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नेत्रहीन होने से ज़्यादा परेशान परिवार और समाज की अनदेखी करती है

इस वास्तविकता से तो हर कोई वाक़िफ़ है कि व्यवहारिक अनुभव ज़िंदगी में आगे बढ़ने का सबसे बड़े सबक होते हैं और यदि व्यक्ति नेत्रहीन हो तो बात ही अलग हो जाती है। किसी इंसान की नेत्रहीनता से जुड़े व्यवहारिक अनुभव ना सिर्फ ज़िंदगी के लिए सबक बनते हैं बल्कि ये इस बात का भी एहसास कराते हैं कि नेत्रहीनता उसकी कमज़ोरी नहीं बल्कि उसके जीवन की मज़बूती है।

दृष्टिहीन व्यक्ति का जीवन ऐसे अनुभवों से भरा होता है जो उसे परिवार के साथ-साथ पूरे समाज में उसकी अनदेखी यानी उसकी धूमिल छवि से उसका परिचय कराते हैं। मैं जब दृष्टिहीन हुई तो लगा जैसे पूरी दुनियां ही ख़त्म हो गई है, लेकिन इसी दृष्टिहीनता की वजह से जब परिवार और समाज की दोहरी अनदेखी को सहना पड़ा तो यह एहसास और पुख्ता हो गया।

कभी घर पर यह जताया जाता कि आंखों वाले भाई-बहन या अन्य लोग सभी कामों के लिए योग्य या सक्षम हैं, तो कभी स्कूल-कॉलेज में ऐसे अनुभवों का सामना करना पड़ा जब शिक्षक ये कहते नहीं थकते थे, “भगवान ने बेचारों की ज़िंदगी कैसी बना दी है” भले ही मैंने अपने विषय में पहला स्थान क्यों ना प्राप्त किया हो। मेरी उपलब्धियों के आगे मेरी दृष्टिहीनता मेरे शिक्षकों की नज़रों में अधिक प्रबल थी, जो मुझे बहुत कमज़ोर बनाती थी।

इन अनदेखियों ने तो उस समय भी मेरा पीछा नहीं छोड़ा जब मैंने अपनी काबिलियत के बल पर नौकरी हासिल की और अपने लिए एक सुखद और शांत जीवन का सपना देखा, लेकिन मेरे इन सपनों को तोड़ने में मेरे सहयोगी कर्मचारियों ने पूरी मदद की।

इस तरह की अनदेखियों से भरी स्थितियों का सामना कार्यस्थलों पर भी करना पड़ता है, जहां हमारी योग्यता को ताक पर रख दिया जाता है और चपरासी या गार्ड को स्नातकोत्तर किए हुए दृष्टिहीन कर्मचारी से बेहतर समझा जाता है। इसका सीधा मतलब है कि एक दृष्टिहीन व्यक्ति को अपनी योग्यता साबित करने के लिए कई संभावनाओं और स्थितियों से जूझना पड़ता है।

दोस्ती, जिसे इस संसार में दो लोगों के बीच सबसे श्रेष्ठ और सुन्दर रिश्ता माना जाता है, लेकिन इस रिश्ते में भी दृष्टिबाधित लोगों को अनदेखियों का सामना करना पड़ता है। मेरे अनुभव यही कहते हैं कि बहुत कम दृष्टिसक्षम लोग, किसी नेत्रहीन व्यक्ति से दोस्ती करना पसंद करते हैं, क्योंकि उन्हें यही भय सताता है कि ना जाने यह दृष्टिहीन उन्हें कब किसी काम के लिए बुला लें और उसे कहां कहां ले जाकर ढोना पड़े।

अनदेखी की ये दास्तान केवल यही तक सीमित नहीं रह जाती, यानी यह अनदेखी तो उस वक़्त भी दृष्टिहीन व्यक्ति का पीछा नहीं छोड़ती जब उसे अपने जीवनसाथी का चुनाव करना होता है। इस संदर्भ में मेरे अनुभव ये बताते हैं कि एक दृष्टिसक्षम व्यक्ति, किसी दृष्टिबाधित से विवाह नहीं करना चाहता क्योंकि ऐसा करके वह समाज में अपनी झूठी प्रतिष्ठा को खत्म नहीं करना चाहता।

अगर कोई दृष्टिसक्षम ऐसा कर भी लेता है तो शायद इसलिए क्यूंकि वह शिक्षा, व्यवसाय या किसी अन्य मामले में उस दृष्टिहीन व्यक्ति से कमतर ही होगा। बावजूद इसके वह हमेशा अपने दृष्टिहीन जीवनसाथी को केवल उसकी नेत्रहीनता की वजह से कमतर आंकने का ही प्रयास करेगा और दृष्टिहीन व्यक्ति को जीवनभर अपने जीवनसाथी की अनदेखियों को सहना पड़ता है।

आख़िर में एक सबसे बड़ी अनदेखी का ज़िक्र करना ज़रूरी है जिसे सोच कर भी हंसी आती है, क्योंकि यह अनदेखी कोई दृष्टिसक्षम या शारीरिक रूप से योग्य व्यक्ति नहीं बल्कि वो लोग करते हैं जो खुद दृष्टिहीन या किसी अन्य रूप से विकलांग हैं। ये ऐसे लोग होते हैं, जो अपनी विकलांगता को स्वीकार नहीं करना चाहते और कहीं न कहीं दृष्टिसक्षम या शारीरिक रूप से योग्य व्यक्तियों के सामने अपनी झूठी प्रतिष्ठा बनाए रखने में यकीन रखते हैं। इसी क्रम में वो अन्य विकलांग लोगों की अनदेखी या उनसे कटकर रहना पसंद करते हैं। शायद ऐसा करके वो स्वयं को अन्य लोगों से श्रेष्ठ साबित करना चाहते हैं।

मैं हमेशा यही कहती हूं कि ऐसी भयावह अनदेखियों के कारण एक दृष्टिहीन व्यक्ति का जीवन बहुत मुश्किल हो जाता है। कहीं न कहीं ये अनदेखियां इस बात के लिए भी ज़िम्मेदार होती हैं कि एक दृष्टिबाधित खुद को दृष्टिसक्षम लोगों की इस दुनिया से दूर कर लेता है।

दृष्टिहीन लोगों के साथ ही वह अपनी सभी खुशियां पाकर उसे ही अपनी पूरी दुनिया समझ लेता है और अगर वह इस तरह से सोचे तो मेरे अनुसार यह बहुत ही सामान्य सी बात है। यह मानव स्वभाव ही है कि यदि लोगों को अपने जीवन के अनुकूल परिस्थितियां मिले जहां वे खुश रह सकें तो निश्चित ही वे उस ओर पलायन कर जाते हैं।

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