Site icon Youth Ki Awaaz

देश में समस्याओं की अमावस्या को दूर करने हेतु एक दीपोत्सव हो

 

असतो मा सदगमय ।

 

तमसो मा ज्योर्तिगमय ।

 

मृत्योर्मा अमृतं गमय ।

 

 

असत से सत्य की ओर बढ़ना भी प्रकाशित होने के समान है। मृत्यु से अमरता की राह भी मानव की आत्मा को प्रकाशित करती है। वस्तुतः हमारा हर क्षण जब हम सीखते है ,जब हम असफल होते है ,हमें सही ज्ञान की ओर अग्रसर करता है ,यही तो हमारा अन्त:करण का प्रकाश है। मानव जीवन एक प्रकाश पुंज है।

 

प्रकाश की बात करने का मेरा सीधा मन्तव्य  आने वाले प्रकाशोत्सव से है। कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला यह पर्व दीपावली कहें या दीपोत्सव कहें या प्रकाशोत्सव का सीधा महत्व हमारे इतिहास से है , प्रभु श्री राम अपने चौदह वर्ष की वन गमन यात्रा को पूर्ण कर इस धरा को राक्षसों से रहित कर अवध पहुँचे।अवध वासियों के लिये तो यह अविस्मरणीय दिन था, राम के लौटने की खुशी किसी उत्सव से कम नहीं थी। अवध में दीपोत्सव मनाया गया ,अमावस्या की काली रात्रि दीपों में कही विलुप्त हो गयी,दीपों की कतारों ने चौदह वर्ष राम के वियोग का दुख क्षण भर में ही समाप्त कर दिया।

प्रकाशोत्सव का वर्तमान स्वरूप थोड़ा बदला जरुर है,पर उसमें उत्साह खुशियाँ वैसी ही है।बिजली से चलने वाले दीपों की झालरों की रौनक ,विभिन्न प्रकार की आतिशबाजी इस उत्सव की रौनक को और बढ़ा देती है।

 

फिर भी मन में एक प्रश्न बार बार यही उठता है,कि क्या यही प्रकाशोत्सव स्वरूप है?

 

आज भी समाज का एक हिस्सा रोटी के लिये भूखा सो जाता है नारी की रक्षा भी एक मुद्दा बनकर रह गयी है।हम धर्म को राजनीति का विषय बनाकर बेवजह लड़ रहें है  मुद्दा होना चाहिए,हम प्रकाश की बात कर रहें है,लोग आग लगाने को तैयार बैठे है।देश की समस्याओं का हल मिलें न मिलेंं,रोज चैनलों पर चर्चा सुनिए ,आपको लगेगा हर प्रवक्ता अपनी पार्टी को बचा रहा है।यहाँ पर मेरा आशय यह था कि देश की समस्याएँ भी अमावस्या की रात्रि के समान घनी होती जा रही है उन्हें दूर करने के लिये भी किसी दीपोत्सव  को जीवंत किया जाना आवश्यक है।

 

माना कि अंधकार गहरा घना है लेकिन एक दीप जलाना कहा मना है

Exit mobile version