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petrol and government bitter reaction

मौजूदा परिदृश्य मे हर तरफ मोदी की ही गंगा बह रही है, ऐसे में दो शब्द जो मै भी ना लिखता तो पत्रकार नहीं कहलाता । वैसे तो मैं भी मोदी सर के व्यक्तित्व से खासा प्रभावित हूँ, लिहाजा तारीफ लिखने का मन बना कर बैठ गया। तभी कुछ ऐसे आंकड़ों से मेरा साक्षात्कार हुआ जिसने मेरे कलम पर पाबंदियां लगा दी । मेरे शब्दों ने मेरे खिलाफ बगावत का बिगुल छेड़ दिया । 
जब जुलाई 2014 मे मोदी के नेतृत्व में एनडीए (भाजपा) ने केंद्र मे सरकार गठित की तब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा पेट्रोल 112 डालर प्रति बैरल था । और आज तकरीबन 3 साल बाद जब कच्चा तेल 54 डालर प्रति बैरल है, तब भी तेल के दाम का 80 रूपय प्रति लीटर की उंचाई को छूना सोचने पर मजबूर करता है। सबसे बड़ा सवाल अब यह है कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है? कच्चा तेल 50% सस्ता होने के बावजूद लोगों को राहत क्यों नहीं दी जा रही है। तेल के दाम मे रोज बदलाव की बात जब हुई थी तब मोदी जी ने खुद कहा था कि इससे दाम में गिरावट आएगी। पर इसके बाद लोगों की मुश्किलें कम होने के बजाय बढ़ ही गई हैं, लगातार दाम मे चढ़ाव ही देखने को मिला । सरकार अपना पलड़ा झाड़ते हुए सारे सवाल पेट्रोलियम कंपनी की तरफ मोड़ देती है। वैट टेक्स पर भी मौन हो जाते हैं । असल में सारी गणित तो इसी से जुड़ी है। 26 प्रदेशों मे पेट्रोलियम पर लगने वाला वैट टेक्स 26% से ज्यादा है। ऐसे मे मोदी सरकार के लिए वो तारीफ वाले शब्द अब लिखना मुश्किलज जान पड़ रहें हैं । बहुत बेचैन हुँ क्या लिखूं । दो दिन हो गए तारीफ मे चार शब्द नहीं गुथ सका हूँ ।

उधर कनन्नथानम मोदी सरकार की तरफदारी में अलग ही तल्खियां उगल रहें है। वैसे तो मुझे कम बोलना पसंद है, पर क्या करूं जब जिम्मेदार पदों पर बैठे नेता बेतुके टिप्पणी करते है तो चुप रहा नहीं जाता । जब लोकतंत्र के प्रतिष्ठित चेहरे भुल जाते हैं कि ये हम से हैँ, तो बोलना पड़ जाता है। तब इन्हें याद दिलाना पड़ता है कि आप हमसे हैं ना कि हम आप से ।
अल्फोंस कनन्नथानम को केंद्र पर्यटन राज्यमंत्री बने 15 दिन नहीं हुए और इनके रंग बदलने लगे हैं। उन्होंने कड़वे लहजे मे कहा है कि पेट्रोल-डीजल खरीदने वाले लोग कोई भूखे रहने वाले नहीं हैं, वे कार और मोटरसाइकल से चलते हैँ।पेट्रोल-डीजल से मिलने वाले राजस्व का उपयोग गरीबों को मूलभूत जरूरतें मुहैया कराने पर खर्च किया जाता है।
पेट्रोल -डीजल की लगातार बढ़ती किमतों पर छिड़ी घमासान के बीच अल्फोंस की ऐसी टिप्पणी लोकतंत्र की गरिमा को शोभा नहीं देती है। कार-मोटरसाइकिल चलाने वाला हर शख्स शौक के लिए नहीं चलाता है। बहुत लोग ऐसे है जिन्हें रोजी-रोटी के लिए चलाना पड़ता है। बढती तेल की किमतों का असर सार्वजनिक परिवहन, उपभोक्ता वस्तुओं और कृषि पर भी पड़ता है। जिसका उपयोग समाज का हर वर्ग करता है। अच्छा ये सब जाने दिजीए अल्फोंस साहब आप बस इतना बता दिजीए कि पेट्रोल-डीजल से मिलने वाले राजस्व का कितना हिस्सा अब तक गरीबों के कल्याण के लिए खर्च किया जा चुका है। कोई आंकड़ा आप के पास है? 
बस एक और आखिरी बात, चादर डाल कर टुटी हुई कुर्सी की इज्जत कब तक बचाएंगे । मान लिजिए ना कुर्सी टुटी है। लिपा-पोती करने से बेहतर होगा आप मरम्मत की पहल करें ।
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