2014 में कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय (Ministry of Skill Development and Entrepreneurship) की स्थापना हुई। इसके पहले मंत्री बनें राजीव प्रताप रूडी। इनके इस्तीफ़े के बाद धर्मेंद्र प्रधान को इस मंत्रालय की ज़िम्मेदारी दी गई है। इस मंत्रालय के अधीन प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना बड़े ज़ोर-शोर से जुलाई 2015 में शुरू हुई। 1500 करोड़ रुपए में 24 लाख लोगों को कुशल बनाने का तब लक्ष्य तय किया गया। हालांकि बाद में 12 हज़ार करोड़ के बजट के साथ 2020 तक 1 करोड़ लोगों को कुशल बनाने का लक्ष्य तय किया गया।
अगर इंडियन एक्सप्रेस अख़बार में छपी रिपोर्ट की माने तो जब इस मंत्रालय का गठन हुआ था, तब 2022 तक 50 करोड़ लोगों को प्रशिक्षण देने का लक्ष्य था। लोकसभा में एक लिखित उत्तर में तत्कालीन मंत्री ने बताया था कि देशभर में 30 लाख से अधिक लोगों को प्रशिक्षण दिया जा चुका है या प्रशिक्षण दिया जा रहा है। सरकारी आकड़ों के मुताबिक़ इन 30 लाख में से अभी तक करीब 3 लाख लोगों को रोज़गार मिल गया है। अब देखने वाली बात है यह होगी कि 2020 तक इन ‘एक करोड़’ में से कितनों को काम मिलता है। वहीं मंत्रालय द्वारा गठित शारदा प्रसाद समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 1 सितंबर 2017 तक कुल 6 लाख लोगों को प्रशिक्षण मिला जिसमें से मात्र 72 हज़ार 858 लोगों को नौकरी मिली है। वहीं पहले चरण यानि 2015 से 2016 में कुल 18 फीसदी लोगों को नौकरी मिली। अब तक हमने सरकारी आंकड़ों की बात की जिनके सटीक होने पर सदैव शक किया जा सकता है।
अब ज़मीन पर इस योजना की बात करते हैं। जब यह योजना शुरू हुई होगी तब मंशा यही रही होगी कि देश में कुशल मैन पावर की कमी को पूरा किया जाए। यानि देश में काम तो बहुत है लेकिन काम करने वाले बढ़िया लोग नहीं है। समय-समय पर इंडस्ट्री वाले रिपोर्ट प्रकाशित करवाते हैं कि देश के नौजवान उनके काम के लिहाज से फिट नहीं हैं। जबकि यही नौजवान दुनियाभर में अपने कौशल का झंडा लहरा रहे हैं। तो क्या असल में उद्योग जगत पर्याप्त अवसर मुहैया नहीं करा पा रहा है या कम लोगों से ज़्यादा काम लेने की मंशा रखता है। खुद आलोचना के दायरे में ना आ जाएं सो कह देते हैं कि युवा रोज़गार के लायक ही नहीं हैं।
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना की शुरूआत के पीछे ऐसा लगता है कि नीति निर्माताओं के मन में यह बात भी रही होगी कि देश में पर्याप्त प्रशिक्षण संस्थाएं नहीं हैं जिसकी भरपाई यह योजना कर देगी। लेकिन हाल ही में एक रिपोर्ट आई है कि देश के करीब 800 इंजीनियरिंग कॉलेज बंद होने वाले हैं। इनके बंद होने के पीछे एक कारण कम दाखिला होना भी है।
मैं खुद कई ऐसे कॉलेजों को जानता हूं, जो पर्याप्त संख्या में एडमिशन ना होने के कारण मरणासन्न हो चुके हैं। छात्र इसलिए भी दाखिला नहीं ले रहे क्योंकि उनके मन में यह बात घर कर गई है कि बीटेक के बाद भी एसएससी और पटवारी या पुलिस की ही तैयारी करनी पड़ेगी, क्योंकि इस देश में कोर्स के बाद नौकरी कोई गारंटी नहीं है भाई।
यानि अवसरों की कमी है। जब अवसरों की ही कमी मूल समस्या है तो यह प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना से प्रशिक्षित एक करोड़ लोग खुद का उद्यम लगा लेगें, इसमें थोड़ा शक है। पहले से आईटीआई, पॉलीटैक्निक और इंजीनियरिंग, प्रबंधन कॉलेज से निकले स्किल्ड लोगों को काम नहीं मिल रहा तो इस शॉर्ट टर्म की 200 से 400 घंटो की ट्रेनिंग लेकर ट्रेन हुए लोगों को काम मिलेगा बाज़ार में? प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत जो प्रमाण पत्र मिलता है, उसकी सरकारी नौकरी में कोई इज्ज़त नहीं है। यानि आपका यह प्रमाण पत्र सरकारी भर्ती के समय ज़ीरो भूमिका अदा करेगा।
अब बात करते हैं कि प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत प्रशिक्षण दे कौन रहा है? अगर आप अपने आस-पास की दुनिया को देखते हैं तो पाएंगे कि पहले से चल रहे किसी कोचिंग या कंप्यूटर सेंटर वाले ने प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत प्रशिक्षण देने का काम शुरू कर दिया है। मैं गाज़ियाबाद स्थित ऐसे ही एक सेंटर में गया तो बताया गया कि करीब 3 से 4 माह का रिटेल का कोर्स कर लो। बोला लग के करना क्योंकि बड़ी तादाद में बच्चे बीच में ही कोर्स छोड़कर भाग जाते हैं। बोला आपको मोर या किसी रिटेल आउटलेट में 7 से 10 हज़ार मासिक की नौकरी मिल जाएगी। प्लेसमेंट मेले का आयोजन होता है।
