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पूर्वांचल के इन 7 टूरिस्ट डेस्टिनेशन के बारे में शायद ही आपको पता होगा

युवाओं द्वारा स्थापित होप वेलफेयर ट्रस्ट जिसमें वर्तमान में 300 से अधिक युवा हैं। इनमें BHU, JNU और कई अन्य संस्थानों के छात्र- छात्राएं शामिल हैं। युवाओं ने प्रधानमंत्री के संसदीय कार्यालय जाकर पूर्वांचल के 7 ऐसे गांवों की रिपोर्ट सौंपी जिसे विलेज टूरिज्म के लिए आसानी से प्रमोट किया जा सकता है। इन गांवों की कंप्लीट रिपोर्ट के साथ ज्ञापन सौंपा गया। ये रिपोर्ट सभी गांवों में जाकर और वर्तमान स्थिति को देखते हुए तैयार की गई है। होप संस्था का प्रधानमंत्री से आग्रह है कि विलेज टूरिज्म को अधिक से अधिक प्रमोट किया जाए, ताकि गांवों की संस्कृति को विलुप्त होने से बचाया जा सके।

होप संस्था ने पूर्वांचल के 7 गांव को चिन्हित किए हैं जहां पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं वो हैं- नगवां (बलिया), औरंगाबाद (गोरखपुर), चुनार (दरगाह शरीफ मार्ग), दीनापुर (वाराणसी) धन्नीपुर (वाराणसी), रामेश्वर (वाराणसी), और चिरईगांव (वाराणसी)। हम चाहते हैं कि इन गांवों के बारे में भी लोग जानें और वो अपनी देश की संस्कृति से जुड़ें।

1- औरंगाबाद

गोरखपुर शहर से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह गांव भटहट ब्लॉक में आता है। यह राज्य का ऐसा गांव है जहां पर टेराकोटा का सबसे अधिक काम होता है। फ्लावर पॉट और अन्य तरह-तरह के सजावटी समान यहां की ग्रामीण बनाते हैं। इस गांव की एक खास विशेषता यह भी है गांव कि हर घर में टेराकोटा से संबंधित ही कार्य होता है और इनके द्वारा बनाई गई कृतियां देश के कई अन्य इलाकों और विदेशों तक जाती हैं। अगर इस गांव को विलेज टूरिज्म के रूप में प्रमोट किया जाए, तो अधिक से अधिक मात्रा में व्यापारी और सैलानी दोनों ही इस गांव की ओर अपना रुख करेंगे। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी सुधार आएगा और स्थानीय नागरिक शहरों की ओर जाने के बजाय अपने गांव में ही रोज़गार प्राप्त कर सकेंगे।

2- नगवां

बलिया जनपद से लगभग 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह गांव शहीद मंगल पांडे का पैतृक गांव है। एक ऐतिहासिक गांव होने के कारण इस गांव को विलेज टूरिज्म के रूप में प्रमोट किया जा सकता है। 1857 की क्रांति का बिगुल बजाने वाले इस गांव को इसलिए भी प्रमोट किया जाना चाहिए ताकि उस गांव से लोगों का एक भावनात्मक लगाव हो सके। क्रांतिकारी मंगल पांडेय की स्मृति में इस गांव में उनके नाम पर शहीद मंगल पांडे इंटर कॉलेज एवं राजकीय महिला महाविद्यालय नामक शिक्षण संस्थान हैं। इसके साथ ही गांव में मंगल पांडे के दो स्मारक भी हैं। गांव में उनका पैतृक घर भी है जिसे पर्यटन के केंद्र के रूप में बढ़ावा दिया सकता है।

3- चुनार ( दरगाह शरीफ मार्ग)

वाराणसी से लगभग 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मिर्जापुर जनपद का यह गांव अपनी हस्तकला शिल्प के चलते आकर्षण का केंद्र है।  1980 से लेकर अब तक इस गांव की खासियत है यहां हर घर और वर्ग के लोग सिर्फ यही कार्य करते हैं। यहां के लोग अपने हाथों से मिट्टी और प्लास्टर ऑफ पेरिस का प्रयोग करके तरह-तरह की खिलौने, मूर्तियां, नए नए तरीके के कप प्लेट और अन्य उपयोगी वस्तुएं तैयार करते हैं। गांव के लगभग ढाई सौ घरों के लोगों का प्रमुख रोज़गार यही है।

