“मुझे तो आज ग्यारा साढ़े ग्यारा बजे बताया गया कि जंतर-मंतर से मेरा धरना हटाया जा रहा है। मैंने पूछा मुझे कहा जाना होगा तो बोले पता नहीं।” जंतर मंतर पर एक अधेड़ उम्र का आदमी रूआंसी आवाज में पत्रकार को बता रहा था। उसके खोपड़ी से लेकर ठुड्डी तक पट्टी बंधी हुई थी। आगे के दो-तीन दांत टूटे थे। दायें हाथ पर फ्रेक्चर था। और पैर ऐसे मुड़े हुए थे मानो घुटनों से टूटे हों।
उसकी रूआंसी आवाज सीधे कानों के पर्दों तक घुस कर उसकी बातें सुनने पर मजबूर कर रही थी। उसके साथ ढ़लते उम्र कि एक औरत खड़ी थी। मटमैले सलवार में वो उस रोते आदमी की आंखे पोछ रही थी। बीच-बीच में वो उस आदमी की छूटती बातों को पुरा करने की कोशिश कर रही थी। उसकी बातों से पता चल रहा था कि वो उस आदमी की बहन है।
वो शख्स दरअसल रिपोर्टर को उसके धरने पर बैठने की वजह बता रहा था। साथ-साथ हाल ही में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के दिए ,जंतर मंतर को खाली करने के आदेश पर चिंता जता रहा था। “मेरी चार बेटियां, एक बेटा और बीबी को अलग-अलग जगहों से किडनैप किया गया है।” पत्रकार के पूछने पर उसने बताया।
यह आदमी इंदौर मध्यप्रदेश से होने का दावा कर रहा था। इसने बताया कि वह 2014 से यहां धरने पर बैठा है। “मेरेकु यहां आने की जरूरत नहीं थी, मैं अच्छा खासा रह रहा था, मेरी फैमिली भी अच्छी थी।” इन्ही बातों को आगे बढ़ाते हुए वो अपने बारे में एक चौंका देने वाली बात बताता है कि उसने सिमी के 26 आतंकवादी पकड़वाए थे। उसके बाद उसे सम्मान मिलना तो दूर उल्टा उसपर संकट का पहाड़ टूट पडा है।
“मैं प्रेस फोटोग्राफर भी था, उसके बाद कुछ समय आर्मी में भी काम कर चुका हूं।” पत्रकार के पूछने पर वो बताता गया। उसके दादा परदादाओं ने वर्ल्ड वार भी लडे़ होने की बात उसने बताई। 28 जुन 2012 को राजस्थान के सवाल से उसके बीबी को किडनैप कर लिया गया। वहां पुलिस ने उसकी रिपोर्ट नही लिखी। 24 अक्टुबर 2012 को दूसरी बेटी का अपहरण कर लिया गया। उसके बाद बड़ी बेटी का 9 साल के उम्र में 1 जुन 2014 को अपहरण हो गया।
“मैं यहां 14 अगस्त 2014 को लाल किले पर आया था, तुम यहां धरने पर आए हो.. ? ऐसा वहां अफसरों के पूछने पर मैंने कहा कि मैं तो बस सरकार को बताने को आया हूं।” फिर वहां से उठाकर उसे चार दिन हवालात में रखा और फिर जंतर मंतर पर लाकर छोड़ दिया । उसे कहा गया कि यहां पर उसका परिवार मिलेगा। उसने बताया कि वो यहां केवल उसपर हो रहे अत्याचार पर कार्यवाही करवाने के लिए आया है।
“आज मेरे हालात बद से बदतर हैं। मेरी भांजी को भी यहां से उठा कर ले गए।” वो ये बता ही रहा था कि उसकी बहन बोल उठी “मुझे भी 25 जून को उठा कर ले जा रहे थे, मुझे बचाने के लिए भैया दौडे़ तो उनके सर पर ईंटा मार कर सर फोड़ दिया.. दायां हाथ तोड़ दिया.. और घुटने भी” उसके बाद वो दो घंटो तक बेसुध पड़ा रहा। पुलिस वाले देखते रहे पर मदद को नहीं दौडे़। आज वो अपाहिजों की जिंदगी जी रहा है।
अचानक रोते हुए वो बोल पड़ा कि उसे पता चला है कि सरकार ने अब यहां आंदोलन करने को मनाई कर दी है। वो रोते बिलखते सवाल पूछ रहा है अब हम यहां से कहां जाएंगे..? वो पूछ रहा है कि क्या उसके न्याय की लड़ाई अब अधूरी ही रह जाएगी ..? वो डरा हुआ है कि उसे न जाने अब और कौन सी मुश्किलों से लड़ना है..?
यह एक नही अनगिनत कहानियां जंतर मंतर पर सड़ रही हैं। क्या मैदानों के बदलने से इनके अन्यायों का ध्वनि प्रदुषण कम होगा ..?