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एन इनसिग्निफिकेंट मैन

 

ये मेरी ज़िंदगी के उन यादगार लम्हो में से एक है जब मैंने अपने आप को खोया है। मैंने 15 feb 2014 का अख़बार उठाया और मुख्या खबर पढ़के अपने आप को संभाल नहीं पाया। दोस्तों को लगा कि मै बहुत पढता है इसलिए उनसे बात नहीं कर रहा। पर मेरे 10-15 दिन सिर्फ उसी को सोचते हुए बीते। पाश की कविता “सबसे खतरनाक” मुझे झूठ लगने लगी। क्योंकि मैंने अपने सपने मारने शुरू कर दिए थे। असल राजनीती समझ में आने लगी थी। मैंने अपने बाप और आंबेडकर से जो कुछ सीखा था सब नष्ट होने लगा था। ये खबर थी अरविन्द के सीएम पद से इस्तीफ़ा देने की। एक समय में केजरीवाल को सबसे बड़ा दुश्मन मानता था क्योंकि जो मै करना चाहता था वो उसने कर दिया था। शायद इसीलिए मै उसे सबसे प्रिय भी मानता हूँ। अरविन्द को पहले से पढ़ा था क्योंकि इनको 2006 में रेमैन मेग्सेसे पुरस्कार मिला हुआ था जिसे एशिया का नोबेल कहा जाता है। दो बार अन्ना आंदोलन में दिल्ली के जंतर मंतर और राजघाट पर भी गए थे।

आज़ाद भारत में व्यवस्था परिवर्तन के इस आंदोलन पर आ रही मूवी को देखकर ये सब ख्याल मन में आये। ये मूवी दुनिया के सबसे गहरे सामजिक आंदोलन की तस्वीर दिखाती है। इसमें एक्टिविज्म और इंटेलुक्टुअल दोनों था। सोशल क्रांति और पोलिटिकल क्रांति दोनों था। जय भीम और लाल सलाम दोनो था। नास्तिक भी थे और सरदार ,मुल्ले ,संघी भी थे। राष्रवादी भी थे और खालिस्तानी ,नक्सली भी। कुछ लोगो ने इसे नई लेफ्ट भी कहा। दुनिया का सबसे अनोखा राजनैतिक आंदोलन था जिसमे राजनेता कम थे सामजिक कार्यकर्त्ता और ब्यूरोक्रेट ज्यादा थे। आप विश्व इतिहास में ऐसा कभी नहीं देखेंगे कि बिना संविधान और कुर्सी बदले किस तरह सिस्टम को बदलकर नयी राजनीती की जा सकती है। अन्ना से शुरू होते हुए योगेंद्र-अरविन्द और संतोष तक के इस आंदोलन ने मर रहे भारत में ताज़ा ऑक्सीज़न छोड़ दी। मोटे तौर पर इस इवेंट ने ये तो सीखा दिया कि ‘नेवर गिव अप’ .
यूँ तो कामरेड रविंद्र और मेरे पापा ने मुझमे राजनीती की रूचि लाने में कोई कसर नहीं छोड़ी पर इस आंदोलन ने हमेशा के लिया राजनीती को मेरे पल्लू से बांध दिया। हालाँकि अरविन्द के संघर्ष और त्याग से इम्प्रेस होकर मै मार्क्स ,मंडेला, बेंजामिन और गाँधी को भूल रहा था पर इसी राह में एक लम्हा ऐसा आया जब हमे योगेंद्र ग्रुप कहा गया। इस आंदोलन ने मुझे एडवोकेट फूलका से मिलवाया जिसके साथ मिलके पंजाब 1984 के पीड़ितों को न्याय दीवाने का मौका मिला। इस आंदोलन ने मनीष सिसोदिया और आतिशी मर्लेना से मिलवाया जो दुनिया को स्कूल बना देना चाहते है। मेघा पाटकर, प्रोफ चमनलाल और प्रोफ आनंद जो इतने ज्ञान और अनुभव को लादे हुए थे।

बनारस में चुनाव प्रचार के दौरान एक युवा ने मुझसे पूछा की आपकी विचारधारा क्या है। समाजवादी , साम्यवादी , दक्षिणपंथी ,उग्र वामपंथ ,सांप्रदायिक या ब्राह्मणवादी। मैंने कहा “ईमानदारी “,हमारा विचार यही है और यही धारा रहेगी। ये सच है कि इस पार्टी के कुछ लोगो की इन्टेन्सेन सही नहीं है। कई नेता कार्यकर्ता का अनहद प्रयोग करते है। पर इस पार्टी का कार्यकर्ता इसकी ताक़त और शक्ति है जो गाँधी की तरह शालीन और भगत की तरह तर्कशील है। अरविन्द में इतनी हिम्मत नहीं है जितनी इसके कार्यकर्ता में है । मुझे बिलकुल भी अफ़सोस नहीं है कि इस पार्टी का सदस्य रहा। मै गर्व करता हूँ कि मैं ऐसे आंदोलन का सदस्य रहा जिसने “नेता” और “राजनीती” शब्द की परिभाषा बदली। आज अगर वापस 2011 में जाना पड़े और वापस राजनैतिक विकल्प बने तो मै इसका फिरसे सदस्य बनूँगा। महेंद्र धोनी और गाँधी से जैसे सीखा है कि हमें वर्तमान में जीना चहिये। उसी तरह ये आंदोलन और पार्टी उस वक़्त की ज़रूरत थी।

यह फिल्म ज़रूर देखनी चाहिए जो हमें जीने का नया ढंग दे सकती है , चाहे हम सफल हो या न हो पर प्रयास उच्चतम होने चाहिए , खुशबू और विनय ने बहुत शानदार ढंग से हर चीज़ को पिरोया है, अच्छी फिल्म बनाई है । मै कहना चाहूंगा यह फिल्म इसलिए भी देखनी चाहिए क्योंकि ये “आज की ज़रूरत” है।

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