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सिगरेट पीने से रोकने पर गुरप्रीत की हत्या क्या महज़ रोड रेज है

कुछ दिन पहले इस शहर की सड़क पर एक एक्सीडेंट होता है जिसमें दो नौजवान बुरी तरह से घायल हो जाते हैं और उनमें से एक, कुछ दिनों बाद अस्पताल में दम तोड़ देता है। ये कौन थे, कहां से थे- ये जानना ज़रूरी है साथ ही उस मानसिकता को भी जानना होगा जो आज सड़क पर एक गाड़ी को भी कत्ल का हथियार बना देती है। दुर्घटना में घायल दूसरे युवक के बयान से ये साफ है कि ये महज़ एक दुर्घटना नहीं थी बल्कि रोड रेज की एक सोची समझी घटना थी। इसे और साफ तरीके से समझने के लिए ज़रा बैकग्राउंड समझिए।

उत्तर भारत के एक शहर से कुछ दिन पहले फोटोग्राफी के दो स्टूडेंट दिल्ली आए थे। एक प्रोजेक्ट के सिलसिले में वो दिल्ली की सड़कों पर घूम रहे थे और सुबह 4:30 बजे सड़क किनारे एक लारी पर चाय पीने रुके। यहीं पर एक तरफ एक और नौजवान वकील खड़ा था जो लगातार सिगरेट के कश मार रहा था। वैसे तो सावर्जनिक जगह पर सिगरेट पीना एक गुनाह है, लेकिन ये कानून सड़क पर कम ही लागू हो पाता है। दोनों लड़कों ने सिगरेट पी रहे वकील को थोड़ा दूर हटकर सिगरेट पीने को कहा। सिगरेट दूर होकर पीने को कहने मात्र से ही वकील साहब अभद्र भाषा पर उतर आएं और उन दो छात्रों के धार्मिक चिन्ह को भी निशाना बनाया। वकील साहब ने आगे धमकाते हुए कहा कि अगर तुमने मेरे इलाके में इस तरह से (सिगरेट पीने से) रोका होता तो अंजाम बहुत खतरनाक होता।

कुछ देर बाद ये दोनो युवक अपनी मोटर साइकिल पर सवार होकर वहां से चले गए। लेकिन सिगरेट पीने वाले शख्स ने इन दोनों का पीछा किया और विवाद की जगह से करीब 300 मीटर दूर अपनी कार से मोटर साइकिल को कुछ ऐसे टक्कर मारी कि करीब 100 मीटर तक मोटर साइकिल और उस पर सवार दोनों युवक घिसटते हुए चले गए। दोनों नौजवानों को बेहोशी की हालत में अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान इनमें से एक की मौत हो गई। दूसरे युवक के बयान के आधार पर अपराधी के खिलाफ केस रजिस्टर कर लिया गया।

सवाल यह है कि क्या सिर्फ सिगरेट पीने से रोकना ही इस घटना की वजह है? शायद नहीं, ऐसी घटनाएं आज आम होती जा रही हैं। आज किसी को टोकना या किसी काम के लिये मना करना, किसी भी अप्रिय घटना को अंजाम दे सकता है। हम सभी ये मानते हैं कि समाज में अपराधिक घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, जिसकी कई वजहें हो सकती हैं, मसलन अशिक्षा, बेरोज़गारी, गरीबी आदि। ज़ाहिर है कि यह लापरवाही से घटी एक दुर्घटना से ज़्यादा रोड-रेज का मामला है, जहां जानबूझकर हमला किया गया। कुछ इसी तरह की घटना पिछले साल बिहार में भी हुई थी, जिसमें सिर्फ ओवरटेक करने के कारण चालक को गोली मार दी गई थी। मैंने जानबूझकर उन दोनों नौजवानों का नाम नहीं लिखा और ना ही आरोपी का। कारण यह है कि मैं समझना चाहता हूं कि ऐसा क्या हुआ जो कुछ ही पलों में एक आम इंसान पीड़ित बन गया और दूसरा एक अपराधी (या आरोपी)?

अब अगर इन सभी घटनाओं का हम अध्ययन करें तो पाएंगे कि जहां सामाजिक, आर्थिक या राजनीतिक प्रतिष्ठा का अहम रखने वाला व्यक्ति अक्सर इन आरोपियों की श्रेणी में खड़ा मिलता है, वहीं एक आम इंसान पीड़ित के रूप में। इन सभी घटनाओं पर अलग-अलग अध्ययन किया जा सकता है, इस पर बहस हो सकती है। मेरा मानना है कि जब तक कानून और हमारी सरकारें ईमानदारी से इस तरह के अपराधों का बोध नहीं लेती और एक तय समयसीमा के अंदर अपराधियों को सज़ा नहीं देती तब तक क्या इस तरह की घटनाओं को नहीं रोका जा सकता है।

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