आम नागरिकों को 60 से 70 फीसदी रियायती दरों पर दवा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार देश भर में 2400 प्रधानमंत्री जन औषधि केन्द्र चला रही है। भारत सरकार के फार्मास्यूटिकल विभाग द्वारा देश भर में इन केन्द्रों का संचालन किया जा रहा है। दावा है कि आने वाले वक्त में इस योजना के तहत चिकित्सा के क्षेत्र में बड़ी क्रांति आ सकती है।
गौरतलब है कि जन औषधि केन्द्रों में सरकार द्वारा जेनरिक दवाइयां उपलब्ध कराई जा रही है। सरकारी अस्पतालों में तो बाध्य होकर डॉक्टर जेनरिक दवाइयां लिख रहे हैं वहीं प्राइवेट डॉक्टर अपनी मनमानी करने पर डटे हुए हैं और अलग-अलग कंपनियों की दवाइयां ही प्रिस्क्राइब कर रहे हैं।
झारखंड की उपराजधानी दुमका में केन्द्र सरकार की यह महत्वाकांक्षी योजना फेल होती दिख रही है। मौजूदा वक्त में शहर में दो जन औषधि केन्द्र सुचारू रूप से चल रहे हैं। दुकानदारों की माने तो डॉक्टर्स के द्वारा इस योजना को विफल करने की पूरी तैयारी की जा चुकी है। उनका कहना है कि डॉक्टर्स प्रिस्क्रिप्शन पर महंगी ब्रांडेड दवाइयां ही लिख रहे हैं।
योजना की सबसे बड़ी चूक
प्रधानमंत्री जन औषधि परियोजना का मूल उद्देश्य गरीबों और पिछड़े वर्ग के लोगों तक कम दरों में दवाइयां पहुंचाना है। खासकर संथाल परगना में ऐसी बड़ी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन यापन कर रही है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि शुरुआती दौर में केवल शहरों में औषधि केन्द्र खोल देने से क्या इस योजना के उद्देश्य की पूर्ति हो जाएगी ? झारखंड के आदिवासी समुदाय के लोगों को सुदूर ग्रामीण पहाड़ी और जंगली क्षेत्रों से शहर का रूख करना पड़ता है। तब जाकर मिलती है इन्हें कम दरों पर दवाइयां। और वो भी तब जब डॉक्टर ने प्रिस्क्रिप्शन पर जेनरिक दवाइयां लिखी हो।
औषधि केन्द्रों की पड़ताल
सबसे पहले मैंने ज़िले के जन औषधि केन्द्रों की पड़ताल की। इस सफर में शहर के दुर्गा स्थान स्थित बंटी अग्रवाल द्वारा संचालित जन औषधि केन्द्र का हाल जानने पहुंचा। बंटी, केन्द्र सरकार की इस योजना को गरीबों के लिए बेहद असरदार भी बताते हैं और साथ यह भी कहते हैं कि सही मायने में जन औषधि केन्द्रों से अमीर घराने के लोग लाभ ले रहे हैं।
इस योजना को यदि जन-जन तक पहुंचानी है तब ग्रामीण स्तर पर औषधि केन्द्र खोलने की आवश्यकता है। बंंटी आगे दवाइयों की उपलब्धता पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि केन्द्र सरकार के आदेश से 100 प्रतिशत दवाइयां यहां उपलब्ध कराई जाए ताकि लोगों को बाज़ार का रुख नहीं करना पड़े। लेकिन अक्सर जन औषधि केन्द्रों पर दवाईयों की सप्लाय ना होने के कारण लोगों को बाज़ार का रुख करना पड़ता है।
दिक्कत तो ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन यापन कर रहे गरीबों के साथ है जिन्हें प्राइवेट डॉक्टर्स के दलालों द्वारा डरा धमका कर कहा जाता है कि जेनरिक दवाइयां मिट्टी के समान है। इसे मत खाना। ज़िले के सदर अस्पताल की पोल खोलते हुए बंटी बताते हैं कि-
सरकार के निर्देश के बाद डॉक्टर्स 90 फीसदी तक जेनरिक दवाइयां लिखते हैं लेकिन सदर अस्पतालों में दवाइयों की रेग्यूलर सप्लाय ना होने के कारण 10 फीसदी ही दवाइयां रोगियों को मुफ्त में मुहैया हो पाती है। अन्य दवाइयों के लिए मरीज़ों को बाज़ार का रूख करना पड़ता है और यहीं से काले धंधे की शुरुआत होती है।
