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फिल्मों और टी.वी. में तम्बाकू सेवन को ‘कूल’ दिखाना बंद करो

अगर आप 80 या 90 के दशक के टी.वी. प्रोग्रामों से परिचित हैं, तो इस ऐड को मिनटों में पहचान जाएंगे। ‘बारातियों का स्वागत पान पराग से ही होना चाहिए’ इतना मशहूर हुआ कि हर बच्चा इसकी लाइने बोल लेता था।

उस समय में फिल्म और टी.वी. स्टारों की मदद से तम्बाकू कम्पनियां अपने उत्पादों को भारत में बढ़ावा दे रहीं थीं, जिसे स्वास्थ्य मंत्रालय की इस रिपोर्ट में तम्बाकू के भारतीय व्यापार का पहला हिस्सा कहा गया है।

तम्बाकू उद्योग के हमारे देश में कामयाब होने की एक बड़ी वजह उनके विज्ञापन करने के कुशल तरीके हैं और उनमें सबसे नया तरीका है बार और नाईटक्लबों में युवाओं को मुफ्त सिगरेट बांटना। युवा पीढ़ी तम्बाकू उद्योग के लिये महत्वपूर्ण खरीददार है, क्योंकि किशोरों और युवाओं के धूम्रपान करने की और तम्बाकू में पाए जाने वाले  निकोटीन नामक केमिकल के आदी होने की संभावना कहीं ज़्यादा होती है। इसी बात को जानते हुए तम्बाकू कम्पनियां कानून तोड़कर अपने उत्पाद युवाओं में विज्ञापित कर रही हैं।

नतीजा ये है कि स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 26 करोड़ भारतीय तम्बाकू का सेवन करते हैं। गुटखा, खैनी, मिसरी जैसे तम्बाकू उत्पादों के सेवन में भारत दुनिया में सबसे आगे है। क्यूंकि तम्बाकू से सेवन से मुंह का कैंसर होता है इसलिए यह कैंसर भारतीयों में सबसे आमतौर पर होने वाली बीमारियों में गिना जाने लगा है। सबसे दुखद बात तो यह है कि तम्बाकू सेवन हर साल 10 लाख लोगों की जान ले लेता है।

भारत में तम्बाकू 17वीं सदी में पुर्तगाली लेकर आए थे। तब से लेकर अब तक सिर्फ विज्ञापनों ने ही नहीं, कई मिथकों और गलत धारणाओं ने भी तम्बाकू के सेवन को हमारे देश में बढ़ावा दिया है। इन धारणाओं के बारे में भी ज़रा बात हो जाए-

#1 तम्बाकू की लत मुझे है तो औरों का क्या जाता है

तम्बाकू सेवन का प्रभाव सिर्फ आप तक ही सीमित नहीं है। तम्बाकू सेवन करते समय बड़े, बच्चों, किशोर, अपने दोस्तों और भाई बहनों के लिये गलत उदाहरण बन जाते हैं। तम्बाकू की लत लगने की संभावना उन्हीं युवाओं में ज़्यादा देखी गई है, जिनके परिवार में कोई तम्बाकू का सेवन करता हो।

अगर आप लोगों के आसपास धूम्रपान कर रहे हैं? चाहे वो सिगरेट, बीड़ी, हुक्का या कोई भी और तरीका हो, तम्बाकू के धुंए का आसपास मौजूद लोगों पर उतना ही बुरा असर पड़ता है, जितना की धूम्रपान करने वाले पर। इस धुंए में ‘कार्सीनोज़न’ नामक केमिकल होता है, जो फेफड़ों में कैंसर पैदा कर सकता है। इस केमिकल का बच्चों और गर्भवती महिलाओं पर खास तौर से बुरा असर पड़ता है।

