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भारतीयों को सर्वाधिक रोज़गार मुस्लिम बहुल देशों में

भारतीयों को दुनियाभर में सर्वाधिक रोज़गार मुस्लिम बहुल देशों ने दिया है। इसके अलावा भारतीयों को अपने देश की नागरिकता देने में भी मुस्लिम बहुल देश अव्वल हैं। कोई भी देश वहां के लोगों से मिलकर बनता है। तो माना जा सकता है कि मुसलमानों ने भारतीयों को खुले दिल से अपनाया है। विदेश मंत्रालय ने दिसंबर में एक रिपोर्ट जारी की जिसमें विदेशों में स्थाई और अस्थाई रुप से रहने वाले भारतीयों का ब्यौरा है।

अकेले संयुक्त अरब अमारात में (यूएई) में 28 लाख भारतीय कार्यरत हैं। वहीं इससे अधिक भारतीयों को यूएई में नागरिकता मिल चुकी है। कुवैत, क़तर, ओमान और बहरीन में 26 लाख से अधिक भारतीयों को रोजी-रोटी मिली है।

इन देशों के बारे में एक बहुत बड़े तबके को भ्रांति है कि भारतीय वहां जाकर भेड़, बकरी और ऊंट चराते हैं। भारतीयों से जबरन मज़दूरी कराई जाती है। अगर ऐसा होता तो इतने भारतीय आज वहां शायद ही होते। जैसे भारत में अच्छे और बुरे नियोक्ता हैं ठीक वैसे ही इन देशों में कुछ बुरे नियोक्ता हैं। जो समय से वेतन नहीं देते और निर्धारित समय से कहीं अधिक काम लेते हैं। भारतीय इन देशों में अलग-अलग कामों में लगे हैं। ठीक वैसे ही जैसे भारत में लोग अलग-अलग क्षेत्रों में नौकरियां कर रहे हैं। इन देशों में भारतीय कामगार रेस्त्रा, निर्माण कार्यों, खुदरा व्यापार, ड्राइविंग, शिक्षा, पर्यटन उद्योग और सेवा क्षेत्र में काम कर रहे हैं। भारत की तुलना में ज़्यादा वेतन और सुविधाओं के चलते भारतीयों को यह देश आकर्षित करते हैं। इन देशों में कर्मचारियों के समय से भुगतान और अन्य सुविधाएं प्रदान करने के लिए सख़्त क़ानून हैं जिनका पालन अधिकांश नियोक्ता करते ही करते हैं। हां यह बात सच है कि कुछ भारतीयों को सज़ा भी मिली है। लेकिन इसके पीछे थोड़ा पूर्वाग्रह से बचने की ज़रूरत है। अगर कोई विदेशी नागरिक भारतीय सीमा में अपराध करता है तो भारतीय क़ानून के मुताबिक़ सज़ा तो मिलती ही है। हालांकि छोटी-मोटी चोरी या अपराध करने पर यह देश दोषी कर्मचारी को उसके देश रवाना कर देते हैं। लेकिन उसके पासपोर्ट पर रेड एंट्री का चिन्ह लगा दिया जाता है जिसके चलते कुछ समय के प्रतिबंध से लेकर सदैव तक का प्रतिबंध शामिल होता है। इसके बाद उस कर्मचारी को इन देशों में काम मिलना मुश्किल हो सकता है।

