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कौन हैं वो जो भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं?

कन्हैया कुमार के साथ दो रोज़ पहले लखनऊ के शीरोज़ कैफ़े में मारपीट हुई या प्रयास किया गया| कुछ नया नहीं है, अब ये न्यू नार्मल है| मेरे लिये व्यक्तिगत स्तर पर कुछ नया है| अभी तक इस तरह की खबरें दूर से सुना करते थे, लेकिन इस बार किसी परिचित को ऐसी घटना में शामिल देखा| और बड़ी बात ये की उसे इस बात को सेलिब्रेट करते देखा कि उसने कहीं जाकर हंगामा किया और मारपीट की| और तो और ये भी अफ़सोस करते देखा कि उसने कन्हैया को जिंदा छोड़ दिया | मतलब हुआ हत्या के विचार को सेलिब्रेट करना| दरअसल ये दुःखद है जब आपके बीच का एक इंसान, जिसे अब तक आप तमाम मतभेदों के बावजूद एक अच्छा इंसान मानते थे, ऐसी प्रवृत्ति का हो जाये| वो ऐसे शख्स के तौर पर जाना जाए, जिसके बारे में एसिड अटैक सरवाइवर्स कहें कि ये तेज़ाब फेंकने की मानसिकता वाले लोग हैं| अभी भी सोचता हूँ कि काश ये उसका बहकाव हो, अंतिम परिणति नहीं!

 

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