“मुहाज़िर” यानि कि शरणार्थी, जिन्हें अपना घर, वतन, मिट्टी इस विश्व के हर कोने में हो रही हिंसा की वजह से छोड़ किसी अन्य देश में शरण लेने पर मजबूर होना पड़ा है। विश्व में अपना देश छोड़कर किसी अन्य देश में शरण लेने के अतीत में कई किस्से मिलते हैं। हाल-फिलहाल में शरणार्थी (Immigrants) शब्द अखबारों में और टीवी चैनल्स पर छाया हुआ है।
यह लेख उन शरणार्थियों के बारे में हैं जो अपने ही देश में परायों की तरह रहें और अब वहां पर अपने ऊपर हो रही हिंसा की वजह से देश छोड़ने पर मजबूर हैं और पड़ोसी देशों में शरण लिए हुए हैं।
“रोहिंग्या मुस्लिम” जिन्होंने भारत में भी एक अच्छी संख्या में शरण ली हुई है और आम भारतीय जनता के बीच राष्ट्रीय मुद्दे की सूची में शामिल हैं, दक्षिण-पूर्वी एशिया में दर-ब-दर अपनी सुरक्षा और भविष्य के लिए भटक रहे हैं। इस समुदाय ने पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है और कई सारे देश इनकी मदद के लिए आगे आए हैं। इस लेख से एक नजर डालते हैं रोहिंग्या मुस्लिम समुदाय के अतीत पर और जानेंगे कि वर्तमान में क्या हैं हालात।
रोहिंग्या समुदाय का इतिहास:
रोहिंग्या मुस्लिम सबसे पहले 15वीं सदी में हज़ारों की संख्या में प्राचीन अराकान राज्य में आकार बसे थे। इसके बाद ब्रिटिश औपनिवेशिक काल (19वीं सदी के उत्तरार्द्ध और 20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में) में अंग्रेज़ों ने उन्हें बंगाल से और वर्तमान बांग्लादेश से बुलाकर बर्मा (म्यांमार) के रखाइन क्षेत्र में बसाया था। इसकी मुख्य वजह इस क्षेत्र की उर्वर भूमि थी जिस पर अंग्रेज़ इनसे मज़दूरी और किसानी करवाते थे।
वर्ष 1948 में बर्मा को आज़ादी मिली और नए नागरिक कानून में बर्मा ने अपनी मिट्टी में जन्मे हर शख्स को अपना नागरिक माना, लेकिन जल्दी ही बर्मा में 1962 में जनरल ने विन के नेतृत्व में सेना ने तख्ता पलट किया। इसी क्रम में रोहिंग्या मुस्लिमों ने रखाइन प्रांत में अपने लिए एक अलग देश बनाए जाने की मांग रखी, जिसे सैनिक शासन ने कोई तवज्जो नहीं दी। तत्कालीन शासन ने उन लोगों को नागरिक मानने से भी इंकार कर दिया जिनके पूर्वज् साल 1823 के बाद देश की सीमा में दाखिल हुए थे।
वर्ष 1974 में ने विन ने जब म्यांमार में नया संविधान लागू किया तो उसने 135 मूल निवासी समुदाय की सूची जारी की, जिसमें देश के कई अल्पसंख्यक समुदायों को बाहरी बताते हुए उनसे, उनकी नागरिकता छीन ली गई। 8 साल बाद नागरिकता कानून के तहत कुछ सीमित अधिकार गैर मान्यता प्राप्त समूहों को दिये गए। साल 2005 में उन्हें अपने गांव से बाहर शादी करने और घूमने का अधिकार दे दिया गया, साथ ही यह भी शर्त रखी गयी कि एक शादीशुदा जोड़ा केवल 2 बच्चो को जन्म दे सकता है। इस तरह की तमाम बंदिशें म्यांमार शासन में रोहिंग्या मुस्लिमों पर लागू हैं। अपने देश में ही गैरों सा सलूक उन्हें पलायन करने को मजबूर कर रहा है।
इन तमाम वजहों से इन अल्पसंख्यकों की आने वाली नस्लें अशिक्षा, गरीबी, भुखमरी के हालातों में रहने को मजबूर हो चुकी हैं। उन्हे देश के अन्य हिस्सो में भ्रमण की आज़ादी नहीं रही, उनकी हालत 21वीं सदी में भी 19वीं सदी के लोगों जैसी हो गई है। अब जब देश की पूरी एक नस्ल यह मानकर, पढ़कर और जानकर बढ़े कि वह अल्पसंख्यक समुदाय देश का हिस्सा नहीं है, देश के संसाधन पर बोझ है तो उनका इतने वर्षों बाद हिंसात्मक रूप में फूट पड़ना स्वाभाविक ही था।
