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निर्मला सीतारमण का रक्षा मंत्री बनना एक ‘फील गुड’ है

संडे मतलब हॉलीडे। संडे आते–आते सुकून होने लगता है, जो ‘फील गुड’ देने लगता है। जिन लोगों को संडे काम पर जाना भी होता है उनके पास भी बाकी दिनों के मुकाबले काम कम होता है। हालांकि राजनीति में ऐसा कम ही होता है लेकिन कल यानी 3 सितंबर 2017 का जो संडे था वो मेरे विचार से व्यक्तिगत ही नहीं राजनीतिक तौर पर भी ‘फील गुड’ वाला संडे था।

कल कैबिनेट का विस्तार हुआ कुल 13 मंत्रियों ने पद और गोपनीयता की शपथ ली, इनमें से 4 ने कैबिनेट की तो 9 ने राज्य मंत्री पद की शपथ ग्रहण की।

निर्मला सीतारमण ने रक्षा मंत्री के तौर पर पद गोपनीयता की शपथ ली। इसके साथ ही निर्मला सीतारमण देश की पहली पूर्णकालिक रक्षा मंत्री बनीं।

इससे पहले, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने दो बार 1975 और 1980-82 में इस मंत्रालय को संभाला, लेकिन वो पूर्णकालीन रक्षा मंत्री नहीं थीं।
दूसरी महत्वपूर्ण बात ये कि कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) जो प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में रक्षा, वित्त, गृह, विदेश मंत्रालयों का समूह होता है उसमें अब विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के अलावा निर्मला सीतारमण दूसरी महिला होंगी। अब सभी अलग- अलग राजनीतिक विश्लेषकों के द्वारा इसका विश्लेषण किया गया।

मंत्रिपद की शपत लेते कैबिनेट में शामिल किए गए नए सदस्य

कुछ का विचार है कि यह मंत्रालय के प्रदर्शन पर आधारित फैसला नहीं है बल्कि एक राजनीतिक कदम है। चूकि निर्मला सीतारमण दक्षिण भारत से हैं और वेंकैया नायडू के उपराष्ट्रपति बनने के बाद बीजेपी के पास कोई राष्ट्रीय स्तर का नेता नहीं है ऐसे में निर्मला सीतारमण जो कि कर्नाटक की रहने वाली है और हिन्दी क्षेत्र से पढ़ी- लिखी होने के कारण भाषा पर भी अच्छी पकड़ है तो निर्मला सीतारमण एक अच्छी विकल्प हो सकती हैं और आगामी विधानसभा चुनाव में इसका फायदा हो सकता है।

कुछ तर्क रखे गएं कि निर्मला सीतारमण हमेशा नरेन्द्र मोदी की पक्षधर रही हैं। साल 2014 में पीएम पद नरेन्द्र मोदी की दावेदारी को भी खुलकर समर्थन दिया था तो यकीनन प्रधानमंत्री का भरोसा है उनपर और CCS में नरेन्द्र मोदी ऐसे ही लोगों को चाहते हैं। ताकि वो सारे अहम मंत्रालयों को अपने नियंत्रण में रख सकें।

कुछ  विश्लेषकों का कहना था कि इसे महिला सशक्तिकरण के तौर पर बिल्कुल भी नहीं देखा जाना चाहिए, ना ही लैंगिक समानता के तौर पर क्योंकि सुषमा स्वराज तो पहले से ही CCS की सदस्य हैं लेकिन उनको बतौर विदेश मंत्री अपने आपको उभरने का भी मौका नहीं दिया गया है। मतलब महिला सदस्य CCS में तो होंगी लेकिन दबदबा पुरूषों का ही होगा। इस तरह से कई सारे तर्क रखे गए हैं। इन तमाम तर्कों के बावजूद यह फैसला ‘फील गुड’ देता है।

इंदिरा गांधी के बाद CCS में तकरीबन 30 साल बाद सुषमा स्वराज बतौर विदेश मंत्री शामिल हुईं। अमूमन जब महिला मंत्री कैबिनेट में शामिल होती है तो उनके लिए बाल विकास मंत्रालय या स्वास्थ्य एंव परिवार कल्याण मंत्रालय इत्यादि निर्धारित होता है।

मैं यहां किसी मंत्रालय की भूमिका को कम करके नहीं आंक रही और निर्मला सीतारमण तो वाणिज्य और उद्योग मंत्री थीं लेकिन एक स्थापित ट्रेंड यही है। ऐसे में CCS में बतौर रक्षा मंत्री महिला का शामिल होना यकीनन ‘फील गुड’ है।

हां, ध्यान दो बातों की तरफ़ है, पहला ये कि यह महज़ प्रतीकात्मक ना हो और दूसरा जहां महिला की सुरक्षा एक अहम मुद्दा हो वहां, महिला रक्षा मंत्री के कार्यों, फैसलों और वक्तव्यों पर सबकी टकटकी होगी।

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