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मेरे पहले पीरियड्स की कविता

By: Neha Gautam

बचपन, बहुत ख़ूबसूरत, बहुत प्यारा

मम्मी की प्यारी और पापा की आँखों का तारा

छिड़कते हैं सब जान, भाई बहन की हूँ मैं शान

पर ज़िन्दगी में एक मोड़ ऐसा आया

जब मुझे मेरी पहचान का अस्तित्व समझ आया

नींद के आग़ोश से मुझे बुलाया

वक़्त बे-वक़्त मुझे जगाया

समझ ना आया की क्यूं इतनी ठंडी है

मेरे बिस्तर पर क्यूं इतनी नमी है

आँखें मिलमिला कर, थोड़ी हिम्मत जुटा कर

अचानक से अपनी रज़ाई को हटाती हूँ

देखकर लाल रंग मैं सहम सी गयी थी

इतनी रात को शायद मुझे कोई चोट लग गयी थी

लेकिन कुछ समझ ना आया, चोट लगी तो दर्द क्यूँ नहीं हुआ?

बड़ी अजीब से बेचैनी थी, लेकिन मैं इस लाल रंग को समझने में लगी थी

फिर जब हार गयी तब मैंने मम्मी को जगाया

अपनी सहमी सी आवाज़ में मम्मी-मम्मी कहकर उन्हें उठाया

तेज़ आवाज़ सुनकर मम्मी भी घबरा गयी

जल्दी से उठकर मुझे गले लगाया

फिर पूछा कि क्या हुआ बेटा, इतनी रात को क्या कोई सपना देखा?

मैंने मम्मी को कसकर गले लगाया, और बिस्तर की तरफ़ ऊँगली दिखाया,

देख उसको मम्मी मेरी हल्की सी मुस्कुराई, और गले लगाकर मुझे बताया

बेटा यह हर लड़की के साथ होता है

महीने के कुछ दिन में योनि से ख़ून निकलता है

अब से यह तुमको हर महीने आएगा, ओर तुमको लड़की होने का अहसास करवाएगा

यह एक प्रकृतिक प्रक्रिया है जो कल एक नया जीवन लाएगा

मम्मी की बातों को समझना थोड़ा मुश्किल था

लेकिन इस मुश्किल से निकलना भी ज़रूरी था

ठंड के मौसम में डर से काँप रही थी मैं

फिर मम्मी ने मेरे कपड़े बदलवा कर, दाग़ ना लगने के तरीक़ों को समझाया

चादर बदल कर मुझे लिटाया, माथे को चूमकर गले लगाया

क्यूं होता है, क्या होता है यह सब मुझे समझाया

यह लाल रंग की कहानी है, जो मेरे लड़की होने की निशानी है।


The author is a TYPF Peer Educator and Youth Advocate in Lucknow, Uttar Pradesh.

Design: Kruttika Susarla

The YP Foundation’s KYBKYR campaign 2.0 is a continuation of the Know Your Body, Know Your Rights campaign that we ran in 2010–2011. KYBKYR 2.o focuses on the need for young people to have access to sexual and reproductive health and rights information that is fact-checked, evidence based, and sex-positive. The campaign provides resources that assist young people to advocate for access to comprehensive sexuality education (CSE) with the decision-makers and authority figures in their lives, including family members, teachers, and administrators in educational institutions.

This post was originally published on www.theypfoundation.org.

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