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पीएम सर काश आप करोड़ों महिलाओं, दलितों या किसानों में से किसी को फॉलो करते

माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

पत्रकार गौरी लंकेश जी की निर्मम हत्या के बाद निखिल दधीच नाम के एक शख्स नें ट्विटर पर उन्हें कुतिया कहा और उनका समर्थन करने वालों को पिल्ला कहा। पता चला कि आप इस शख्स को ट्विटर पर फॉलो करते हैं। मुझे नहीं पता कि किसी को कुतिया कहने वाले इस शख्स में ऐसा क्या खास है जो आप इसे फॉलो करते हैं। इस व्यक्ति को तो अपने नाम का मतलब तक भी नहीं पता है। जिस ऋषि दधीची ने अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए अपने शरीर की हड्डियां तक दान में दे दी थीं उनका नाम ले कर यह शख्स कायरों कि तरह सोशल मीडिया पर एेसी अपमाजनक भाषा का प्रयोग कर रहा है। ये समाज के किस स्कूल से संवेदनहीनता की शिक्षा लिए लोग हैं जिन्हे आप फॉलो कर रहे हैं?

भारत के करोड़ों किसानों ने आपको वोट देकर इस देश का प्रधानमंत्री बनाया है। उन्होंने सोचा होगा कि आप जब देश की कमान संभालेंगे तो सालों से गलत सरकारी नीतियों का ज़हर पी रहे किसानों की ज़िदगी खुशहाल होगी।

अच्छा होता कि आप उन करोड़ों में से कुछ किसानों को फॉलो करते तो वो आपको बताते कि जब किसान 50 बोरी आलू लेकर मंडी में पहुंचता है तो उसे उस पचास बोरी का दाम एक रुपया मिलता है

वो आपको बताता कि महीनों चिलचिलाती धूप और कपकपाती ठंड में कमरतोड़ मेहनत करने पर जब एक रुपया मिलता है तो उसके सिर से आसमान हट जाता है, पैरों तले ज़मीन खिसक जाती है। आपको वह किसान बताता कि क्यों वो एक “सल्फास” की गोली खाकर अपने आप को मार लेता है। लेकिन आपने किसान के बजाए निखिल दधीच जैसे कायर को फॉलो करना ज़रूरी समझा।

आपको करोड़ों महिलाओं ने वोट देकर प्रधानमंत्री बनाया। अच्छा होता कि आप इन महिलाओं और लड़कियों को फॉलो करते तो ये आपको बतातीं कि महिलाओं को सम्मान गैस सिलेंडर देने से नहीं मिलता है बल्कि उन्हें किताबें और रोज़गार देने से मिलता है।

एलपीजी का गैस उन्हें धुंआ से मुक्ति दिला सकता है लेकिन वर्षों से कैद उस चारदीवारी वाली रसोई के घेरे से नहीं। वो आपको बतातीं कि करोड़ों रुपये ख़र्च करके गैस सिलेंडर से महिलाओं को सम्मान दिलाने वाले विज्ञापन हमारी घटिया रुढ़िवादी मानसिकता को दर्शाता है। काश आपने गुरमीत राम रहीम जैसे लोगों को सज़ा दिलाने और न्याय के लिए पंद्रह साल साहस के साथ लड़ने वाली उन दो साध्वियों से मिलतें तो वो आपको बतातीं कि एक महिला को अपने हक के लिए किन किन लोगों से लड़ना पड़ता है। अव्वल तो आपको उन साध्विओं को “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” का ब्रैंड एंबेसडर बनाना चाहिए था।

शायद आपने तस्वीरों में बेरोज़गारो की भीड़ को देखी होगी। आपने वादा भी किया था कि आप करोड़ों लोगों को रोज़गार देंगे। अच्छा होता कि आप इनमें से कुछ लोगों को फॉलो करते तो ये बताते कि लाखों रुपये का लोन लेकर पढ़ने के बाद दस हज़ार रुपये की भी नौकरी नहीं मिलती है। वो आपको बताते कि जब घर वाले कर्ज़ लेकर बाहर पढ़ने भेजते हैं और जब पढ़ाई पूरी हो जाती है तो बार बार फोन आने लगते हैं कि इतने दिन हो गए अभी तक नौकरी क्यों नहीं लगी? ऐसी स्थिती में लाचार युवाओं को अपराधबोध में घुट घुट कर मरने के अलावा कोई और चारा नहीं बचता है।

