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आवाज़

सोने की पालकी में ही प्रतिभाएँ जन्म नहीं लेती !
और शहरों की चकाचौंध में , लोग विश्वाश करना भूल गए हैं की , भारत भूमि के कोने कोने में अभ्यास होता हैं। वहां प्रतिभाएं हैं। दूर किसी गाँव में भी उतनी ही अनंत सम्भावनाएँ हैं जितनी किस राज्य की राजधानी या देश की राजधानी दिल्ली में। लेकिन कुछ लोग जिनके सांप के से मुँह हैं , और जिनकी लोमड़ी की सी चाल हैं , जिनके भीतर के चंद पैसों के लालची भेड़ियें किसी प्रतिभा को पहचानने से इंकार कर देते हैं, वे जो चांदी के चन्द सिक्कों पे अपना ईमान बेच चुके हैं , उन्हें किसी की सिफारिश या फिर नकदी देकर ही अपने वजूद का विश्वाश दिलाया जा सकता हैं। उन्हें कहाँ मालूम की भारत वीरों की भूमि हैं, विद्वानो की भूमि हैं। दुनिया की महान प्रतिभाओं ने पूरे भारत वर्ष में जगह- जगह जन्म लिया हैं और लेते रहे हैं। तब कहीं बहुमंजिला इमारतें नहीं थी, एयर कंडीशन कमरे नहीं थे। और आज भी किसी प्रतिभा को जन्म लेने की लिए किसी फाइव स्टार अस्पताल की जरूरत नहीं हैं, हिन्दुस्तान की मिटटी में हज़ारों चमकते लाल पैदा हुए हैं , और होंगे। आज भी भारत भूमि पर न जाने कितनी प्रतिभाएं, सुविधाओं और पहचान के अभाव में अपना वजूद खो चुकी हैं। फार्म भरते भरते सीधे साधे लोग टूट चुके हैं। अफसरों के आगे सलाम ठोकने और नेताओं के पैर छूने के बावजूद एक दिलासा ही मिल पता हैं। कब वो दिन आएंगे जब इन प्रतिभाओ को भी आगे आने का मौका मिलेगा ?
आज तो किसान के बेटों की वो हालत हैं जिसे शब्दों में बयान करना कठिन हैं ।

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