उत्तराखंड के रहने वाले रवि शाह रिटेल कॉफी चेन में भारत में क़रीब सात साल काम करते रहे। समय से न प्रमोशन मिला न ही सैलरी हाइक। इसके बाद एक वह एक कंसल्टेंट के संपर्क में आए जो गल्फ में सेवा और आतिथ्य क्षेत्र में भारतीयों को को काम दिलवाते हैं। रवि का स्काइप के ज़रिए साक्षात्कार हुआ और अनुभव के चलते रवि का चयन बहरीन में एक कॉफी चेन में हो गया है। जहां रवि यहां मात्र 15 हज़ार रुपए मासिक पर काम कर रहा था। वहीं रवि को बहरीन में 30 हज़ार रुपए मासिक वेतन के अलावा रहने के लिए वेल फर्निस्ड शेयरिंग फ्लैट और कार्य स्थल तक आने-जाने के लिए कैब सुविधा भी उस कंपनी ने मुहैया कराई। रवि बताते हैं कि शुरू में लगा कि भारत की तुलना में यहां काम बहुत अधिक करना पड़ता है लेकिन बाद में सारी चीजे सहज लगने लगीं। कैब के लिए समय से निर्धारित जगह पर पहुचना पड़ता है। कुल मिलाकर अनुशासन बनाए रखने की बाध्यता है। कंपनी भी अगर निर्धारित घंटो से एक मिनट भी अधिक काम लेती है तो ओवर टाइम का भुगतान ऊंची दर से करना ही पड़ेगा। सर्विस चार्ज में भी हिस्सा मिलता था। रमज़ान के दिनों में सवेतन छुट्टी रहती थी। हां इन दिनों में हम भारतीय बाहर खा-पी नहीं पी सकते थे लेकिन कुछ निर्धारित रेस्त्राओं में छूट थी।  शेख लोग बढ़िया टिप देते थे। शेखों का व्यवहार अक्सर मित्रवत ही रहा।  

रवि के अनुसार दो साल काम के दौरान उन्हें किसी तरह की कोई समस्या नहीं आई।

इसके अलावा 22 महीनों के काम के बाद दो माह का सवेतन अवकाश और आने जाने का टिकट भी उक्त कंपनी देती थी।

बस पीने का पानी ज़रूर महंगा लगा लेकिन बाकी सब भारतीय लोगों के स्थानीय बाज़ार से सहजता से मिल जाता था। इस देश में सब्जी-भाजी बेचने का काम दक्षिण भारत के लोग करते हैं। भारतीय भोजन के रेस्त्रा भी पर्याप्त हैं।

ठीक ऐसे ही आशीष चक्रवर्ती इनदिनों दुबई में कॉफी चेन में स्टोर मैनेजर हैं। पहले वो एक भारतीय कॉफी चेन में काम करते थे। दुबई में तीन साल काम के बाद उनकी सैलरी 70 हज़ार मासिक से 1 लाख 30 हजार रुपए मासिक हो गई। आज इनके पास वहां खुद की गाड़ी है और इनकी पत्नी भी एक ट्रेवल एजेंसी में कार्यरत हैं। कुल मिलाकर हैप्पी-हैप्पी लाइफ।

दिग्विजय भारत में एक होटल के सर्विस विभाग में काम करते थे। इनदिनों वह बहरीन के एक गोल्फ क्लब में काम कर रहे हैं। बताते हैं कि भारत की तुलना में चार गुना अधिक वेतन मिलता है यहां।

हुसैन दीन जोकि एक कंसल्टैंसी फर्म चलाते हैं। इनकी फर्म गल्फ में भारतीयों को काम दिलाने में मदद करती है। बताते है कि हम हर सप्ताह दिल्ली, उत्तराखंड और चंडीगढ़ में गल्फ के लिए इंटरव्यू करवाते हैं। अधिकतर हम होटल और रेस्टोरेंट के लिए मैनपॉवर में डील करते हैं। हज़ारों लोग हम भेज चुके हैं। किसी को कोई दिक्कत नहीं आई। हम पहले क्लाइंट के बैक ग्राउंड को जांचते हैं ताकि हमारे भेजे बच्चों को आगे कोई शिकायत न हो। नहीं तो हमारे पास आगे से कोई आएगा ही नहीं।

 

अब भारतीयों की माली हैसियत की इन देशों में बात करें तो बता दूं की सैकड़ो भारतीयों की गिनती मुसलमान बहुल देशों में बड़े उद्यमियों के बीच होती है। इनमें से अधिकांश हिंदू हैं।

 

 

 

 गौरतलब है कि यह सारे देश मुस्लिम बहुल हैं। इनकी अर्थव्यवस्था तेल और गैस निर्यात पर टिकी है। पिछले कुछ सालों में ऊर्जा के नए स्त्रोतों के प्रयोग पर ज़ोर के चलते तेल की मांग में कमी आई है। इसके परिणाम स्वरूप भारतीय को काम मिलने की दर में कुछ क़मी आई है। हालांकि यह देश भी अब वैकल्पिक अर्थव्यवस्था को तैयार करने में जुटे हैं।

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