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“8 साल की उम्र में मुझ पर सेक्शुअल असॉल्ट होने पर मुझे ही पापा ने चुप करवा दिया”

ज़िन्दगी के हज़ार पहलू होते हैं जिनको लॉजिक लगाकर भी समझे तो समझा नहीं जा सकता, हर पहलू का अपना रंग होता है। वही पहलू आगे चलकर किस्से और कहानी बन जाते हैं। मैं जॉइंट फैमिली में पैदा हुई, जहां लड़के का जन्म लेना लड़की के वजूद को खत्म कर देता था। मेरी दादी को पोता चहिये था मगर भगवान ना अपना न्याय अपने हिसाब से करते हैं मुझसे बड़ी तीन बहने पैदा हुई फिर मेरा नम्बर आया। बड़ा हंगामा हुआ था मेरे पैदा होने पर, डॉक्टर से चेक तक करा लिया गया था कि लड़की है मगर पापा की ज़िद थी कि जहां तीन लड़की है वहां चार सही, दुनिया थोड़े ही छोड़ देंगे।

माँ को लगता था कि वो एक और लड़की पैदा करेंगी तब घर में उनकी ज़रा भी कद्र नहीं रहेगी। उनको लगता था कि जैसी ताई जी की इज़्जत थी दो बेटे पैदा करने के बाद वैसी इज़्जत उनकी नहीं हो पाएगी। माँ ने मायके जाकर एबॉर्शन कराने का फैसला लिया मगर वहां भी पति के सिग्नेचर चाहिए थे। पापा को पता लगा तो उन्होंने कह दिया कि इस बच्ची को कुछ हुआ तो तुम्हारा इस घर से कोई रिश्ता नहीं। बच्चा पैदा करना ना करना तुम्हारी मर्ज़ी हो सकती थी मगर इसे ऐसे मारने में मैं साथ नहीं दे सकता।

माँ मायके में रही फिर मैं पैदा हुई, माँ को पहली बार मुझ पर तरस आया मगर अपनी घर में होने वाली कम इज़्जत का भी ख्याल आ गया। दादी ने माँ से ज़रा भी बात नहीं की और फरमान किया कि अब तक बेटियां बीमार हुई तब मैंने डॉक्टर को दिखा दिया था मगर ये बीमार हुई तब किसी डॉक्टर से नहीं दिखाऊंगी। माँ ने मुझे भगवान भरोसे छोड़ दिया। मैं दो तीन साल तक घर पर रही फिर भाई हो गया और वो सबकी आंखों का तारा बन गया। ऐसा नहीं है कि मुझे भाई से प्यार नहीं था, मैं भी उससे बहुत प्यार करती थी, शायद खुद से भी ज़्यादा। मगर खुद का अस्तित्व गुम होता देख तकलीफ़ होती थी, ख्याल ये भी आता था कि पक्का ये मेरी माँ नहीं है तभी वो बस भाई को ज़्यादा प्यार करती हैं। चार बहनों के बाद भाई हुआ था शायद इसलिए माँ भाई के साथ बिज़ी रहती और दादी हमें दुत्कार देती अपने पास तक नहीं आने देती।

पापा बड़े प्यार से बात करते थे इसलिए मैं सबको धमकी देती थी कि अपने पापा से कह दूंगी। पापा मुझे अपने साथ दिल्ली ले आए और यहां आकर स्कूल शुरू हुआ। ज़िन्दगी पापा के आस-पास घूमती रही, कभी कभार माँ के पास भी जाना होता था। पापा लंच ब्रेक में मुझे स्कूल से लाकर घर छोड़ जाते और फिर वापस ऑफिस ले जाते, खाना मेरे पापा बहुत अच्छा बनाते थे।

देखते-देखते मैं चौथी क्लास में आ गई। जनवरी का महीना था पापा की ड्यूटी 26 जनवरी के पास बांटने में लगी थी, उस दिन पापा टाइम से नहीं लेने आए और मैं खुद घर आ गई थी। घर का ताला बंद था और कोई नहीं था तब पड़ोस वाली आंटी ने पूछा “आज पापा लेने नहीं आए?” मैंने कहा नहीं, तो वो मुझे अपने साथ लेकर गई और खाना दिया खाना खाकर नींद आ गई, जब नींद खुली तब सब अंधेरा-अंधेरा था। हाथ किसी जकड़ में थे और शरीर हिल भी नहीं पा रहा था। मेरी स्कर्ट, मेरी शर्ट, मेरी बनियान, अंडरवियर कुछ नहीं था मेरे बदन पर, मैं बस आठ साल की थी,  मैंने खुद को छुड़ाने की कोशिश की मगर नहीं कामयाब हुई

रोना शुरू किया तो मेरी शर्ट को मेरे मुंह में ठूस दिया। वो आंटी का तकरीबन 24 साल का बेटा था, उसने ज़बरदस्ती करने की कोशिश की मगर नहीं हो पाया तो लकड़ी का टुकड़ा उठाया और मेरे प्राइवेट पार्ट में घुसा दिया। चीख, पुकार सब वहीं दबकर रह गई और मैं बेहोश हो गई। मुझे होश आया तीन दिन में तब तक सारी कहानी बदल गई थी।

गुनाह करने वाला मेरे पापा के गुस्से के डर से दुनिया छोड़ कर जा चुका था और उसकी माँ माफी पर माफी मांगे जा रही थी। पड़ोसी सलाह दे गए थे कि पापी चला गया तो FIR का फायदा क्या ? कल को लड़की की शादी भी करनी है। इससे बड़ी बहनें भी हैं, माँ-पापा ने समाज के डर से बात खुद तक रख कर दफन कर दी। क्यों किसी ने नहीं पूछा मुझे कैसा महसूस हुआ था और आज तक कैसा महसूस होता है। स्कूल में गई ,कॉलेज में गई तो माँ ने कहा था किसी से मत कहना ये सब, अपने बहन भाइयों तक भी नहीं कहा कभी भी, कितनी ही रातों में सोई नहीं, नींद आई भी तो एक साये के साथ जिसने पीछा नहीं छोड़ा। उसके किये की सज़ा मुझे बीच-बीच में हुई सर्जरी से चुकानी पड़ी।

फिर एक बार प्यार हुआ किसी से पहली बार का प्यार, साथ थोड़ा करीब आए मगर उस करीबी में भी मुझे वही दिखा। किस्स करने से पहले बेहोश हो गई वो डर गया और छोड़ कर चला गया। अब ये डर इतना बढ़ता जा रहा है कि घर में शादी की बात चलते ही रूह कांप जाती हैं, किसी से प्यार करने का किसी के प्यार में डूबने का मन होता है, उसको खुद की लिखी शायरी सुनाने का मन होता है मगर फिर वो पल कि क्या मैं उसे खुश रख पाऊंगी वहां जाकर पैर अपने आप पीछे हट जाते हैं। किसी की एक नीयत ने मेरी नियति बदल दी। चाहतें खत्म हो रहीं हैं और ज़िन्दगी मोमबत्ती की तरह जल रही है, सांसे भविष्य को सोच कर डूब जाती हैं। आखिर मेरी गलती क्या थी ?

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