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अनजान दर्द

कल ही की बात है जब मैं कॉलेज जाने के लिए निकला था। जिस बस स्टैंड पर में था उस स्टैंड पर एक व्यक्ति शराब पीकर बैठा हुआ था जो आने जाने वालो को गाली दिए जा रहा था। मैं यह देख कर उस आदमी से थोड़ी दूर जाकर खड़ा हो गया। नशे में चूर हुए आदमी से हम क्या बोल ही सकते हैं। उस वक़्त ना तो उसमे समझने की शक्ति थी ना ही मुझमें उसके पास जाकर कुछ बोलने की हिम्मत।
उसने अपना गाली दिया जाना बन्द नहीं किया जिससे तंग आकर एक 23-24 साल के एक भैया ने उस शराबी को थप्पड मारा। मुझे कुछ दर्द सा हुआ।
वो दर्द मुझे कचोट रहा था उन भैया को मारने से रोक ने को। “रहने दो भैया कोई बात नही नशे में है नहीं समझेगा।” आखिर में बोल आया।

बाकी खड़े लोगो ने भी मेरा समर्थन किया लेकिन थप्पड़ खाने के बाद भी वो व्यक्ति शांत नहीं हुआ।
उन भैया ने फिर से उस व्यक्ति को मारा।
वो व्यक्ति नशे में था जिससे उसे मार का कोई असर नहीं हो रहा था जो लोग अब तक ना मारने के लिए एक जुट थे अब सब गुस्से में बोल रहे थे मारो इस को।
शायद वो भैया सही कर रहे थे लेकिन मुझे दुख हुआ वो दुख जो और लोगों को नहीं हो रहा था वो दुख था कि मेरे पिता जी भी शराब पीते हैं घर में कलह होता है माता जी काफी गुस्सा करती थी और दुखी हो जाती थी।
शायद इसी लिए की वो समझती थी कि पापा के शराब पीने से पूरे परिवार को परेशानी होगी।
जब पापा पी कर आते थे तब मैं चुप चाप कमरे कोने में बैठा रहता था।
डरा सहमा सा।
घर के हालात भी ठीक नहीं थे। मम्मी उनसे लड़ती रहती थी। पापा बस अनाप शनाप बोलते लेकिन कभी हाथ तक नहीं उठाया था ना मुझ पर ना मम्मी पर।
शायद उस शराबी को देख मुझे उसके बच्चों और पत्नी की दशा का एहसास हो रहा था वो ही स्थिति थी शायद उनके परिवार की भी जो कभी मेरे साथ थी

शायद कभी यह घटना मेरे पापा के साथ भी हुई होगी।

“अक्सर दुखी हो जाता हूं मैं जब किसी शराबी को देखता हूं सड़क पर लड़खड़ाते।”

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