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मोबाइल फोन में उलझे बच्चे बाहर खेलने नहीं जाते, ये वाकई खतरनाक है

समय का पहिया तेज़ी से घूमता गया और दुनिया आगे बढ़ती गयी। हम ‘स्टोन एज’ से सफर करते करते उस दौर में आ गये हैं जबकि हर तरफ़ टेक्नोलॉजी की धूम है। साइंस तरक़्की करते करते आसमान तक पहुँच चुका है। साइंस को अपनी इस कामयाबी पर फक्र है और होना भी चाहिये। इंसानों की ज़िंदगी टेक्नोलॉजी से घिर गयी है और लगभग इसी पर आश्रित हो गयी है या कर दी गयी है। खाना बनाने से लेकर पढ़ाई-लिखाई में भी इसकी मदद ली जा रही है। इस टेक्नोलॉजी के दौर में मोबाइल एक ऐसा डिवाइस है जिसे लगभग सभी के हाथों में देखा जा सकता है। बच्चे, बूढ़े सभी इसका इस्तेमाल कर रहे हैं। जब हम बच्चों को मोबाइल चलाते देखते हैं तो खुश होते हैं कि इस छोटी सी उम्र में वो मोबाइल चलाना सीख गया है, जबकि यही चिंताजनक क्षण है।

अभी ज़्यादा दिन नहीं गुज़रे हैं कि हर तरफ लोकप्रिय होती ‘ब्लू व्हेल गेम और बच्चों की सुसाइड’ का मामला छाया हुआ था।

लगभग हर अखबार में इसपर लेख आ रहे थे। स्कूल प्रबंधक लगातार पैरेन्ट्स-टीचर मीट कर रहे थे और उन्हें बच्चों के मोबाइल इस्तेमाल के दौरान नज़र रखने को कह रहे थे। यहां तक कि पैरेन्ट्स को ये हिदायत दी गयी कि वे बच्चों के सामने स्मार्टफोन का उपयोग न करें। हो सकता है कि इन तरकीबों से ऐसी घटनाओं में कमी आ जाये लेकिन पूरी तरह से रोका नहीं जा सकता है।

बच्चों का मोबाइल इस्तेमाल करना दूसरे मायनों में भी नुकसानदायक है। अधिकतर बच्चे घर से बाहर निकलते नहीं हैं, अपने स्मार्टफ़ोन में ही लगे रहते हैं, और इस तरह वे समाज से कटने लगते हैं। उन्हें पता ही नहीं होता कि उनके आस-पास क्या हो रहा है। उनका घर से बाहर निकल कर खेलना व लोगों में मिल कर रहना कम हो गया है। गाँवों में फिर भी बच्चे हाथ में गेंद बल्ला लिये मैदानों की तरफ कूद पड़ते हैं, लेकिन शहरों में ये स्थिति दयनीय है। ये जेनरेशन किताबों से दूर होती जा रही है। वे किताबी दुनिया के बजाये मोबाइली दुनिया में खोये रहते हैं और असली दुनिया से महरूम होते जा रहे हैं। और जब वे ऐसे ही माहौल के आदी हो जाते हैं तो उनके अंदर से संजीदगी ख़त्म हो चुकी होती है। वे सेल्फ सेंटर्ड ज़िंदगी गुज़ारना शुरू कर देते हैं।

अत्यधिक मोबाइल के प्रयोग से बच्चों की मानसिक स्थिति भी बिगड़ रही है। तनाव इसका मुख्य लक्षण है।मोबाइल ने बच्चों की ज़िंदगी को खेल बना दिया है, इसका उदाहरण हम ब्लू व्हेल गेम के परिणामस्वरूप देख चुके हैं।  मोबाइल के साथ इंटरनेट का इस्तेमाल भी बच्चों के विषय में एक गंभीर समस्या है।

ये अच्छी बात है कि आज के बच्चे पहले से ज़्यादा ज़हीन हैं। किसी भी बात को जल्दी समझ लेते हैं। हम उनकी इस समझदारी का सकारात्मक प्रयोग करने में उनकी मदद करें। उन्हें रचनात्मकता की ओर उभारें, किताबों से दिलचस्पी पैदा करायें, समाज में कैसे रहना है, ये सिखायें, अच्छे कामों का आदी बनाएं, सच्चाई का पैकर बनायें।

इन सब कामों के लिये आवश्यक है एक सकारात्मक वातावरण की। इसके लिये हमें एक ठोस कदम उठाना होगा। एक ‘विशेष उम्र’ तक बच्चों को मोबाइल से दूर रखना होगा। उन्हें मोबाइली कीड़ा बनने से बचाना होगा। ऐसा होता है कि बड़े उन्हें एक मोबाइल लाकर दे देते हैं, फिर वे जैसे चाहे इसका इस्तेमाल करते हैं। ये सच है कि मोबाइल हमारे जीवन का एक अभिन्न हिस्सा होता जा रहा है लेकिन उनके लिये एक ‘विशेष उम्र’ तक ऐसा ‘अभिन्न हिस्सा’ न बनने दें। बच्चे हमारे भविष्य हैं, उनकी तरबियत हमें ही करनी है।

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