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मात्र 52 सेकेंड में देशभक्ति प्रमाणपत्र

52 सेकेंड में देशभक्ति जाहिर” 

भारत देश में 125 करोड़ लोगों में हमें कुछ लाख लोग अब भी हमें मिल जाएंगें जो राष्ट्र के लिए जान न्यौछावर कर दे पर इन कुछ लाख लोगों में हम उन सेना के वीर सिपाहियों को नही रखेंगे क्योंकि सेना सर्वोपरि हैं इन सभी तत्वों से..

तो कौन हैं यह कुछ लाख लोग? 

आप? हम?  या वो जो हर बार राष्ट्रहित के नाम पे वन्दे मातरम् कह के पल्ला झाड़ लेता हो? 

अरे भाईसाहब पहले यह किस्सा सुन लिजिये

एक बार हमारे इक मित्र ने हमसे सवाल किया की चन्दन बाबू आप कितने राष्ट्रभक्त हो?  

और हम (हँसते हुए) मतलब..!

अरे यहीं की कितना प्यारा हैं आपको भारत माता से?

 मैंने कहां भई प्यार तो करते हैं पर कभी नापतौल तो नहीं किया इसका, क्या तुम्हारे पास कोई यंत्र हैं?

चन्दन भाई आप मजाक सही कर लेते हो.. हम तो इसलिए कह रहे हैं की कभी आपको वन्दे मातरम् जय हिन्द कहते नहीं सुना 

अच्छा यह बात हैं तो आप भी अपनी माँ से प्यार करते हो?

हाँ इसमें कोई दो राय नहीं 

पर भई मैंने तो कभी देखा नहीं करते हुए… ।

उस दिन के बाद से मेरे उस मित्र ने मेरी देशभक्ति पर सवाल नहीं उठाये।

अब बात यह आती हैं की राष्ट्रभक्ति क्या हैं राष्ट्रभक्त कौन हैं? तो यह कहना उचित होगा की जो राष्ट्रहित में अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करें और अपने हिस्से का भारत निर्माण में योगदान दे।

30 नवंबर 2016 को जस्टिस दीपक मिश्रा और अमित्वा राॅय कि बेंच ने अहम फैसला लेते हुए निर्देश दिया की देश के सभी सिनेमाघरों में फिल्म शुरू होने से पहले राष्ट्रगान चलाना अनिवार्य होगा। जिससे सभी में देशप्रेम की भावना हो
राष्ट्र एवं राष्ट्रगान के सम्मान में एक साथ विशाल जनसमूह का खड़ा होना वाकई काफी गौरवान्वित क्षण होता हैं।
52 सेकेंड के बाद सभी दर्शक फिल्म का लुत्फ उठाने में लग जाते हैं फिर फिल्म के दौरान ही किसी कामुकता भरें दृश्य के प्रदर्शित होने पर कामुक हो जाना, अश्लील और भद्दे जोक्स पर ठहाके लगाना इन सभी के दौरान मानसिकता पूर्ण रूप से बदल जाती हैं और देशभक्ति सिर्फ “52 सेकेंड” में सिमट कर दम तोड़ देती हैं।
बस सिनेमाघरों में ही क्यूँ..!
प्रतिदिन सभी सरकारी दफ्तरों में भी क्यूँ नहीं?
अपने सुझावों को साझा किजिये
अंत में ज्यादा कुछ नहीं बस “जय हिन्द और हिन्द की सेना”

✍चन्दन यादव

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