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कमज़ोर नहीं था वो

#‎कमज़ोर‬ ‪#‎नही‬ ‪#‎था‬ ‪#‎वो‬…….

कल शाम को घर वापस आते समय मैंने कुछ अजीब सा देखा ।
एक व्यक्ति शारीरिक विषमताआें से लाचार, अपना बैग भी पूरी तरह उठाने में असमर्थ,
फिर भी वो पूरे दिलो जान से बस अपने पथ पर चले जा रहा था,ख़ुद को संभालता हुआ ,
लड़खड़ाया भी कई बार फिर ख़ुद ही सँभल भी गया।
दिल में आया भी के मदद कर दूँ,उसके उठनें में पर नहीं कर सकी, अजनबी जो था।
सोच रही थी,क्या प्रेरित करता है उसे संघर्ष करने में ,
वो परिवार के लिये रोटी कमानें की ज़िम्मेदारी ,या बच्चों को उज्जवल भविष्य देने की कामना,
या बूढ़े माँ बाप के दवाइयों का ख़र्च
कुछ तो होगा जो हर सुबह प्रोत्साहित करता होगा उठने को हर दिन नयी जंग लड़ने को,
फिर सोचा चाहे सैकड़ों वजह हो उसे उत्साहित करने की पर सबसे महत्वपूर्ण है वह स्वयं,उसका व्यक्तित्व,उसका आत्मसम्मान।
कितना तेज़ होगा उसके आँखों में, अौर चेहरे पे गुरुर भी,अौर हो भी क्यों ना ,हार के भी जीतता है हर रोज़ वो।
सीना गदगद हो जाता होगा उसका अपने मेहनत के कमाये हुये पैसों को हाथ में लेकर,अपने अपनों के लिये कोई छोटी सी चीज़ भी ख़रीद के,महसूस कर सकती हूँ उसकी इस भावना को,अनुभूतित हुयीं हूँ इससे भी कई बार मैं ।
नज़रों में अहमियत बढ़ जाती है उनकी जो अपने कमियों को ताक पर रख कर सफलताआें को पाते हैं ।
अगर बहुत महान ना भी कर पाये तो क्या हुआ, कम से कम अपना ख़र्च तो उठा पाते हैं ,कम से कम किसी के सामने हाथ तो नही फैलाते हैं ।
इन्हीं सोचो में गुम थी तभी कुछ शोर से ध्यान टूटा उस व्यक्ति का घर आ गया, उसकी छोटी सी बेटी उसके पैरों से चिपक गई थी,उसने भी आव देखा ना ताव बहुत ज़ोर से अपनी छोटी सी बेटी को बॉंहो में भर लिया था।
एक मज़बूत आलिंगन था,जिसे दुनिया का कोई भी तूफ़ान हिला नही सकता था,अरे ये क्या अपने परिवार का सहारा था वो।
(एक पल के लिये मुझे भी मेरा बचपन याद आ गया जब मैं आैर मेरी बहन ,पापा के घर आने पे बहुत,बहुत,बहुत ख़ुश हो जाया करते थे।)
तब मुझे अहसास हुआ ,कमज़ोर नहीं था वो,आैर ना ही उसे किसी के सहारे की ज़रूरत है।
अडग है,अटूट है ,अटल है वो,क्योंकि वो जीवन की कठिनाइयों से हार नहीं मानेगा, बहुत मज़बूत है वो…..हॉं मैंने जान लिया..,
कमज़ोर नहीं था वो…

 

 

 

 

 

 

 

 

 

{शालिनी उपाध्याय }

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