अगर आप लोगों से दूर धूम्रपान कर रहे हैं?  तम्बाकू का धुआं धूम्रपान करने वाले के शरीर और कपड़ों पर और आसपास की चीजों पर भी धूल की तरह जम जाता है और काफी समय तक बना रहता है। नतीजन धुंए में मौजूद कार्सीनोज़न लंबे समय तक अन्य लोगों के संपर्क में रहता है और उन्हें बीमार करता है। इसका मतलब ये है कि भले ही आप अकेले धूम्रपान कर रहे हों, लेकिन आपके परिवारजनों पर इसका बुरा असर पड़ता है। इसमें फेफड़ों का कैंसर, इन्फेक्शन और अन्य कई बीमारियां शामिल हैं।

अगर आप सबकुछ छोड़-छाड़ कर धूम्रपान कर रहे हैं?  कोई फायदा नहीं। सिगरेट के बचे भाग या सिगरेट बट्स आज बड़ी मात्रा में धरती और भूजल (यानी ग्राउंडवाटर) को प्रदूषित कर रहे हैं। इस बचे भाग में से लगातार हानिकारक केमिकल निकलते रहते हैं, जो कि पानी के ट्रीटमेंट के बावजूद उसमें मौजूद रहते हैं। ये हानिकारक केमिकल दोबारा इस्तेमाल होने वाले पानी के ज़रिये सभी लोगों तक वापस पंहुचते हैं। यह आश्चर्य की बात नहीं है कि पर्यावरण के इस प्रदूषण की ज़िम्मेदारी तम्बाकू कंपनियां नहीं लेती।

#2 तम्बाकू दांतों और मसूड़ों के लिये अच्छा है

तम्बाकू का कोई भी उत्पाद मुंह के लिये हानिकारक है। मिसरी, गुल, लाल दंत मंजन, कुछ टूथपेस्ट, पान मसाले, गुटका, खैनी आदि दांतों और मसूड़ों को खराब करते हैं। पान मसाला, गुटका और खैनी में सुपारी भी होती है, जो कि एक जाना-माना कार्सीनोज़न यानी कैंसर पैदा करने वाली चीज़ है। इसे खाने से मुंह का कैंसर हो सकता है।

 #3 तम्बाकू कंपनियों ने किसानों और अन्य लोगों की परिस्थिति में सुधार किया है

तम्बाकू उद्योग अपने आप को सामाजिक और आर्थिक ऊंच-नीच का समाधान बताता है। इस दावे के सच को अब वैज्ञानिक उजागर करने में लगे हैं। वॉलेन्टरी हेल्थ एसोसिएशन ऑफ इंडिया नामक संस्था की ये रिपोर्ट बताती है कि कैसे किसान, बीड़ी बनाने वाले और तेंदू के पत्ते तोड़ने वाले लोग गरीबी और बीमारी के जाल में फंसे रहते हैं।

क्या तम्बाकू उगाने वाले किसान अमीर हो रहे हैं? सिर्फ बड़ी ज़मीनों वाले किसान। तम्बाकू की फसल कड़ी मेहनत, देखभाल और ज़्यादा कीटनाशक मांगती है और मिट्टी को कम उपजाऊ कर देती है। इसके अलावा तम्बाकू के पौधों को छूने से किसान और उनके परिवार लगातार निकोटीन के संपर्क मे रहते हैं और इस कारण कई बीमारियों से जूझते रहते हैं।

हमारे देश में ज़्यादातर छोटे किसान हैं, जो कि तम्बाकू उगाने की इस भारी लागत से अंजान हैं। अपनी मेहनत और बिगड़ते स्वास्थ्य की नुकसान की भरपाई उन्हें नहीं मिलती।

तम्बाकू उत्पाद बनाने वाले ज़्यादातर मज़दूर औरतें और बच्चे होते हैं, जो कि बेहद खतरनाक माहौल में काम करने के बावजूद बहुत कम वेतन पाते हैं। तम्बाकू के पत्तों से बनी धूल से भरे कारखानों में काम करने से ये लोग गंभीर सांस की बीमारियों से जूझते रहते हैं। ये सारी परिस्थितियां किसी भी इंसान को गरीबी में जकड़े रखने के लिये काफी हैं। तम्बाकू सेवन और उत्पादन एक जटिल सामाजिक समस्या है। इस समस्या के बारे में जागरूक होना ही इसे सुलझाने का पहला कदम है।

फोटो आभार: www.flicker.com 

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