मरीज़ों के पर्चे को जबरन प्राइवेट दुकानदारों के पास पहुंचाने के लिए मेडिकल स्टोर के प्रतिनिधि अस्पताल परिसर में ही मौजूद रहते हैं। वे खासकर ग्रामीणों में जन औषधि केन्द्रों की दवाइयों का दुष्प्रचार कर उन्हें अपनी तरफ आकर्षित कर लेने में सफल हो जाते हैं।
शहर के दूसरे जन औषधि केन्द्र में एक और चूक मुझे दिखाई पड़ी। इस केन्द्र का संचालन स्वंय एक डॉक्टर द्वारा किया जा रहा है, बावजूद इसके यहां फार्मासिस्ट को अपॉइंट किया गया है। जब एक एमबीबीएस डॉक्टर की निगरानी में जन औषधि केन्द्र का संचालन हो रहा हो वहां फॉर्मासिस्ट की आवश्यकता समझ से परे है।
जन औषधि केन्द्र में बतौर स्टाफ, कंप्यूटर ऑपरेटर और सेल्स मैन कार्यरत सुभोजीत विश्वास कहते हैं कि सरकार के इस मिशन को सफल बनाने के लिए हम पूरी मेहनत कर रहे हैं। हमारी कोशिश होती है कि रोगियों को हम ज़्यादा से ज़्यादा सेवा प्रदान कर सकें। ऐसे में सरकार को भी हमारे हित के लिए कुछ सोचना चाहिए। मानदेय या प्रोत्साहन राशि के तौर पर कुछ भत्ता दिया जाए जिससे हमारी माली हालत अच्छी हो सके।
रोगियों के परिजनों से बातचीत
इसी केन्द्र से दवा खरीदने आए कुछ रोगियों के परिजनों से मैंने दावाईयों की गुणवत्ता को लेकर बात की। नोनीहाट प्रखंड से आए कमलाकांत लाल बताते हैं कि वे पिछले कुछ माह से जन औषधि केन्द्र से दवाइयां ले रहे हैं। ये दवाइयां न सिर्फ सस्ती हैं बल्कि अच्छी गुणवत्ता वाली भी है। इससे हमें पैसों की काफी बचत हो जाती है। यहीं दवाइयां जब हम प्राइवेट दुकानों से लिया करते थे तो हमें बहुत अधिक कीमत चुकानी पड़ती थी।
राजीव बताते हैं कि हम गांव के गरीब लोग हैं। हमारी उतनी हैसियत नहीं कि हम प्राइवेट दुकानों से मोटी कीमत देकर दवा ले सकें। जन औषधि केन्द्र के खुलने से हमे काफी लाभ मिल रहा है। इससे पहले जब हम प्राइवेट दुकानों से दवा लेते थे तब राशि इतनी अधिक होती थी कि हम एक बार दवा तो ले लेते थे परन्तु उसे जारी नहीं रख पाते थे।
औषधि केन्द्रों पर चिकित्सकों की राय
जिले की महिला चिकित्सक डॉ. अरूणा चटर्जी से ने इस योजना को गरीबों के लिए वरदान बताया। वो कहती हैं कि एक डॉक्टर का फर्ज़ मरीज़ों की सेवा करना होता है न कि उनकी मुश्किलें बढ़ाना। प्रधानमंत्री जन औषधी परियोजना को सफल बनाने के लिए देशभर में सबसे बड़ी भूमिका चिकित्सकों को अदा करनी होगी।
जन औषधि केन्द्रों द्वारा ज़िले की चिकित्सा व्यवस्था पर लगे आरोपों की पुष्टि करने के लिए मैं सिविल सर्जन योगेन्द्र महतो के पास पहुंचा। लंबे इंतज़ार के बाद उन्होंने मिलने का वक्त तो दे दिया मगर ये कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि अभी तो ज़िले में हम नए हैं और इतनी जल्दी कोई बयान देना मैं उचित नहीं समझता।
ऐसे में ये कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि प्रधानमंत्री जन औषधि योजना का भविष्य अंधेरे में दिखाई पड़ रहा है। जब सरकारी महकमें के लोग ही अपनी ज़िम्मेदारियों से पिछा छुड़ाते नज़र आ रहे हैं फिर प्राइवेट दवाई दुकानदारों और अस्पताल में मौजूद दलालों से क्या उम्मीद की जा सकती है।
प्रिंस, Youth Ki Awaaz Hindi सितंबर-अक्टूबर, 2017 ट्रेनिंग प्रोग्राम का हिस्सा हैं।