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छत्तीसगढ़ सरकार का किसानों के लिए ‘बोनस तिहार’ पर भूपेश बघेल का विश्लेषण

छत्तीसगढ़ में भाजपा के लिए किसान का मतलब सिर्फ वोट होता है। किसान खुदकुशी कर रहे हैं और भाजपा सरकार मानती भी नहीं कि क़र्ज़ की कोई समस्या है। खुदकुशी करने वाले किसानों के परिजनों को मुआवज़ा भी नहीं देती, दुख बांटने तक की ज़हमत नहीं उठाती। सूखे से किसान परेशान रहते हैं, लेकिन राहत का कोई उपाय नहीं करती। सरकार, धान का एक-एक दाना खरीदने को कहती है और फिर किसानों को नियम-कायदों में उलझा देती है। जबरन किसानों की ज़मीन अधिग्रहित कर लेती है, ना उचित मुआवजा देती है, ना रोज़गार देती है और ना पुनर्वास की व्यवस्था करती है।

अगर चुनाव में हार का डर ना हो, तो किसानों के लिए भाजपा कुछ भी ना करे। चुनाव में वादा किया और विधानसभा में कहा कि किसानों को 2100 रुपये समर्थन मूल्य और 300 रुपये बोनस देंगे। समर्थन मूल्य दिया नहीं, अब एक साल का बोनस देकर झूठी वाहवाही लूटने की कोशिश में हैं, जबकि किसान धोखाधड़ी के खिलाफ सड़कों पर हैं। किसानों को वादे के मुताबिक पूरा बोनस और समर्थन मूल्य चाहिए।

रमन सिंह का बोनस प्रलाप 

छत्तीसगढ़ में पिछले 14 वर्षों से भारतीय जनता पार्टी की सरकार के मुखिया डॉ. रमन सिंह ‘बोनस तिहार’ मना रहे हैं। वे इन दिनों छत्तीसगढ़ के एक तिहाई किसानों को बोनस बांट रहे हैं और दो तिहाई किसान उनकी ओर दयनीय भाव से देख रहे हैं कि उन्होंने ऐसा क्या अपराध कर दिया कि वे बोनस के हक़दार नहीं रह गए?

जो किसान बोनस पा रहे हैं, वो भी सोच रहे हैं कि वादा तो हर साल बोनस देने का था लेकिन ये एक साल का ही बोनस उनके खाते में क्यों आ रहा है? दो सालों का बकाया बोनस उन्हें क्यों नहीं दिया जा रहा है? मिलना 900 रुपए था, लेकिन मिल रहे हैं सिर्फ 300 रुपए। वादा तो प्रति क्विंटल 2100 रुपए के समर्थन मूल्य का भी था, लेकिन चुनाव जीतकर आने के बाद उस पर एक बार भी चर्चा नहीं हुई। सरकार ने इसके लिए कोई प्रयास किए ऐसा कहीं दिखा नहीं। पिछला समर्थन मूल्य 1470 रुपए था, इसके हिसाब से पिछले चार वर्षों से प्रति क्विंटल 730 रुपए के अंतर की राशि भी बची हुई है, यानी 2920 रुपए प्रति क्विंटल और साधारण ब्याज भी देख लें, तो हर किसान अमूमन 4000 रुपए प्रति क्विंटल का लेनदार है, लेकिन मिल रहा है सिर्फ 300 रुपए।

किसान 300 रुपए बोनस ले तो रहा है क्योंकि एक तो जो मिल रहा है वह उसके हक़ का पैसा है, दूसरे वह तो इस समय पाई-पाई के लिए मोहताज है और 30 रुपए भी मिलें तो इनकार करने की स्थिति में नहीं है। लेकिन उसकी इस मजबूरी को भाजपा के नेता उसकी ख़ुशी समझने की भूल कर रहे हैं।

सरकारी आदेश से भीड़ जुटानी पड़ रही है

इस बीच मुख्यमंत्री रमन सिंह ने एक और डरावनी भूल कर दी है, वो बोनस देने की प्रक्रिया को एक उत्सव में बदलने की कोशिश कर रहे हैं। सरकारी दस्तावेज़ बताते हैं कि ‘बोनस तिहार’ के लिए कथित रूप से किसान, सरकारी इंतज़ाम की गाड़ियों में लादकर लाए जा रहे हैं। हो सकता है कि उन्हें यह सरकारी त्योहार मनाने के लिए दिहाड़ी भी दी जा रही हो। मुख्यमंत्री दावा करते हैं कि बोनस की घोषणा से किसान ख़ुश हैं, अगर वो सचमुच खुश हैं तो क्यों आपको सरकारी आदेश से भीड़ जुटानी पड़ रही है?

