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JNU की लाल ईंट और वोट में लग रहा है नीला सेंध

तमाम संकटों और आफ़त के बीच अगस्त का महीना तो किसी तरह गुज़र गया। अब ये सितंबर का महीना है जब हर शिक्षण संस्थान में छात्र संघ चुनाव को लेकर काफी चहल- पहल होता है। हालांकि चुनाव की यह परंपरा कोई नई नहीं है। विश्वविद्यालयों में छात्रसंघ चुनाव की एक ऐतिहासिक पृष्ठभूमि रही है लेकिन 9 फरवरी 2016 की तथाकथित अफज़ल गुरू के समर्थन में नारेबाज़ी के बाद जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय काफी चर्चा में रहा है। सड़क से संसद तक इस विश्वविद्यालय को केंद्र में रखकर देशभक्त बनाम देशद्रोही पर चर्चाएं हुईं।

विश्वविद्यालय परिसर देखते ही देखते पुलिस और पत्रकारों का केंद्र बन गया। जिसका असर यहां के छात्र संघ चुनाव पर भी दिखा है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद(ABVP) ने 9 फरवरी के मसले पर वाम संगठनों को घेरने में और इसे देशभक्त बनाम देशद्रोही का मुद्दा बनाकर लोगों को लामबंद करने में कोई कसर नहीं छोड़ा। इसी का नतीजा था कि वामपंथ के इतिहास में पहली बार पिछले साल ऑल इंडिया स्टूडेंट एसोसिएशन(AISA) और स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया(SFI) ने मिलकर लेफ्ट यूनिटी के नाम से चुनाव लड़ा और केंद्रीय पैनल में क्लीन स्वीप करने में कामयाबी हासिल की। इस साल भी आठ सितंबर को हो रहे चुनाव में लेफ्ट यूनिटी बरकरार है।

तीन वामपंथी संगठन AISA, SFI और DSF(डेमोक्रेटिक स्टूडेंट फेडरेशन) मिलकर छात्र संघ का चुनाव लड़ रहे हैं। केंद्रीय पैनल की चारों सीटों में हर सीट पर अलग-अलग वामपंथी संगठन के उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं। AISA ने अध्यक्ष पद पर गीता कुमारी को चुनाव लड़ाने का फैसला किया है। SFI के दुग्गीराला साईकृष्ण को महासचिव पद के लिए उम्मीदवार बनाया गया है। एसएफआई से ही अलग होकर बने संगठन DSF  ने शुभांसु सिंह को मैदान में उतारा है।

ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन(AISF) ने पिछले साल लेफ्ट यूनिटी को अपना समर्थन देते हुए कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था लेकिन इस साल अध्यक्ष पद के लिए अपराजिता राजा चुनाव लड़ रही हैं। अपराजिता लंबे समय से AISF की सक्रिय कार्यकर्ता रहीं हैं और सांसद डी.राजा की बेटी हैं। बाकी आठ सितंबर के बाद स्वर: स्पष्ट हो जाएगा।

ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन(AISF) ने पिछले साल लेफ्ट यूनिटी को अपना समर्थन देते हुए कोई उम्मीदवार नहीं उतारा था लेकिन इस साल अध्यक्ष पद के लिए अपराजिथा राजा चुनाव लड़ रही हैं। बिरसा अंबेडकर फुले स्टूडेंट्स असोसिएशन(BAPSA) ने शबनम अली, सुबोध कुंवर, करम बिद्यानाथ और विनोद कुमार को केंद्रीय पैनल के लिए उतारा है। ABVP ने निधि त्रिपाठी, दुर्गेश, निकुंज मकवाना,पकंज केशरी को उम्मीदवार बनाया है।

जहां सभी संगठनों ने अध्यक्ष पद पर महिला उम्मीदवारों को उतारा है, वहीं कटिहार के फारुख़ अली निर्दलीय अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ रहे हैं। सरकारी शब्दों में कहें तो फ़ारुख़ दिव्यांग हैं, वो बचपन में पोलियो की चपेट आ गए लेकिन अध्यक्ष पद के लिए अकेले पुरूष उम्मीदवार हैं और कैंपस में काफी लोकप्रिय भी हैं।

JNU छात्र संघ चुनाव को समझने की कोशिश करें तो यह चुनाव कुल 31 काउंसलर पद और 4 केंद्रीय पैनल के लिए होता है। 31 काउंसलर पोस्ट में से ज़्यादा सीट्स स्कूल ऑफ लिंगग्वीस्टिक, स्कूल ऑफ सोशल साइंस और स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज़ में हैं। असल मुकाबला चार केंद्रीय पदों पर देखने को मिलता है, ये चार पद प्रेसीडेंट, वाइस प्रेसीडेंट, जनरल सेक्रेटरी और ज्वाइंट सेक्रेटरी का होता है। JNU की बौद्धिकता का सबसे अहम हिस्सा यहां की चुनाव में नज़र आता है जब  अध्यक्ष पद के उम्मीदवारों के बीच डिबेट होता है। अमूमन अध्यक्ष पद डिबेट के बाद ही यह तय होता है कि किसे वोट देना है। इस बार प्रेसीडेंशियल डिबेट 6 सितंबर को है।

जेएनयू लाल है लाल ही रहेगा’। ‘जेएनयू के लाल ईंट पर लाल – लाल लहराएगा’। पिछले साल जब लेफ्ट यूनिटी ने जीत हासिल की तो कुछ इसी तरह के नारों के साथ लेफ्ट के कार्यकर्ताओं ने जश्न मनाया। लेकिन जब AISA और SFI जैसी धुर -विरोधी संगठन ने मिलकर चुनाव लड़ा तो इस यूनिटी ने कुछ इशारा किया! कहीं लाल ईंट पर बनी लाल के इस गढ़ में सेंध तो नहीं लग रहा! और यह सेंध सिर्फ भगवा वोट से नहीं बल्कि नीले रंग से ज़्यादा है। पिछले साल के चुनाव परिणाम पर अगर गौर करें तो लेफ्ट यूनिटी के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार मोहित पांडे को 1,815 वोट मिले थे वहीं BAPSA के अध्यक्ष पद उम्मीदवार राहुल सोनपिम्पले को 1,488 वोट और ABVP की ज्हाण्वी ओझा को 10,17 वोट मिले थे।

BAPSA 2014 में बनी संगठन है जो भीमराव अंबेडकर के मूल्यों पर चलने का दावा करती है और AISA समेत सभी लेफ्ट संगठनों पर ब्राह्मणवादी होने का आरोप लगाती है।

पिछले साल के चुनाव परिणाम से यह साफ हो चुका है कि BAPSA परिसर में अपना पैर जमाने में कामयाब हुई है और ‘लाल’ का मुकाबला सिर्फ ‘भगवा’ से ही नहीं है बल्कि उसे  ‘नीले’ से ज़्यादा चुनौती मिल रही है! और इस बार तो अध्यक्ष पद के लिए AISF ने भी अपना उम्मीदवार उतारा है, ज़ाहिर है अध्यक्ष पद पर इस बार मुकाबला और कड़ा होगा। ऐसे में प्रेसीडेंशियल डिबेट काफी अहम होगा।

बाकी यह विश्वविद्यालय जितना छात्र राजनीति के लिए जाना जाता है उतना ही अपने तौर- तरीको, ढाबा कल्चर, डिबेट कल्चर, चाट सम्मेलन के लिए भी जाना जाता है। चुनाव कोई भी जीते यह उम्मीद हर संगठन और प्रशासन से है कि वो JNU के इस कल्चर को बनाए रखेंगे जो इसे अनूठा बनाती है।

 

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