चुनाव की तारीखों के नजदीक आने के साथ राजनैतिक हलचल भी तेज़ हो गई है।जहाँ स्वयं प्रधानमंत्री को संसद सत्र स्थगित कर तमाम मंत्रिमंडल समेत गुजरात आना पड़ रहा है, तो वही अल्पेश,जिग्नेश और हार्दिक के कांग्रेस को समर्थन देने से एक नयी ऊर्जा का संचार हुआ है।अब यहाँ यह देखना है,की जातिवाद के नाम पर आरक्षण की मांग करने वालो को क्या आश्वासन मिला की चुनाव से ठीक पहले सभी विपक्ष से जा मिले,शायद आंदोलन सरकार के खिलाफ था इसलिए विपक्ष ही एक मात्र रास्ता था?खैर लोकतंत्र के लिए अच्छा ही संकेत हैं, कांटे का चुनाव और विपक्ष के मजबूत होने से सत्तापक्ष के एकाधिकार के मतिभृम टूटेंगे।पर कांग्रेस की नीति स्पष्ट कभी नही रही,तो इनके विकाशवादी हों पाने पर जल्द विश्वास तो नही होता,लेकिन लगतार विजयरथ पर सवार बीजेपी और मिशन 150 को झटका जरूर लगेगा।मुझे लगता है इन सबके बाद भी बीजेपी की स्थिति मजबूत है, लेकिन यदी सिर्फ बहुमत के साथ कहि 92 से 99 के बीच सीटे आने से बीजेपी सरकार बना ले तो भी ये बीजेपी की नैतिक हार होगी।और इसमें भी सकारात्मक ही होगा क्योकि आत्ममंथन का मौका मिलेगा, क्योकि आने वाले समय में 2018 में 5 राज्यो में विधानसभा चुनाव और 2019 लोकसभा से पहले नीतियो की समीक्षा होना भी जरुरी है,क्योकि मौजूदा सरकार न तो रोजगार के उचित अवसर मुहैया करा पाई है,और न ही किसानों की आय में कोई बढ़ोतरी करा पाई है।आखिर इस सच्चाई से भी इंकार नही किया ज़्या सकता कि देेश भर का किसान और मजदूर आंदोलित हैं।