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मेरे घर वाले समझ ही नहीं पाए कि ज़िंदगी बस सरकारी नौकरी नहीं होती

जब मैं स्कूल में थी तो बस इतने सपने में जीती थी कि बड़े होकर मुझे टीचर बनना है, जब दसवीं-बारहवीं में आई तो सपने थोड़े से और बड़े हो गए, अब मुझे वकील बनना था। फिर जब कॉलेज में आई तो किसी ने मर्ज़ी नहीं पूछी और ज़बरदस्ती भेज दिया कंप्यूटर साइंस पढ़ने। ना मन लगता था पढ़ने में, ना मज़ा आता था। बस एक दिन बड़ी बहन से शर्त लग गई उससे ज़्यादा नंबर लाने की और उसी जिद में कॉलेज टॉप भी किया और यूनिवर्सिटी की टॉप 20 की लिस्ट में जगह बनाई। ये मेरी पसंद का सबजेक्ट नहीं था, मगर कंप्यूटर साइंस पढ़ना तब भी मज़बूरी थी और आज भी है।

आज जैसे-तैसे मास्टर्स हो गया है कंप्यूटर साइंस में, मगर आज भी वो मेरे लिए एक मजबूरी ही है। अब समझ ये नहीं आ रहा कि करूं क्या?

कंप्यूटर साइंस पसंद नहीं है मगर उसमें मैं टॉपर हूं, मैथ्स बस ठीक-ठीक ही है। सरकारी नौकरी के लिए भी 2-3 साल तैयारी भी कर चुकी हूं।  मुझे सिविल सर्विसेज़ की तैयारी करने की इच्छा थी लेकिन वो इच्छा भी सबका मज़ाक बनकर या ये सुनकर दब गई कि इतनी बड़ी छलांग क्यों लगानी है? क्लर्क की तैयारी कर ले या MTS (Multi Tasking Staff) की तैयारी कर ले, फिर कर लियो आगे।

अब जब भी कोई एग्ज़ाम आने वाला होता है तो दिमाग में सबसे पहले यही खटकता है कि क्या कहूं किसका एग्ज़ाम है? घर पर मां की प्रतिक्रिया यही होती है कि मन लगाकर पढ़ाई तो की नहीं, क्या फायदा है एग्ज़ाम देने का?  प्लीज़ मां, आप तो समझिए मेरी ज़िंदगी के इस फेज़ को। ज़िंदगी बस नौकरी, पैसा, पति और शादी नहीं होती, ज़िंदगी में मुहब्बत, रिश्ते, साथ और अपनापन भी होता है। ज़िंदगी बस सरकारी नौकरी नहीं होती, उससे बढ़कर और भी बहुत कुछ होती है।

अपने शौक को ज़िंदा रखना भी ज़िंदगी होती है, काश आप जान पाती कि हर जगह से निराश होने पर थोड़े से प्यार और हिम्मत की उम्मीद में मैंने बस आपकी तरफ देखा है, मगर क्यों आप वहां नहीं होती?मुझे नहीं समझ आती मैथ्स, ये बात कैसे समझाऊं मां को। दीदी मैथ्स में अच्छी है, उन्होंने नौकरी भी की फिर थोड़ी और तैयारी की तो दूसरी नौकरी भी मिल गई। बस अब मां के लिए मैं और वो तुलनात्मक चिन्ह बन कर रह गए हैं। लगातार 2-3 साल तैयारी के बाद भी मेरी नौकरी का कुछ नहीं हुआ तो अब मेरे घर में शुरू हुई कोई भी बात मेरी तैयारी या फिर मेरी नौकरी पर आकर ही रुक जाती है। चाहे वो शादी हो, अच्छा कमाने वाला पति हो या फिर घर में प्रयोग होने वाले शीशे के गिलास।

कॉलेज छूट चुका है और इतने दोस्त कभी बनाए नहीं, क्योंकि आपको दोस्त टाइम वेस्ट लगते थे। किसी दोस्त से 4 मिनट से ज़्यादा बात करना भी आपको अखर जाता है, तो आप ही बता दीजिए की मैं कहां जाऊं?

ज़िंदगी बोझ लगने लगती है, हर रात ये ख़याल आता है कि आत्महत्या कर लूं, मगर दिल गवाही नहीं देता। हर सुबह मन होता है कि घर छोड़कर चली जाऊं, मगर फिर ख़याल आपका ही आता है। मां मैंने उम्मीद की हर निगाह में आपको दोस्त बनते देखने की तमन्ना पाली है, काश कभी आप मेरे जज़्बात समझ पाती… सरकारी नौकरी से अलग और आगे भी ज़िंदगी होती है।

फोटो प्रतीकात्मक है; फोटो आभार: getty images 

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