अब बात करते हैं इस दौरान घाटी घटनाओं की, जिन्होंने इस समस्या को बढ़ाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
इस घटनाक्रम में घटी कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं-
- जून 2012 में, एक रखाइन महिला के साथ कुछ मुस्लिमों ने बलात्कार किया, जिसकी वजह से भड़की हिंसा के कारण 30,000 लोगों को वहां से पलायन करना पड़ा।
- इसी साल नवम्बर में, फिर से रखाइन बौद्ध और रोहिंग्या मुस्लिमों के बीच हुए एक सांप्रदायिक हिंसा में 90 लोगों अपनी जान गंवाई।
- मार्च 2013 में, फिर सांप्रदायिक हिंसा हुई, जिसमें 10 लोग मारे गए।
- मई 2015 में, हज़ारों रोहिंग्या समुद्र के रास्ते देश से पलायन कर गए, इनमे बांग्लादेशी प्रवासी भी थे।
- अक्टूबर 2016 में, सेना में पर हुए हमले का ज़िम्मेदारी 1980-90 के दशक के रोहिंग्या सोलिडेटरी ओर्ग्नाइजेशन पर डाली गई।
- इसकी प्रतिक्रिया में जो हमले सेना ने किए, उसके बारे में ह्यूमन राइट्स वॉच संस्था ने कहा कि इस दौरान 800 घर और इमारतें जलायी गईं, जिनकी उपग्रहीय तस्वीरें उनके पास हैं।
- मार्च 2017 में, संयुक्त राष्ट्र संगठन के मानवाधिकार आयोग ने अल्पसंख्यक रोहिंग्या मुस्लिमों पर सेना द्वारा किए गए मानवाधिकार के उल्लंघन की जांच का निर्णय लिया।
- और इन सबमें सबसे महत्वपूर्ण घटना, 25 अगस्त को सेना के 30 ठिकानों पर अराकान रोहिंग्या मुक्ति सेना (ARSA) द्वारा किये गए हमले हैं, जिसके बाद सेना ने अराकान या रखाइन प्रांत में इस उग्रवादी संगठन के सफाए की शुरुआत की।
इसकी सबसे ज़्यादा कीमत रोहिंग्या मुस्लिमों और साथ ही साथ उस क्षेत्र में रह रहे अन्य अल्पसंख्यकों को भी चुकानी पड़ रही है। वहां की सरकार इन्हें बांग्लादेश से आया बंगाली मुस्लिम मानती है।
वर्तमान हालात-
संयुक्त राष्ट्र के हालिया आंकड़ो के अनुसार अगस्त महीने से अब तक 1,64,000 रोहिंग्या म्यांमार से पलायन कर चुके हैं। पलायन करने वाले किसी भी हद तक जाने को तैयार है। उन्हें अपने जीवन को बचाने के लिए, जीवन को खतरे में डालना पड़ रहा है। रोहिंग्या, लकड़ी की छोटी नावों से 200 किमी. के लंबे बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर से गुज़रते समुद्री रास्ते से मलेशिया जाने का ज़ोखिम भी लेने से पीछे नहीं हट रहे हैं।
फ़िलहाल सबसे ज़्यादा रोहिंग्या शरणार्थी बांग्लादेश में, उसकी सीमा पर, म्यांमार और बांग्लादेश के विवादित सीमा-भूमि में शरण लिए हुए है। बांग्लादेश, मलेशिया, थाईलैंड और इंडोनेशिया में सबसे ज़्यादा शरणार्थी हैं। ऑस्ट्रेलिया में भी कुछ रोहिंग्या शरणार्थी शरण लिए हुए हैं।
भारत में स्थिति-
40,000 के आसपास रोहिंग्या शरणार्थियों को भारत में शरण दी गई है, जिन्हें जल्द ही सरकार वापस भेजने की तैयारी में है। भारत और संयुक्त राष्ट्र इस मामले में आमने-सामने हैं, साथ ही साथ 2 रोहिंग्या शरणार्थियों ने उच्चतम न्यायालय में अनुच्छेद 21 के तहत याचिका दायर की है। इस पर सरकार ने अपना रुख साफ कर दिया है कि वह किसी भी कीमत पर उन्हें वापस उनके देश भेजने का उपाय करेगी और उच्चतम न्यायालय को इस के मुद्दे से दूर रहने की गुज़ारिश की है। इस केस कि अगली सुनवाई 3 अक्टूबर को है जिसमें इसी मुद्दे से जुड़ी अन्य याचिकाओं पर भी सुनवाई होगी। अब सबकी निगाहें इस बात पर हैं कि उच्चतम न्यायालय इस प्रकरण में क्या फैसला करता है।