नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद कई ऐसे काम किए जिसके लिए उन्हें इतिहास के पन्नों में जगह मिल गई है। पहली बार कोई अमेरिकी राष्ट्रपति गणतंत्र दिवस के समारोह में मुख्य अतिथि के रुप में शामिल हुआ, ओबामा से मिलने के दौरान मोदी ने जो अपने नाम की कढ़ाई वाला सूट पहना था उसे गिनीज बुक वर्ल्ड रिकाॅर्ड में शामिल किया गया, 95 घंटे की यात्रा में से विमान में बिताए 33 घंटे, इजरायल का दौरा करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री। और भी ऐसे कई किस्से हैं जिसने मोदी को इतिहास रचने में मदद की है।
लेकिन इतिहास में अपनी जगह बनाने में आगे मोदी इतिहास पढ़ना भूल गए। हाल ही में गुजरात चुनाव में प्रचार के लिए पहुंचे मोदी ने रैली में दो पूर्व प्रधानमंत्रियों का जिक्र किया। इतिहास में इनकी भी अपनी जगह है। एक ने देश का पहला प्रधानमंत्री को तौर पर इतिहास में अपना नाम दर्ज किया और दूसरी देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी। आप समझ तो गए होंगे की हम यहां बात कर रहे हैं जवाहर लाल नेहरु और इंदिरा गांधी की।
तो अब बताते हैं कि ऐसा क्या हुआ की प्रधानमंत्री मोदी को अपने भाषण में इनका जिक्र करना पड़ा। दरअसल नेहरु के परपोते और इंदिरा के पोते राहुल गांधी अपने प्रचार के दौरान सोमनाथ मंदिर के दर्शन करने के लिए गए थे। राहुल के इस स्टंट पर मोदी ने तंज करते हुए कहा- “आज कुछ लोगों को सोमनाथ की याद आ रही है। मैं उनसे पूछना चाहता हूं-क्या आप अपना इतिहास भूल गए हैं? आपके परिवार के सदस्य, हमारे देश के पहले प्रधानमंत्री वहां मंदिर बनाने के विचार से ही सहमत नहीं थे।”
यहां राहुल को इतिहास याद दिलाने में मोदी खुद इतिहास भूल गए। दरअसल नेहरु मंदिर बनाने के विरोध में नहीं थे बल्कि उसको बनाने के लिए सरकारी खजाने के इस्तेमाल के विरोध में थे। इतिहास के मुताबिक नेहरु केवल महात्मा गांधी के आदेश का पालन कर रहे थे। सरदार पटेल, के एम मुंशी और दूसरे कई नेता जब सोमनाथ के पुनर्निर्माण का प्रस्ताव लेकर गांधी के पास पहुंचे तो गांधी ने इसे मंजूरी तो दी लेकिन साथ ही ये सुझाव भी दिया की निर्माण के खर्च के लिए लोगों से चंदा इकट्ठा किया जाए न कि सरकारी खजाने से दिया जाए। जिसके लिए पटेल और के म मुंशी तैयार हो गए। गांधी और पटेल की मृत्यु के बाद भी के एम मुंशी ने इसे जारी रखा।
नेहरु पर भाजपा ये इल्जाम भी लगा रही है कि नेहरु ने उस समय रहे राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को मंदिर क उद्घाटन करने से रोकना चाहा था। तो इसके पीछे भी नेहरु की मंशा हिंदू धर्म के खिलाफ जाने की नहीं बल्कि संविधान के अस्तित्व को बनाए रखने की थी। उन्होंने राजेंद्र प्रसाद को ना जाने की सलाह इसलिए दी थी क्योंकि उनका मानना था भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और राष्ट्रपति के किसी मंदिर के कार्यक्रम में जाने से गलत संकेत जाएगा।
अब आते हैं इंदिरा गांधी पर तो इनका जिक्र प्रधानमंत्री मोदी के जबान पर इसलिए आया क्योंकि मोरबी में जहां नरेंद्र मोदी की रैली हो रही थी वहां 1979 में इंदिरा गांधी मच्छु बांध के टूटने से हुए हादसे का दौरा करने पहुंची थीं। हादसे की याद को ताजा करते हुए मोदी ने बताया “उस वक्त श्रीमान राहुल गांधी! आपकी दादी इंदिरा बेन मोरबी आईं थी. वह मुंह पर रूमाल बांधकर भागने की कोशिश करती नजर आ रही थीं, जबकि हमारे कार्यकर्ता शव उठा रहे थे. उस वक्त की मशहूर पत्रिका चित्रलेखा ने फोटो छापा था और लिखा था – “मानवता की महक, राजनीतिक गंदगी”
मोदी अपने भाषण में जिस फोटो की जिक्र कर रहे हैं वो सच है लेकिन उसे पीछे की जो सच्चाई बयान कर रहे हैं वो झूठ है। इंदिरा गांधी जब दौरे के लिए पहुंची थी तब हादसे के कारण पूरा शहर मलबे में तबदील हो चुका था और चारों तरफ लाशों के सड़ने की बदबू फैल रही थी। उस दुर्गंध से खुद को बचाने के लिए श्रीमति इंदिरा गांधी ने रुमाल से अपनी नाक ढक रखी थी। इंदिरा गांधी की इस तस्वीर के साथ उस समय की एक तस्वीर और भी है जिसमें आरएसएस के कार्यकर्ता शव उठाते नजर आ रहे हैं लेकिन उनकी नाक पर भी कपड़ा बंधा है। ऐसे में अपनी नाक पर कपड़ा रख इंदिरा गांधी ने कुछ गलत नहीं किया।
राजनीति में जीत के लिए विपक्ष के इतिहास के काले पन्नों को पार्टियां सामने लाती रहती हैं लेकिन उन्हें तोड़-मरोड़ कर पेश करना देश के प्रधानमंत्री को शोभा नहीं देता। पद्मावती फिल्म में राजपुतों के इतिहास को गलत ढंग से पेश करने पर करनी सेना ने दीपिका और भंसाली के नाक-सर काटने तक की धमकी दे दी है तो क्या देश के प्रधानमंत्री होने के कारण नरेंद्र मोदी को इतिहास से छेड़खानी करने की छूट मिल जाती है?