यहां पर लोग नेपाल, बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और देश के अन्य शहरों से आकर व्यापार और निजी उपयोग के लिए सामान ले जाते हैं। आस-पास के इलाकों में कला का एकमात्र केंद्र होने के कारण इस गांव को विलेज टूरिज्म की तर्ज़ पर बढ़ावा दिया जाना चाहिए, जिससे अन्य राज्यों के लोग भी इसकी जानकारी प्राप्त कर सके। इस गांव के बगल में चुनार का किला है जो पर्यटन के दृष्टि से मशहूर है, इसे लेकर भी इस गांव को विलेज टूरिज्म के लिए प्रमोट किया जा सकता है।

4- रामेश्वर

बनारस एयरपोर्ट से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लगभग 1200 अबादी का यह गांव वरुणा नदी के तट पर बसा हुआ है। इस वजह से इस गांव की खूबसूरती और बढ़ जाती है, जिसे देखने देश-विदेश के लोग आते हैं। इस गांव में  लगभग 11 धर्मशालाएं हैं, जहां आसानी से रुककर वीकेंड की छुट्टियां मनाई जा सकती हैं। इस गांव का एक विधान यह भी है इस गांव में जो आता है वह एक रात रुकता है। काशी में विख्यात पंचकोशी यात्रा का तीसरा पड़ाव इसी गांव में पड़ता है।
वरुणा नदी के तट पर रामेश्वर भगवान की मंदिर

इस गांव की खास बात है यहां का रामेश्वर भगवान शिव का मंदिर। ऐसी मान्यता है कि इस शिवलिंग की स्थापना खुद भगवान राम ने की थी। यह गांव एक धार्मिक केंद्र होने के साथ-साथ अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए भी विख्यात है। इस गांव में स्थित संस्कृत विद्यालय में प्रारंभिक शिक्षा से लेकर अष्टम द्वितीय तक शिक्षा दी जाती है। देश की विभिन्न जगहों जैसे- बिहार, मध्य प्रदेश, मिर्जापुर, आजमगढ़ और गोरखपुर आदि जगहों से लोग यहां संकृत में शिक्षा ग्रहण करने आते हैं।

5- दीनापुर और 6- धनीपुर

शहर से लगभग 12 किलोमीटर और प्रसिद्ध बौद्ध पर्यटन स्थल सारनाथ से लगभग 4 से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह दोनों गांव एक दूसरे के बगल में हैं। पूर्वांचल में इन दोनों गांवों में सबसे अधिक फूलों की खेती की जाती है, इस गांव लगभग सभी घरों के लोग सिर्फ फूलों की ही खेती करते हैं। पूर्वांचल की सभी प्रमुख मंडियों में इस गांव से फूल जाते हैं। इस गांव में 12 महीने गुलाब (अलग-अलग कलमियों) के फूल की खेती होती है इसके साथ-साथ अरहुल, गेना, बेला, गुड़हल आदि की भी अनेक किस्में यहां उगाई जाती हैं।
दीनापुर, पूरा गांव फूलों की बगिया जैसा दिखता है

यहां संपूर्ण जीवन शैली का आधार फूलों की खेती ही है। अगर इस गांव में भी विलेज टूरिज्म के लिए प्रमोट किए जाने की अपार संभावनाएं हैं।  फूलों के लिए मशहूर गांव का अगर सही से प्रमोशन किया जाए तो कई देसी-विदेशी सैलानी आकर्षित होकर भ्रमण करने आएंगे फूलों की अलग-अलग प्रजातियों का अवलोकन करने।

7-चिरईगांव

वाराणसी से लगभग 10 से 12 किलोमीटर दूर स्थित यह एक ऐसा गांव है जहां महिलाओं द्वारा मुरब्बा, अचार और पापड़ बनाए जाते हैं। इस गांव में लगभग 80% आबादी यही कार्य कर रही है। इस गांव का मुरब्बा दूर-दूर तक फेमस है, यहां का मुरब्बा और आचार उत्तर प्रदेश और बिहार के बाज़ारों में जाता है। इस गांव में ऐसे कई स्वयं सहायता समूह हैं जो गांव की महिलाओं के साथ जुड़कर काम कर रहे हैं। यह गांव नारी सशक्तिकरण के बेहतरीन उदाहरणों में से एक है, इनके काम को अधिक से अधिक बढ़ावा देने के उद्देश्य से भी इस गांव में विलेज टूरिज्म को प्रमोट किया जाना चाहिए।

 

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