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आम महिलाओं के चरित्र को फिल्मों में खास रूप देने वाली स्मिता पाटिल

“हमें बस ये पता है वो बहुत ही खूबसूरत है” स्मिता पाटिल पर फिल्माया गया ये गाना स्मिता की खूबसूरती को बखूबी बयान करता है। स्मिता पाटिल अभिनय का वो चमकता सितारा थी जो बहुत तेज़ी के साथ फिल्म जगत के नक्षत्र पर उभरा लेकिन दुर्भाग्य से बहुत जल्दी डूब गया। अभिनय का ये सितारा डूबने से पहले इतनी तेज़ी से चमका की इसकी चकाचौंध भारतीय सिनेमा में आज भी चमकती है। कलात्मक फिल्मों की बात हो और स्मिता का नाम न आए ऐसा मुमकिन नहीं हो सकता। पतला सा लम्बा चेहरा बड़ी बड़ी आंखें जो सीधे किसी के भी सीने में गड़ जाएं और घायल कर दे।

स्मिता को पहला ब्रेक देने वाले श्याम बेनेगल ने कहा था-

“मैंने पहली नजर में ही समझ लिया था कि स्मिता पाटिल में गजब की स्क्रीन प्रेज़ेंस है और जिसका उपयोग रुपहले पर्दे पर किया जा सकता है।”

स्मिता को सबसे पहले श्याम बेनेगल ने चरणदास चोर में मौका दिया जिसकी छोटी सी भूमिका में स्मिता ने सबको प्रभावित किया। उनकी “अर्थ” कौन भूल सकता है। कलात्मक सिनेमा में स्मिता ने अपनी “भूमिका” इतनी मज़बूती से निभाई कि उनकी अदाकारी में उषा की एक नई किरण दिखाई देती है। मंथन, निशांत, मंडी, चक्र, गिद्ध न जाने कितनी फिल्में हैं जिनको स्मिता ने अभिनय से सजाकर अमर कर दिया।

फिल्म मिर्च मसाला के एक दृश्य में स्मिता पाटिल

गर्मी का मौसम, बहता पसीना, मिर्च की फैक्ट्री में काम करतीं कुछ महिलाएं उनमें से एक पूरी लगन से काम करती स्मिता की कहानी कहने के लिए काफी है। हम उसी फिल्म मिर्च मसाला की बात कर रहे हैं जिसकी बदौलत केतन मेहता को अंतर्राष्ट्रीय पहचान मिली।

फिल्म “वारिस” के वे संवाद कौन भूल सकता है जिसमें वे अपने ससुर को दूसरी शादी कराने के लिए उनसे सवाल जवाब करती हैं। स्मिता ने जितना कला फिल्मों को अपनी अदायगी से संवारा उतना ही व्यावसायिक फिल्मों को भी। अमिताभ के साथ नमक हलाल में उन्हें कौन भूल सकता है। “आज रपट जायें तो हमें न उठइयो” जब भी किसी कौने से कानों में पड़ेगा स्मिता की स्निग्ध मुस्कान दिलों पर राज करती रहेगी।

फिल्म नमक हलाल के गीत ‘आज रपट जाएं’ का एक दृश्य

स्मिता ने मूलतः भारतीय महिलाओं के मध्यवर्गीय चरित्र को उभारने वाली सशक्त भूमिकाओं को अपने अभिनय का मुख्य पात्र बनाया। उन्हीं मध्यवर्गीय महिलाओं का चरित्र जिन्हें अपने घर परिवार समाज में सिर्फ संघर्ष करना पड़ता है, जिन्हें ये समाज कभी परम्परा के नाम पर तो कभी संस्कारों के नाम पर आगे बढ़ने से प्रतिबंधित करता रहा है। इन चरित्रों में महिलाओं की कामुकता का समाज में अभिव्यक्ति का सुर भी था।

स्मिता का नाम सामने आते ही सबसे पहले उनकी अर्थ सामने आती है सही मायनों में जिसके न जाने कितने अर्थ थे, बिल्कुल स्मिता की ही तरह। सामंतवादी समाज की वो औरत जो अपने बूते अपना मुकाम हासिल करना चाहती है। जो अपने अधिकारों के लिए किसी से भी लड़ सकती है जो बनी बनाई परम्पराओं पर नहीं चल सकती।

महाराष्ट्र के मंझे हुए राजनेता और एक समाज सेविका की बेटी स्मिता पाटिल ने अपनी अलग राह बनाते हुए सिनेमा को अपने करियर के रूप में चुना जिसमें वे बेहद सफल भी हुईं। स्मिता अपने आप में एक्टिंग का एक स्कूल थीं। उनके बारे में बात करते हुए नाना पाटेकर ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि वे अगर एक्टिंग में हैं तो इसका श्रेय स्मिता पाटिल को जाता है। उनको दो बार राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानित किया गया पहली बार 1977 में आई भूमिका के लिए और दूसरी बार 1981 में आई फिल्म चक्र के लिए।

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