेश की व्यापक पहचान थी। उनकी लोकप्रियता का अंदाज़ा उनके द्वारा संपादित पत्रिका ‘लंकेश पत्रिके’ से लगाया जा सकता है। इस पत्रिका में किसी भी तरह के विज्ञापन नहीं लिए जाते हैं और समान विचारधाराओं वाले एक ग्रुप द्वारा यह संचालित है। मगर अपनी भारी मांग के कारण इसे कभी भी आर्थिक रुकावट का सामना नहीं करना पड़ा। यह पत्रिका उनके पिता पाल्याड़ा लंकेश ने शुरू किया था। इनवेस्टिगेटिंग रिपोर्ट के लिए इस पत्रिका की खासी पहचान है। इस साप्ताहिक पत्रिका का साप्ताहिक वितरण लगभग 70 हज़ार है। गौरी स्त्री मुद्दों, आदिवासी मुद्दों के साथ ही हर तरह के सामाजिक न्याय के खिलाफ बेधड़क लिखती थीं। साथ ही कर्नाटक के सभी दक्षिणपंथी संगठनों के खिलाफ कन्नड़ में मुखर होकर लिखती थी गौरी लंकेश।

पिछले साल कर्नाटक के भाजपा सांसद प्रहलाद जोशी ने गौरी के खिलाफ मानहानी का मुकदमा दर्ज किया था, जिसमें उन्हें 6 महीने जेल की सज़ा हई थी। गौरी फिलहाल बेल पर थीं। दरअसल, गौरी ने 2008 में प्रहसाद जोशी के खिलाफ ‘Darodegilada BJP galu’ नाम से एक आर्टिकल पब्लिश किया था, जिसमें प्रहलाद जोशी के साथ ही बीजेपी लीडर उमेश दूशी, शिवानंद भट और वेंकटेस को भी निशाना बनाया गया था। कोर्ट का मानना था कि गौरी ने इन लोगों पर जो आरोप लगाए हैं उसका सबूत देने में वो नाकाम रही हैं, जिसकी वजह से उनपर मानहानि का केस दर्ज किया गया था। इस केस के अलावा गौरी पर और भी दूसरे कट्टर हिंदूवादियों ने भी मुकदमें दर्ज किए थे।

गौरी लंकेश की हत्या के बाद कल रात से ही ट्विटर पर लोग लगातार अपना रिएक्शन दे रहे हैं। जहां इनके समर्थन में ट्वीट देखने को मिल रहे तो वहीं कुछ लोग गौरी लंकेश की हत्या को सही भी बता रहे हैं। इन सभी के बीच निखिल दधीच नाम के एक शख्‍स का एक ट्वीट वायरल हो रहा है। इस ट्वीवटर यूज़र ने लिखा है, “एक कुतिया कुत्ते की मौत क्या मरी सारे पिल्ले एक सुर में बिलबिलाता रहे है।” हालांकि इस ट्वीट को डिलीट कर दिया गया है। लेकिन, यह ट्वीट इसलिए भी चर्चा का विषय बन गया है क्योंकि इस आदमी को नरेंद्र मोदी फॉलो करते हैं। सोशल मीडिया पर इसकी आलोचना की जा रही कि हमारे देश के प्रधानमंत्री ऐसी मानसिकता वाले आदमी को फॉलो करते हैं।

ट्वीटर के अलावा राजनीतिक गलियारों में भी इस हत्या को लेकर बयानबाज़ी शुरू हो गई है। राहुल गांधी ने इस हत्या की निंदा करते हुए कहा कि जो भी बीजेपी-आरएसएस की विचारधारा के खिलाफ बोलता है, उसे दबाया जाता है, पीटा जाता है, निशाना बनाया जाता है और कभी-कभी मार भी दिया जाता है। इसका जवाब देते हुए भाजपा के बड़े नेता नितिन गडकरी ने कहा, “गौरी लंकेश मर्डर पर राइट विंग के खिलाफ कोई सबूत नहीं है।” उन्होंने साथ ही कहा कि क्या पीएम मोदी अब हर मुद्दे पर बोलें। उन्होंने कहा कि फिलहाल मोदी विदेश यात्रा पर हैं तो ऐसे में वे इस घटना पर नहीं बोलेंगे। अब इस मुद्दे पर भी बहस चल रही कि क्या प्रधानमंत्री के लिए पत्रकार की हत्या मायने नहीं रखती ? बहरहाल, इन सबके बीच एक बार फिर पत्रकार की सुरक्षा का सवाल कहीं गुम होता हुआ दिख रहा है।

इन सबके बीच गौरी लंकेश की हत्या से कुछ देर पहले किए गए उनके ट्वीट पर नज़र जाती है। उन्होंने लिखा था, ”मुझे ऐसा क्यों लगता है कि हममें से कुछ लोग अपने आपसे ही लड़ाई लड़ रहे हैं। हम अपने सबसे बड़े दुश्मन को जानते हैं। क्या हम सब प्लीज़ इस पर ध्यान लगा सकते हैं।” हालांकि ये ट्वीट उन्होंने किसी और परिपेक्ष्य में लिखा होगा लेकिन, अभी उनकी हत्या को लेकर चल रही बहस में भी यह एक कटाक्ष के रूप में दिखता है।

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