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नाबालिग पत्नियों के साथ सेक्स को रेप घोषित करना क्यूं बस अधूरी जीत है

बाल विवाह पर नाबालिग पत्नी के साथ यौन संबंध को सुप्रीम कोर्ट ने रेप माना है और इसे नाबालिग लड़कियों के अपने शरीर पर उनके खुद के अधिकार और निर्णय के अधिकार का उल्लघंन माना है। कल सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए 18 साल से कम उम्र की पत्नी के साथ बनाए गए यौन संबंध को रेप माना है, अगर नाबालिग पत्नी इसकी शिकायत एक साल के अंदर करती है। इसे सभी धर्मों के लिए समान रूप से लागू किया गया है। कोर्ट ने आईपीसी की धारा 375 में दिए गए अपवाद को खारिज कर दिया है।

पति-पत्नी के बीच यौन संबंध के लिए सहमति की उम्र को बढ़ाए जाने की मांग वाली याचिका के जवाब में सरकार ने कहा था कि भारत में बाल विवाह एक हकीकत है और विवाह की संस्था की रक्षा होनी चाहिए।

हमारे देश के कानून के हिसाब से शादी के लिए लड़कियों की उम्र 18 साल और लड़कों की 21 साल रखी गई है, इससे कम उम्र में हुई शादी को जुर्म माना गया है। इस कानून के बावजूद देश में बाल विवाह के कई मामले सामने आते रहे हैं, जिनके कारण कमोबेश कभी सामुदायिक रीति-रिवाज तो कभी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक पिछड़ापन ही होते हैं।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को एक दूरगामी बदलाव के रूप में देखा जा सकता है, क्योंकि कुछ दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक बलात्कार को पति-पत्नी या परिवार का निजी मामला मानते हुए इस पर निर्णय देने से असहमति जताई थी। भारत सरकार ने भी वैवाहिक बलात्कार को लेकर अपने कंधे झटक दिये थे और कहा था कि इससे परिवार की संस्था का भविष्य खतरे में पड़ सकता है, जबकि दुनिया के कई देशों ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध माना है।

इस फैसले के सन्दर्भ में हमे फूलमनी दासी का मामला नहीं भूलना चाहिए। फूलमनी दासी 10 वर्ष की बाल वधु थी, जिसके यौवनारंभ से पहले ही उसके उम्रदराज़ पति ने जब उसके साथ ज़बरदस्ती की तो अधिक रक्तस्त्राव से उसकी मृत्यु हो गई थी। इस घटना के बाद हिंदुस्तान में पहली बार बलात्कार विषय पर बहस की शुरूआत हुई थी। इसके बाद बी.एम. मालबारी जैसे समाज-सुधारकों ने संघर्ष किया और महिलाओं के संदर्भ में पहला कानून “उम्र का सहमति अधिनियम (Age of Consent)” 1891 में बना।

उस वक्त विवाह की आयु 12 वर्ष पर सहमति बनी थी, जिसके बाद बाल विवाह के लिए समाज सुधारको ने लंबा संघर्ष किया और धीरे-धीरे कई बदलावों के बाद लड़कियों के विवाह की आयु 18 वर्ष और लड़कों के लिए 21 वर्ष निधारित की गई। अभी भी शैक्षणिक पिछड़ापन और आर्थिक कमजोरी के कारण बाल विवाह जारी हैं। ज़ाहिर है कि समाज इस समस्या का समाधान कानूनी विकल्पों से नहीं खोज पाया है, इसके लिए सामाजिक जागरूकता और अन्य पहलूओं पर काफी काम किए जाने की ज़रूरत है।

सुप्रीम कोर्ट का मौजूदा फैसला ऐतिहासिक फैसला तो है लेकिन कई कानून के जानकारों के अनुसार यह अपने आप में अधूरा है। पत्नी यदि 15 से 18 के बीच में है तो बलात्कार की सज़ा दो साल की जेल होगी। विवाह के सन्दर्भ में उम्र की सहमति के लिए 18 वर्ष का दायरा क्यों बनाया गया है? क्योंकि बलात्कार तो किसी भी उम्र में बलात्कार ही है, किसी भी महिला के लिए यह खुशी और उत्साह का अवसर तो है नहीं। इसमें 18 साल के बाद की महिलाओं के साथ असहमति के बिना बनाए जा रहे यौन संबंध को “वैवाहिक बलात्कार” नहीं माना गया है।

ज़ाहिर है कि “वैवाहिक बलात्कार” के विषय पर भारतीय समाज की विविधता, श्रेणीबद्धता, सामुदायिक और कई अनुय विरोधाभासों को गहराई से समझने की ज़रूरत है। हालांकि सवोच्च न्यायालय के पीठ ये स्पष्ट किया है कि वह वैवाहिक बलात्कार के विषय पर सुनवाई नहीं कर रही है, क्योंकि इस मामले को नहीं उठाया गया है।

अगर बलात्कार के संदर्भ में देखें तो यह फैसला अधूरी जीत के रूप में ही है जिसका स्वागत किया जा सकता है, लेकिन वैवाहिक बलात्कार की लड़ाई के लिए अभी लंबे संघर्ष की ज़रूरत है।

फोटो आभार: getty images 

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