असल में यह सेंटर लेबर मुहैया कराने का काम कर रहे हैं। क्योंकि प्रशिक्षण के नाम पर वो एक तोता रटंत टाइप का तैयार पाठ्यक्रम रखते हैं। उनके पास न ढंग के ट्रेनर हैं न ज़रूरी ढांचा। साथ ही बताया गया कि प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना की आपको फ्रेंचाइज़ी लेनी हो तो भी संपर्क कर लें, अच्छा फायदा है। यानि वो कह रहे हैं कि तुम भी सरकारी बजट की लूट में शामिल हो जाओ।
जो नौकरिया प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत प्रशिक्षण लेने के बाद मिलती हैं वो पहले और अभी भी बिना किसी ऐसे प्रशिक्षण के मिल रहीं हैं। कोई बी 12वीं पास ऐसी नौकरी हासिल कर सकता है। नौकरी मिलने के बाद भी नौकरी प्रदाता अपने हिसाब से प्रशिक्षण देता ही देता है। वो जानता है कि बच्चे को वहां क्या सिखाया गया होगा। यानि लागत में कहीं कमीं नही आ रही।
तो आखिर यह कंपनियां क्यों जाती हैं प्लेसमेंट मेले में? असल में इनके पास मंत्रालय से बाकायदा निमंत्रण जाता है कि कृपया आएं फलां जगह। ऐसे मेलों में अक्सर छोटी-मोटी नौकरिया ऑफर की जाती हैं। ऐसे मेले समय-समय पर आयोजित होते रहते हैं जो सस्ते श्रमिकों की चाहत कंपनियों को खींच लाते हैं। और वैसे भी सरकार से आखिर कौन पंगा ले ना आकर, एक स्टॉल लगा दो मेले में। कुल मिलाकर 2020 तक साढ़े 13 हज़ार करोड़ के खर्चे के बाद क्या हासिल होगा, इसकी तस्वीर थोड़ी बहुत तो साफ हो गई है।
जब पहले से प्रशिक्षित लोगोंं को ही काम नहीं मिल रहा तो ये आधे–पूरे प्रशिक्षित, जिनकी संख्या एक करोड़ होगी, आखिर क्या करेंगे? कुल मिलाकर कौशल विकास मंत्रालय की देश के लोगो को कुशल बनाने की योजना पूरी तरह असफल होती दिखती है। इसी असफलता का परिणाम है कि इस मंत्रालय के गठन के बाद पहले मंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त करने वाले श्री राजीव प्रताप रूडी को हाल ही में इस्तीफा देना पड़ा।
मुझे लगता है कि इस मंत्रालय की कोई ज़रूरत थी ही नहीं। चूंकि हमारे पास मानव संसाधन विकास मंत्रालय है ही, जिसके अंडर में आईआईएम और आईआईटी से लेकर तमाम शैक्षणिक संस्थान हैं।
सरकार को तत्काल इस योजना को रोक देना चाहिए, क्योंकि मंत्रालय को आवंटित धन, निजी क्षेत्र में ऐसे लोगों के हाथों में जा रहा है जिनके पास ना तो ट्रेनिंग देने का अनुभव है, ना ट्रेनर हैं और ना ही सुविधाएं। इनका मकसद सिर्फ और सिर्फ सरकारी बजट को हड़पना भर है।
बेहतर हो कि पहले से ही चल रहे सरकारी और निजी आईटीआई और पोलीटैक्निक कॉलेजों के छात्रों को 100 फीसदी काम मुहैया कराया जाए। बंद होने की कगार पर खड़े इंजीनियरिंग कॉलेजों से पढाई पूरी कर चुके बच्चों को काम मिले, इसकी व्यवस्था की जाए नहीं तो आखिर कोई छात्र एडमिशन क्यों लेगा? बीटेक के बाद भी 10 हजार की ही नौकरी करनी है, तो कोई आखिर क्यों इतनी मेहनत करे? ज़रूरत है कि अवसरों की तादाद बढ़ाई जाए।
12 हज़ार करोड़ की रकम देश की माली हालत को देखते हुए बहुत बड़ी रकम है। अगर एक नए उद्योग की लागत 10 लाख भी माने तो भी इतनी रकम में 1 लाख 20 हज़ार नए उद्यम खड़े किए जा सकते हैं। जिनमें वाकई लाखों लोगों को काम मिलने की सीधी सी गुंजाइश है। उद्यम खड़ा करने के लिए पहले से प्रधानमंत्री स्वरोज़गार योजना चल रही है, जिसमें 35 फीसदी तक अनुदान मिलता है। इस योजना में प्रशिक्षण का काम खादी एवं ग्रामोद्योग विभाग के ज़रिए होता है। लेकिन अनुदान से लेकर ऋण हासिल करना बेहद पेचीदा है। वहां इस रकम को दिया सकता है। नियमों को थोड़ा उदार बनाया जा सकता है। 12 हज़ार करोड़ को निजी लोगों को हाथों में सौंपने से बेहतर होगा कि यह रकम सरकारी सिस्टम में ही डाली जाए, क्योंकि यहां ऑडिट की जा सकती है। पाई-पाई का हिसाब रखा जा सकता है। लेकिन निजी लोगों को प्रशिक्षण का ठेका देना मौजूदा हालत को देखते हुए उचित नहीं है।
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