भाजपा के ही वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी ने कहा है कि नरेंद्र मोदी जी की समस्या यह है कि वे हर कुछ को एक इवेंट में बदल देते हैं और इस हद तक चले जाते हैं कि इवेंट अश्लील दिखाई देने लगता है। उन्होंने कहा कि जीएसटी एक टैक्स सुधार योजना है और इसे लागू करने को आज़ादी के साथ तौलना ठीक नहीं था, टैक्स सुधार तो सरकारों का काम ही है।

यही भूल रमन सिंह जी ने भी की है और वे बोनस बांटने को एक इवेंट में बदलना चाह रहे हैं। बोनस बांटना डॉ. रमन सिंह की ना केवल नैतिक बल्कि एक कानूनी ज़रूरत भी है। उन्होंने राज्यपाल महोदय से विधानसभा में कहलवाया था कि सरकार हर साल बोनस देगी, उन्होंने ख़ुद भी विधानसभा में इसकी घोषणा की थी, इसलिए अब वो इससे मुकर नहीं सकते। लेकिन इस बाध्यता को उन्होंने एक ‘अश्लील इवेंट’ में बदल दिया है। वे जनता का पैसा जनता को इस तरह से लौटा रहे हैं, मानों वे कोई राजा या सामंत हों जो जनता पर कृपा कर रहा हो।

सिर्फ इतना होता तो कोई बात नहीं थी, प्रदेश में भयंकर सूखा है और वो उत्सव मना रहे हैं। पिछले एक हफ्ते में इस ‘अश्लील इवेंट’ में उन्होंने जो प्रलाप प्रक्रम शुरू किया है, उसने इसे और फूहड़ बना दिया है। बोनस बांटने को चुनावी बटन से जोड़कर उन्होंने अपने मन की बात कह दी है कि बोनस का ताल्लुक किसान हित से नहीं, चुनाव में भाजपा के हित से है।

कांग्रेस का संघर्ष

ये बात भाजपा भी जानती है और रमन सिंह जी तो बखूबी जानते हैं कि वो किसानों को बोनस, कांग्रेस के अनवरत आंदोलन, किसानों की ओर से उन्हें भेजे गए कानूनी नोटिस और चुनाव में तय पराजय के डर के कारण से दे रहे हैं। इस बीच कुछ और किसान संगठनों के आंदोलनों ने भी उन्हें यह फ़ैसला लेने के लिए बाध्य किया है।

रमन सिंह जानते हैं कि यह उनकी मजबूरी थी कि वे बोनस देने की घोषणा करें। लेकिन वे कह रहे हैं कि किसान ख़ुश हैं, अगर किसान खुश हैं तो रमन सिंह जी वो कौन हैं जो पूरा बोनस, समर्थन मूल्य और सूखा राहत की मांग को लेकर सड़कों पर उतर रहे हैं?

वो कौन हैं जिन्हें रोकने के लिए सरकार को पूरे राज्य में धारा 144 लगानी पड़ती है? सैकड़ों किसानों को जेल में डालना पड़ता है? वो कौन हैं जो रोज़ प्रदर्शन कर रहे हैं और रोज़ उन्हें पुलिस गिरफ़्तार कर रही है? इस ‘बोनस तिहार’ उत्सव के दौरान अपने हक की मांग को लेकर सत्याग्रह कर रहे 100 से अधिक किसानों को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया है।

अगर किसान खुश ही हैं रमन सिंह जी तो आपके प्रलाप में ये कांग्रेस का ज़िक्र बार-बार क्यों आता है कि हम किसानों को भ्रमित कर रहे हैं? हम उन्हें केवल आपके वादे याद दिला रहे हैं और उन्हें उनके अधिकारों के प्रति सचेत कर रहे हैं।

अचानक उन्हें याद आ रहा है कि वो किसान के बेटे हैं और किसानों का दुख दर्द समझते हैं। इस प्रलाप में वे भूल गए कि किसानों की आत्महत्या का सिलसिला उनके कार्यकाल में ही शुरू हुआ। पिछले एक साल में ही 120 से भी अधिक किसानों को आत्महत्या के लिए मजबूर होना पड़ा है। सरकार ने खुद माना है कि किसानों की आत्महत्या के मामले में छत्तीसगढ़ पांचवे नंबर पर है। यहां पिछले साल तकरीबन 954 किसानों ने आत्महत्या की। एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, 14 साल में 14,793 किसानों ने आत्महत्या की। इस सबके लिए रमन सिंह की भाजपा सरकार की किसान विरोधी नीतियां ही ज़िम्मेदार हैं। भाजपा के ‘बोनस तिहर’ उत्सव के बीच भी किसानों की आत्महत्या जारी है और उनकी सरकार दुखी परिवारों की सुध लेने तक नहीं पहुंच रही है।

उन्हें याद आ रहा है कि कांग्रेस विधायक ख़रीदती है, अपने प्रलाप में वे भूल गए कि अंतागढ़ विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी की खरीदफरोक्त में वे खुद भी आरोपी हैं और उनके दामाद पुनीत गुप्ता भी। अंतागढ़ कांड के विलेन पूर्व मुख्यमंत्री और उनके बेटे के साथ वे ही गलबहियां डाले रहे हैं, अभी इसकी याचिका सुप्रीम कोर्ट में है।

अब जब उनका कार्यकाल साल भर का ही बचा है, तो उन्हें किसानों की आय बढ़ाने के सपने दिख रहे हैं और टर्नओवर बढ़ाने का जुमला याद आ रहा है। भाजपा की रमन सिंह सरकार किसानों की धुर विरोधी है। अगर उन्हें किसानों का खयाल होता तो किसानों का पानी उद्योगपतियों को नहीं बेच देते, उनकी ज़मीनें लेकर उनके पुनर्वास की व्यवस्था नहीं भूल जाते, उन्हें नकली खाद और बीज नहीं बेचते। यह रमन सिंह का बोनस प्रलाप दरअसल चुनावी प्रलाप है, वे आखिरी खंदक की ऐसी लड़ाई लड़ रहे हैं, जिसे वे पहले ही हार चुके हैं।

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