अम्बेडकर और अम्बेडकरवाद में भी बहुत अंतर है । अम्बेडकरवाद एक विस्तृत विचारधारा है ,जबकि अम्बेडकर 65 साल का क्रांतिकारी संघर्ष ।
चूँकि बाबा साहब ने इसमें पूर्ववर्ती महापुरुषों के विचारों को नई पीढ़ी तक सौपने के लिए सेतु का काम किया , इस लिए वो सबसे महत्वपूर्ण कड़ी और मील का पत्थर साबित हुए । जब भी हम अम्बेडकरवाद की बात करते हैं , बाबा साहब के अलावा तथागत बुद्ध , रविदास , कबीर , फूले दम्पति , पेरियार से लेकर अनेक महापुरुषों जैसे बिरसा मुंडा , गाडगे , ललई सिंह , मान्यवर काशीराम तक के प्रयासों और विचारों को शामिल पाते हैं ।
यह सूची अनन्त तक है ,आप सब भी इससे अलग नही हैं ,क्योंकि अभी अम्बेडकरवाद का चर्मोत्कर्ष आना बाकि है । क्रांति का हर वो स्वर अम्बेडकरवाद का हिस्सा है
जो समानता ,स्वतंत्रता , बन्धुत्व ,मानवीय संवेदना और विज्ञान की बात करता है ।
किसी मित्र ने मुझसे पूछा कि ये ‘जय भीम’ और ‘भीम प्रतिमा’ भी क्या अम्बेडकरवाद का हिस्सा है ? जबकि बाबा साहब स्वयं ‘नायक पूजा ‘ के खिलाफ थे ।
उनकी बात में पूर्णतया सच्चाई है ,मगर इस बात पर मेरा नजरिया भिन्न है ।
‘जय भीम ‘ के आह्वान पर जब हजारों की संख्या में युवा , जंतरमंतर दिल्ली में एकत्रित हो जाते हैं । महाराष्ट्र में ‘जय भीम’ की रिंगटोन से मनुवाद इतना डर जाता है कि उस युवक का खून ही कर दिया जाता है ।
तब ये ‘जय भीम’ मनुवादियों के लिए खौफ़ और समता-सैनिकों के लिए जोश का ,जुनून का पर्याय बन जाता है ,तब ये अम्बेडकरवाद का हिस्सा बन जाता है । यह उद्बोधन किसी व्यक्ति की अपेक्षा विचारधारा का वाहक बन जाता है ।अम्बेडकरवाद में बाबा साहब से पहले और उनके बाद के अनेकों विचारक सम्मलित हैं । अपने पूर्ववर्ती महापुरुषों के ज्ञान को संकलित करके बाबा साहब ने सामाजिक व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई का आगाज़ किया ।इस लिहाज से देखा जाए तो हमें अहसास होगा कि विचारधारा के सहारे ही हम उस लड़ाई को जीत सकते हैं ,जिसे बाबा साहब ने शुरू किया था । हमारा दुश्मन मनुवाद है ,जिसका आधार धर्म और जाति हैं । बहुत अफ़सोस की बात है कि बाबा साहब ने जिस दुश्मन को इंगित किया था ,अधिकतर बहुजन उसी को जीवन का आधार माने बैठे हैं । एक तरफ गांवों में अभावों की जिंदगी जी रहे 80% बहुजन समाज के लोग हैं ,जो आज तक धर्म के तिमिर को चीर कर संवैधानिक अधिकारों के उजाले तक नही पहुंच पाए हैं , दूसरी तरफ हमारे तथाकथित पढ़े लिखे मूर्ख भाई हैं ,जो धर्म को सिर पर लादकर ‘सात्विक ब्राह्मण’ बनने का असफल प्रयास कर रहे हैं । धर्म जैसी जटिल अवधारणा को बड़ी शिद्दत से निभा रहे हैं और
अम्बेडकरवाद से कन्नी काट रहे हैं ,जो कि बेहद आसान ,सरल और सुगम्य है । यह तर्क और विज्ञान पर आधारित है । अपने घर में कोई भी कार्य आप क्यों कर रहे हैं ? यह जानने का प्रयास अम्बेडकरवाद का पहला स्टेप है । आपको और हमें कुछ भी अतिरिक्त नहीं करना ,बस जहां अतार्किक बात लगे ,सवाल कीजिये , आस्था ,धर्म , ईश्वर ,पुनर्जन्म ,भाग्य इन सब के बहकावे में मत आइए । किसी भी कार्य को सिर्फ इसलिए मत कीजिये कि कोई ओर इसे कर रहे हैं ,या करते आये हैं ।
इसके लिए बहुत मोटी मोटी किताबें पढ़ने की आवश्यकता नही है , बस ठान लेने की जिद और खुद पर लागू करने की सरलता चाहिए ।