काश आप उन शिक्षामित्रों को फॉलो कर रहे होते जिनके उपर वेतन बढ़ाने की मांग करने की वजह से लाठियां बरसाई जा रही हैं। काश आपने उन DMRC के कर्मचारियों को फॉलो किया होता जिन्हें पिछले कई महीनों से सैलरी नहीं मिली है। काश आपने कॉन्ट्रैक्ट पर काम करने वाले मज़दूरों को फॉलो किया होता तो वे बताते कि किस तरह उनका ठेकेदार कम पैसे में देर तक काम कराता है और जब मर्ज़ी आता है नौकरी से एक ही झटके में बाहर फेंक देता है।

काश आपने उन सैनिकों की विधवा पत्निओं को फॉलो किया होता जो अपने पति की शहादत के बाद पेंशन के लिए सरकार की ठोकरें खाती हैं। काश आपने वन रैंक वन पेंशन के लिए पिछले दो सालों से जंतर मंतर पर बैठे सैनिकों को फॉलो किया होता।

आपको देश के करोड़ों दलितों, आदिवासिओं ने वोट देकर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का प्रधानमंत्री बनाया। अच्छा होता कि आप इनमें से कुछ लोगों को फॉलो करते होते। ये आपको बताते कि इस देश को हज़ारों सालों से साफ सुथरा रखने वाले दलितों को जब तथाकथित गौरक्षक गुंडो द्वारा गाड़ी में बांध कर पीटा जाता है तो उन्हें कैसा महसूस होता है। वे आदिवासी आपको अपनी पीड़ा बताते कि तथाकथित विकास कि अंधी दौड़ ने उनके जंगलों और पहाड़ों को उजाड़ के उनकी नसों में युरेनियम का रेडियोएक्टिव ज़हर भर दिया है जो उन्हें धीरे धीरे करके मार रहा है।

आपको देश के बहुत सारे अल्पसंख्यकों ने वोट देकर आपको अपना नेता चुना। काश आप निखिल दधीच के बजाय इनमें से कुछ लोगों को फॉलो कर रहे होते तो ये बताते कि जब मटन या चिकन को गौमांस बता कर हज़ारों की भीड़ किसी शख्स को पीट-पीट कर मार डालती है तो एक पूरा समुदाय किस तरह डर के साये में जीता है। जब 15 साल के एक लड़के जुनैद को टोपी पहनने और दाढ़ी बढ़ाने के आधार पर बीफ खाने वाला बताकर मार दिया जाता है तो उस समुदाय के लोग किस तरह कहीं बाहर आने-जाने से भी डरने लगते हैं।

आपको करोड़ो हिंदुओं ने वोट देकर इस देश का प्रधानमंत्री बनाया। यह वही हिंदू धर्म है जिसमें सहिष्णुता एक मूल विचार है। यह धर्म अपने मानने वाले लोगों को किसी खास सीमा या तौर तरीकों में नहीं बांधता है। “धारयति इति धर्मः” मतलब आप जिस चीज़ को धारण करते हैं या मानते हैं वही आपके लिए धर्म है। जब इतना उदार है हिंदू धर्म तो ये कौन से लोग हैं जो राम के नाम पर लोगों को बांट रहे हैं। ये कौन लोग हैं जो खान-पान से लेकर बोलने तक पर अंकुश लगाना चाहते हैं? इनको कौन इतना बढ़ावा दे रहा है?

देश की जनता ने आपको वोट दिया ताकि आप देश के हरेक नागरिक की सुरक्षा को सुनिश्चित करें। लेकिन आज इंसान की कीमत इतनी सस्ती हो गई है कि कहीं भी राह चलते उसे गोलियों से मार दिया जाता है। दाभोलकर, पनसारे, कलबुर्गी और अब गौरी लंकेश की हत्या की गई। इन घटनाओं से देश का नागरिक डरा हुआ है। उसे नहीं पता कि कब बोलने और लिखने के कारण कोई अगली गोली उसके सीने को पार कर जाएगी। आपको इस देश के लोगों ने प्यार और सम्मान के साथ देश का प्रधानमंत्री बनाया है। आपकी ज़िम्मेदारी है कि आप उनके लिए लोकतांत्रिक माहौल तैयार कर के दें जहां हर किसी के लिए बोलने, विचार रखने और सम्मान के साथ जीने की आज़ादी हो। आशा करता हूं कि आप प्रधानमंत्री होने का फर्ज़ अदा करेंगे।

भारत का एक नागरिक।

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