आज के पर्यावरण के हालात को देख कर ऐसा लगता है की मानो इन्सानो को अब ज्यादा दिन जीने की तमन्ना नहीं है । सब मानव हर एक नैसर्गिक वस्तु से पैसे की आस करता है ,जबकि पर्यावरण और उससे संबधित किसी भी पहलू की चिंता सुरक्षा तो क्या ख्याल तक नही आत। जरा गौर कीजिये … जब हम पिकनिक पर जाते हैं तो वहाँ के कई प्रजाति के पेड़ ,बहुत सारे रंग-बिरंगे मनमोहक पक्षी ,सुंदर झील आर मनभावन नदियां , देख कर मन को खुश करते है । कभी सोच के देखो की अगर , ये अनमोल प्रकृतिक चीज़ें इस धरती से विलुप्त हो जाएँ तो ….. सब उजड़ा चमन । जिन्हे आज हम जब मन चाहा देख लेते हैं , लेकिन इसी तरह का माहौल रहा , कुछ समय बाद ये सिर्फ किताबों के पन्नों और संग्रहालय मे ही इनकी तस्वीर बस मिलेगी । जंगली जानवरों का शिकार जिस स्तर पर हो रहा है ,उससे तो सिर्फ यही गल रहा है की एक दिन ऐसा आ ही जाएगा ,जब ये … हाथी ,शेर,बाघ,हिरण ,चीतल,काला हिरण, चीता ,जिराफ …… ये सब और इनके साथ ही लाखो प्रजाति के वन्य प्राणी पूरी तरह से विलुप्त हो जाएँगे । आज हम तो उनको देख रहे हैं और उनको मनोरंजन या कुछ पैसों के खातिर मार देते हैं। अगर किसी व्यक्ति का को अपना मात्र बीमार हो जाए तो पूरे घर मे अफरा-तफरी मच जाती है , क्या उन प्राणियों का परिवार नही होता होगा ,उनका किसी से कोई रिस्ता नहीं होता ….! विश्व की महान ग्रंथ ‘गीता’ मे वर्णित है -की हर प्राणी का प्राण एक समान ही है, चाहे इंसान हो या कोई चूहा सब मे आत्मा एक ही होती है । मनुष्य को अपने व्यक्ति गत जीवन के साथ ही पर्यावरण की महत्वपूर्ण संरचना का भी ध्यान रखना चाहिए , अगर आज जिस तरीके से पर्यावरण का अंधाधुंध दोहन हो रहा है, अगर इसी गति से लगातार होता रहा तो आने वाले 50-70 वर्षों मे धरती से वन गायब हो जाएँगे, हाथी से लेकर बंदर समेत पूरे वन्य जीव विलुप्त हो जाएँगे, बड़ा दुख और अचरज होता है मुझे जब देखता हू की, महज एकलाख रुपयों के लिए जगल के बादशाह, धरती की शान ‘शेर’ को जान से मार दिया जाता है, दाँत के लिए ‘हाथी’ की हत्या कर दी जाती है, दुर्लभ प्रजाति के प्राणियों की हत्या के कारण धरती से कई प्रजातियाँ विलुप्त हो चुकी हैं । औषधियों के नाम पर छोटे प्राणियों की हत्या …. ! पेड़ों का तो वंश ही मिटा जा रहा है , लोग और सरकार भी वृक्षारोपण के नाम पर मात्र अपना औपचारिक काम करते हैं ,ज़िम्मेदारी तो कोई समझता ही नहीं है । प्राचीन काल मे मनुष्य प्रकृति के और अपने बीच के परस्पर संबंध को उचित और गंभीरता से समझता था , आज तो नेचर बोलने पर बच्चे कहते हैं ये (Nature) नटुरे क्या होता है ….! अजीब है . स्वार्थी इंसान अपने मतलब और हित के लिए पूरे पर्यावरण को तहस-नहस कर के धरती यानि अपने आसियाने को ही छिन्न-भिन्न कर दिया है ,प्रदूषण की बात ही नही की जा सकती वो तो यत्र-तत्र-सर्वत्र व्याप्त है ,यहाँ तक की लोगों की सोच मे भी …. आज के समाज मे जो भी व्यक्ति किसी भी जिम्मेदार पद पर हो तो वो आम लोगों को परेशान तंग करेगा, ये तो फैक्ट ही है यार …. ऊपर वाला अपने से नीचे लोगों को दबा के ही रखता है । मानव लगातार अपने विनाश की तैयारी मे जुटा हुआ है , वो तो सिर्फ विज्ञान के भविष्य की परख करता है ,उसे अपने अस्तित्व के भविष्य की तनिक भी चिंता नही है । यह कटु सत्य है की हर मनुष्य गैरजिम्मेदार है , वह अपने कर्तव्य ज़िम्मेदारी दूसरों पर छापने का काम करते हैं । पेड़ लगाते नही वल्कि चोरी छिपे उनको काट कर बेंचने मे माहिर हैं । जंगल की जमीन मे जहां पेंड, पशु, पक्षी ,गिलहरी आदि होने चाहिए , वहा या तो बाहुबलियों के नेताओं के लक्ज़रियस इमारतें होती हैं ,या फिर वहा होता है भू-माफियाओं का कब्जा … जो दिन रात वहा की खुदाई कर खनिज संपदाओं का अवैध दोहन किए जा रहे है ,जिससे वन भूमि तो कम हो ही रही है पर्यावरण असंतुलन मे सबसे घटक यही प्रक्रिया होती है , जिसमे भू-स्खलन का सबसे ज्यादा खतरा होता है , पेंदों की कमी से जहरीली गैसें बढ़ रही हैं ,उनके मुक़ाबले ओक्सीजन का अनुपात घट रहा है । आज ये जो सूखे की खबरें आती हैं ,रेगिस्तान के विस्तार की आती हैं ,इस सब की वजह भी पेड़ों की कमी है , किसी भी क्षेत्र के संतुलित वातावरण के लिए उस क्षेत्र के 33% हिस्से पर पेंड होना अनिवार्य है , लेकिन दुर्भाग्य भारत देश के मात्र 20% भू -भाग पर ही वन, पेंड, पौधे हैं , जो की चिंता का विषय है ,लेकिन इस तरफ किसी का ध्यान ही नही जाता सब मस्त हैं कागज के रंगीन टुकड़े बीनने मे या जुटाने मे । तस्कर भी गैर जिम्मेदार वन कर्मियों की वजह से जगलों मे संरक्षित वन्य प्राणियों का शिकार कर जाते है । हमारे देश की यही सबसे बड़ी समस्या है ,सब अपनी जिम्मेदारियों से दूर भागते है, सुधर जाओ वरना अब और नही जियोगे।
#SHivAY